सम्पादकीय

वित्तीय सूली पर भविष्य

Rani Sahu
8 Jun 2023 12:54 PM GMT
वित्तीय सूली पर भविष्य
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By: divyahimachal
‘सूखे पहाड़ से इक नदी चाहिए, तेरे इम्तिहान की यही सजा है।’ मंगलवार को हिमाचल मंत्रिमंडल यही सब करता हुआ दिखा। आर्थिक मुसीबतों की जमीन पर हल जोतने की यह पारी कितनी लंबी होगी, कोई नहीं जानता, लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम बता रहा है कि प्रदेश सरकार की हर इंच पर केंद्र के पहरे लगे हैं। सियासत का ऐसा रूखापन कि पर्वतीय प्रदेश को आर्थिक विषमताओं की सजा देते हुए सारे वित्तीय समाधान निचोड़ दिए गए। कुछ महीनों में हजार करोड़ के ओवरड्राफ्ट की फांस से बाहर निकलने का तोड़ ढूंढ रही सरकार के दामन में अतीत के कांटे और भविष्य की प्राथमिकताएं झूल रही हैं, तो बहस उन चिरागों से होगी जिन्हें बुझाने की कोशिश सत्ता परिवर्तन के साथ शुरू हुई है। केंद्र की आंखों में ऐसा क्या अटक गया कि जो हिमाचल चंद महीने पहले तक इन्हीं खामियों के वजूद में भी पलते हुए ईनाम पा रहा था और अब संकट के दिन बढ़ाए जाने लगे। यह हाथों में लगा खून है या पांव के छलनी होने का सबूत कि केंद्रीय नीतियों में देखते ही देखते एक प्रदेश इसलिए कसूरवार हो गया, क्योंकि यहां भाजपा के स्थान पर कांग्रेस को सत्ता मिल गई। पिछले कुछ फैसले मसलन कर्ज सीमा को 5500 करोड़ तक घटाना, वैश्विक मदद के वित्तीय पोषण को भी मात्र तीन हजार करोड़ की सीमा में बांधना और वाटर सैस जैसे अधिकार पर कुंडली मार कर बैठ जाना, तो सियासी तेजाब फैलाने जैसा ही माना जाएगा। इस लिहाज से सुक्खू सरकार के लिए राज्य की कंगाली से जनता की खुशहाली का पैगाम इतना भी सरल नहीं कि प्राथमिकताएं हमेशा उसका ही गुणगान करें।
हालांकि उम्मीदों भरे कदम उठाने में वर्तमान सरकार का कोई सानी नहीं, लेकिन दो जमा दो को चार करने के लिए ईमानदारी के सिद्धांत तो चाहिए। माना कि आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में केंद्र में भाजपा सरकार अपनी सत्ता के नुक्तों को धार दे रही, लेकिन क्या चार लोकसभा सीटों के लिए हिमाचल की जनता को वित्तीय सूली पर टांग दिया जाएगा या मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू के फैसलों को रोकने के लिए अंबर से जहर बरसाया जाएगा। यह ओपीएस की गांठ है जो केंद्र को घायल शेर बना रही है या रिवाज न बदलने की सजा हिमाचल को मिल रही है। जो भी हो, हिमाचल सरकार को अपनी आर्थिक किश्तियों में एक ओर अपने वादों की फेहरिस्त ढोनी पड़ेगी, तो दूसरी ओर केंद्र की विपरीत धाराओं में इसे आगे बढ़ाने के विकल्प तराशने होंगे। कत्र्तव्य के इम्तिहान में सियासत की लंगडिय़ों का सुक्खू सरकार कैसे मुकाबला करती है, यह वक्त के कठोरतम धरातल पर तय होगा। फिलवक्त सरकार खुद को करीने से सजाने के लिए हर मंत्रिमंडलीय बैठक में यह संदेश देने में मशरूफ दिखाई देती है कि अड़चनों के बावजूद कुछ फैसले नागरिक समाज को आकर्षित करते रहेंगे। पंचायती राज में बढ़ता मानदेय सरकार के पैगाम को हराभरा बनाता है, तो नीतिगत फैसलों से व्यवस्था परिवर्तन का झंडा बुलंद करता है। भर्तियों की पैमाइश में ब्लॉक रिसोर्स सेंटर कोआर्डिनेटर के 274 पदों पर जेबीटी व टीजीटी के पूल को तवज्जो दी जाएगी, तो कई अन्य विभागों में रिक्त पदों को भरा जाएगा। पर्यटन की दृष्टि से तीन हाईवे कम पर्यटक पुलिस थाने तथा बार खुले रखने की समय सीमा रात्रि एक बजे तक बढ़ाकर सरकार इस उद्योग के मायने बदलना चाहती है।
जाहिर है जब सरकार अपने इरादों की खिड़कियां खोल रही है, तभी उसके खजाने का बैलेंस नेगेटिव होने की सूचना दे रही है। यानी हिमाचल सरकार को एक तरफ वित्तीय कसौटी पर साबित होना है, तो दूसरी ओर भविष्य में सफल होने के लिए वैकल्पिक लंगोटी पहननी होगी। इसी परिप्रेक्ष्य में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का निजी निवेशकों से बैठकों का दौर, भविष्य की आशाओं को समेट रहा है। पचास करोड़ से अधिक निवेश करने वालों से सरकार की मुलाकात औद्योगिक व पर्यटन विकास के अलावा विद्युत उत्पादन के नए बल्ब जलाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रकट कर रही है। यह अपनी तरह का अभिनव प्रयोग है जहां मुख्यमंत्री स्वयं निवेशकों से फीडबैक लेकर सारी पद्धति को बदलकर ऐसी प्रक्रिया बनाने के इच्छुक प्रतीत होते हैं, ताकि अब तक की दिक्कतों के साम्राज्य के स्थान पर निवेश मैत्री माहौल स्थापित हो सके।
Rani Sahu

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