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ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी की सुरमई अदा में हिमाचल का रिश्ता जिस निवेश से बंध रहा है
दिव्याहिमाचल.
ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी की सुरमई अदा में हिमाचल का रिश्ता जिस निवेश से बंध रहा है, वह इसलिए उत्साहित करता है कि रोजगार के अवसर और संभावनाएं यहां तैरने लगती हैं। जयराम सरकार ने प्रदेश के माथे पर निजी निवेश की खूबसूरत पंक्तियां लिखते हुए निजी क्षेत्र को समानांतर धारा में खड़ा करने की इच्छा शक्ति प्रकट की है। यह दीगर है कि कोविड काल ने राज्य के सारे आर्थिक पहलू बदल दिए और निजी क्षमता का आशियाना उजड़ता रहा। बावजूद इसके अगर पंद्रह हजार करोड़ का निवेश अनुमानित है, तो इसे उपलब्धि ही माना जा सकता है। चंडीगढ़ में करीब तीन हजार करोड़ के निवेश पर सहमति पत्रों पर हस्ताक्षरित उद्देश्य अगर पूरे होते हैं, तो यह कोविड काल को पीटने की जुस्तजू भी है। निवेश का रेखांकित भविष्य उज्ज्वल हो सकता है बशर्ते हिमाचल की कार्यसंस्कृति में भी अंतर आए।
बीबीएन, परवाणू या ऊना की औद्योगिक गलियों में चलते-फिरते रोजगार को छूने की कोशिश करेंगे, तो वहां गैर हिमाचली समुदाय कुलांचें भरता है जबकि जिनके लिए सत्तर फीसदी की शर्त है, उन्हें या तो नीली वर्दी पहनने से गुरेज है या काम करने की शक्ति का सरकारी अंदाज बरकरार है। हुनर की तपिश के बिना हिमाचल के लिए ऐसा रोजगार चाहिए जो सार्वजनिक क्षेत्र को दफन कर सके। इसलिए निजी निवेश की सार्थकता में पैदा होते रोजगार का क्वालिटी चैक होना चाहिए। हिमाचल में इंजीनियरों की तादाद करीब पच्चीस हजार तक पहुंच चुकी है, तो अगर आईटी से जुड़े व हर तरह से प्रशिक्षित दस लाख युवाओं के समूह की क्षमता को देखा जाए, तो अब तक कई आईटी कंपनियों को न्योता दिया जा सकता था या इन सालों में कम से कम आधा दर्जन आईटी पार्र्क स्थापित हो जाते। इसी के साथ टूरिज्म सेक्टर में रोजगार, स्वावलंबन व स्वरोजगार की संभावना को देखते हुए निवेश की नीति बनती, तो परिदृश्य बदलते देर न लगती। आश्चर्य यह कि ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी की गूंज की दूसरी ओर पर्यटक शहरों में मचा कोहराम नहीं सुना जा रहा है। अकेले धर्मशाला में दर्जनों होटलों ने बिक्री के लिए अपने विकल्प खोल दिए हैं, तो बैंकों ने करीब डेढ़ दर्जन होटलों पर कब्जा करने की कार्रवाई शुरू कर दी है। इसी तरह मनाली के लगभग सौ होटलों की लीज टूटी है, तो कमोबेश हर पर्यटक शहर में स्थापित कई रेस्तरां चेन दामन छोड़ चुकी हैं। कितने शोरूम बंद हुए या कितने आफत में फंसे हैं, यह जिक्र आवश्यक हो जाता है। हम बाहर से निवेशक बुलाने के लिए कालीन बिछाए बैठे हैं, लेकिन आंतरिक क्षमता से निकले निवेश को नहीं पुचकार रहे। निश्चित रूप से बैंकिंग के विराम को तरह-तरह से परिभाषित किया गया, लेकिन इससे कोविड के सदमे से आहत घरेलू निवेशक को राहत नहीं मिली। ऐसे में यह मूल्यांकन होना चाहिए कि अब किस-किस क्षेत्र में प्रदेश के निवेशक पैदा हुए और उन्हें भविष्य में आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है।
आवासीय सुविधाओं, आधुनिक बाजारों, बस स्टैंड, स्कूल, चिकित्सा संस्थानों तथा स्वरोजगार में आम हिमाचली का निवेश बढ़ता है, तो आर्थिकी का समावेशी आधार पैदा होगा। स्वरोजगार के लिए ढांचागत विकास तथा सरकार के साथ सहयोगी होने की नीति के तहत पात्रता तय हो, तो हाई-वे व ग्रामीण पर्यटन के तहत हजारों युवा अपने रोजगार के लिए स्वयं ही निवेश कर पाएंगे। प्रदेश में पर्यटन के जरिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ धार्मिक नगरियों के विकास मॉडल पर आधारित निवेश के घरेलू सरोकार पैदा किए जा सकते हैं। कुल मिलाकर बड़े निवेश का आह्वान अगर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संभावनाएं तलाश रहा है, तो घरेलू स्तर पर युवाओं की शक्ति, वैज्ञानिक सोच व आधुनिक शिक्षा का इस्तेमाल भी निवेश की नई प्रेरणा के साथ संभव हो सकता है।
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