- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- भविष्योन्मुखी शिक्षा
x
फाइल फोटो
देश में शिक्षा व्यवस्था को अग्रगामी सोच के साथ भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए हो रही पहलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत महत्वपूर्ण है.
जनता से रिश्ता वबेडेस्क | देश में शिक्षा व्यवस्था को अग्रगामी सोच के साथ भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए हो रही पहलों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे रेखांकित करते हुए कहा है कि 2014 के बाद से देश में उच्च शिक्षा के शीर्ष संस्थानों, जैसे आईआईटी, आईआईआईटी, आईआईएम, एम्स आदि, की संख्या बढ़ी है. देश की स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने तथा चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ की कमी को पूरा करने के लिए मेडिकल कॉलेजों की संख्या भी बढ़ायी जा रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने जानकारी दी है कि इस संख्या में 2014 के बाद से 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक महत्वाकांक्षी पहल है तथा इसके साथ ही स्कूली शिक्षा से जुड़े बोर्ड, परिषद तथा विश्वविद्यालय तंत्र पाठ्यक्रमों एवं डिग्रियों की संरचना में बदलाव कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने इस महत्वपूर्ण आवश्यकता की ओर भी ध्यान दिलाया है कि हमारी शिक्षा प्रणाली को सांस्कृतिक मूल्यों एवं आदर्शों को भी आत्मसात करना है तथा भविष्य की ओर भी उन्मुख होना है.
शोध एवं अनुसंधान के महत्व का उल्लेख करते हुए उन्होंने नालंदा एवं तक्षशिला जैसे विश्वविख्यात प्राचीन संस्थानों को याद किया. पूर्ववर्ती शिक्षा नीति के साढ़े तीन दशक बाद नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गयी है. स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने देश का आह्वान किया था कि 2047 में स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे होने तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है.
इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हो रहे तमाम प्रयासों के साथ देश को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प आधारभूत तत्व है. राष्ट्र को समृद्ध बनाने में जो आयाम सबसे अधिक आवश्यक है, वह है उत्कृष्ट शिक्षा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयत्न है. शोध एवं अनुसंधान पर बल देने के साथ भारतीय भाषाओं, प्राचीन काल से चली आ रही ज्ञान परंपराओं, जैसे- आयुर्वेद, योग, गणित, कला, सौंदर्यशास्त्र, साहित्य आदि, योग इत्यादि को भी प्राथमिकताओं में शामिल किया जा रहा है.
स्थानीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा देने को अनिवार्य किया गया है. इससे अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करने की प्रक्रिया तो शुरू ही होगी, साथ ही शिक्षा के भारतीयकरण का सिलसिला भी प्रारंभ होगा. जिस प्रकार देश में उत्पादन को इस प्रकार बढ़ावा दिया जा रहा है कि वह वैश्विक बाजार के लिए भी उपयुक्त हो, उसी तरह इस शिक्षा नीति का एक मुख्य उद्देश्य यह भी है कि इसे विश्व के स्तर पर उत्कृष्ट स्थान मिले. उल्लेखनीय है कि अनेक विदेशी विश्वविद्यालय भारत में परिसर भी स्थापित कर रहे हैं तथा भारतीय विश्वविद्यालयों से साझेदारी भी कर रहे हैं. आशा है कि शीघ्र ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिणाम हमारे सामने होंगे.
Next Story