सम्पादकीय

जी-20: वैश्विक नेतृत्व का सुनहरा अवसर, छवी निर्माण में बनेगा सहायक

Neha Dani
30 Dec 2022 2:55 AM GMT
जी-20: वैश्विक नेतृत्व का सुनहरा अवसर, छवी निर्माण में बनेगा सहायक
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उनका समाधान करने के लिए जी-20 के भीतर आम सहमति बना सकते हैं।
भारत ने एक दिसंबर से जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण कर ली है। भारत को जी-20 की अध्यक्षता ऐसे समय में मिली है, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। ऐसी भी खबरें हैं कि अगले साल से वैश्विक मंदी शुरू होने वाली है। इसके संकेत पहले ही यूरोप, अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में दिखाई दे रहे हैं।
वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य भी अनुकूल नहीं है, क्योंकि इस वर्ष शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध की चपेट में पश्चिमी देश भी आ गए हैं। भारत जैसे विकासशील देश तटस्थ हैं, और चाहते हैं कि वैश्विक भलाई के लिए युद्ध को सौहार्द और शांतिपूर्ण ढंग से हल किया जाए। भारत के सामने तीसरा पहलू महामारी भी है। 2020 के बाद से महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला को तोड़ दिया और वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ विनिर्माण क्षेत्र को भी प्रभावित किया। चीन जो कभी मैन्युफैक्चरिंग हब हुआ करता था, धीरे-धीरे अपनी पकड़ खोता जा रहा है। चीन से माल के प्रमुख आयातक पश्चिमी देश अब अपनी विनिर्माण इकाइयों को चीन से हटाकर भारत सहित अन्य जगहों पर ले जा रहे हैं। शायद यह भारत के लिए उन संसाधनों का दोहन करने का अवसर खोलेगा।
भारत को जी-20 की अध्यक्षता ऐसे समय मिली है, जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीसरी बार वहां के शासनाध्यक्ष चुने गए हैं। भारत और चीन, दोनों वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एक दूसरे के आमने-सामने हैं। सीमा विवाद का मुद्दा सुलझा नहीं है और यथास्थिति बहाल नहीं हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखे गए लेख में स्पष्ट रूप से जी-20 की अध्यक्षता के लक्ष्यों को रेखांकित किया गया है। बाली शिखर सम्मेलन में उस मंत्र का जिक्र पहले ही किया जा चुका है- एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य। कार्य योजना का उल्लेख करते हुए उस लेख में स्पष्ट किया गया है कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता अधिक समावेशी, महत्वाकांक्षी और निर्णायक व कार्रवाई उन्मुख होगी।
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया है कि भारत के लिए पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य जी-20 के भीतर उस मानसिकता को बदलना है, जो जलवायु परिवर्तन, वैश्विक आपूर्ति शृंखला और वित्तीय स्थिरता जैसे साझा मुद्दों का सामना करते हुए भी विकासशील देशों को विकसित देशों से अलग करती है। विकासशील देश भारत से यह उम्मीद रखते हैं कि भारत विकसित देशों से जी-20 के भीतर उसके प्रारूप पर बातचीत करते हुए विकासशील, अविकसित एवं गरीब देशों की आवाज बनेगा। वहीं विकसित देशों की अपेक्षा है कि भारत अपनी अध्यक्षता में वैश्विक सद्भाव और वैश्विक शांति बहाली करेगा।
भारत के सामने कई बड़े और विविध मुद्दे हैं, कई चुनौतियां हैं, लेकिन कुछ ऐसी प्राथमिकताएं हैं, जिन पर भारत को जरूर गौर करना चाहिए। महामारी के कारण टूटी हुई वैश्विक आपूर्ति शृंखला को पुनर्जीवित करना सबसे पहली प्राथमिकता है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में नया उत्साह आएगा और वैश्विक मंदी से निपटने में भी मदद मिलेगी। दूसरी प्राथमिकता वाला क्षेत्र वित्तीय स्थिरता का है, जिसे क्रिप्टोकरेंसी द्वारा बाधित किया गया है। तीसरी प्राथमिकता जलवायु बहस में बेहतर सौदे के लिए बातचीत करके जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों से समझौता किए बिना विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए थोड़ी रियायत हासिल करना है।
रूस और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपने सद्भाव पूर्ण व्यवहार से भारत एक तरह की आम सहमति बना सकता है। भारत अपनी नेतृत्व क्षमता का लाभ उठा सकता है और यह भारत के लिए अपने वैश्विक नेतृत्व को साबित करने का सुनहरा अवसर है।
मानवीय दृष्टिकोण से भारत का 'एक धरती, एक परिवार, एक भविष्य' का मंत्र सार्वजनिक वस्तुओं के एकाधिकार को तोड़ेगा। उम्मीद है कि भारत मौजूदा अशांत समय से बाहर निकलेगा और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत यह भरोसा जगाएगी कि हम साझा समस्याओं की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिए जी-20 के भीतर आम सहमति बना सकते हैं।

सोर्स: अमर उजाला

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