सम्पादकीय

हिंदी का भविष्य

Gulabi
15 Sep 2021 4:05 AM GMT
हिंदी का भविष्य
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विगत पांच दशकों से मैं परिवार सहित मराठवाड़ा के नांदेड़ शहर की मिश्र.भाषा संस्कृति में जीवनयापन कर रहा हूं

विगत पांच दशकों से मैं परिवार सहित मराठवाड़ा के नांदेड़ शहर की मिश्र.भाषा संस्कृति में जीवनयापन कर रहा हूं। मराठी मातृभाषा प्रभावयुक्त इस मराठी आंचल में राजभाषा हिंदी हमारी प्रधान बोली है क्योंकि घर में यही भाषा बोली जाती है। लेकिन घर की चौखट लांघते ही बाहर मराठी की स्वाभाविकता अपने आप प्रवाहित हो उठती है। एक लंबे अरसे से मराठी और हिंदी पत्रकारिता एवं साहित्य क्षेत्र में सेवारत होने के कारण यहां इस मराठी आंचल में पंजाबी, सिंधी, तेलगु, कन्नड़, राजस्थानी, गुजराती, उर्दू और दखनी (हैदराबादी) भाषाओं को भी सुनने का प्रतिदिन अवसर प्राप्त होता है। इस कारणवश हमारी हिंदी भाषा में दखनी, पंजाबी और अन्य भाषाओं के शब्दों का उपयोग सामान्य बात मानी जाती है। मराठवाड़ा का मूल निवासी दुनिया में कहीं भी चला जाए, अपनी मिश्रित तड़के वाली हिंदी भाषा के प्रयोग को लेकर वह आसानी से पहचान लिया जाता है कि बंदा कहां से आया है।

अनेक प्रसंगों पर, बाहरी प्रदेशों में इस तरह की हिंदी बोलते समय मैं भी बहुत बार पकड़ा जा चुका हूं। दूसरी ओर जब कभी मेरा मुंबई जाना होता है, तब वहां अपनी हिंदी के सामने 'मुंबईया बोली के हमलों से भी छिन्न-भिन्न होने का एक अलग अनुभव मिल जाता है। मुंबई और दक्षिण भारत में यात्रा के दौरान सुनी और बोली जाने वाली भाषा कोई चमत्कारिक अनुभव दे जाती है जिसे मैं भाषा.जगत में बहुत विशेष मानता हूं। एक शुद्ध हिंदी पाठक के लिए महाराष्ट्र में दुकानों के नामों की हिंदी में लिखीं हुईं तख्तियां दिलचस्पी का विषय होती हैं। वाहनों के पीछे लिखे हिंदी के मुहावरे भी अनर्थ का संज्ञान परोसते हैं, तब भाषाई पिछड़ेपन का भाव व्यंग में समाकर हंसी के रूप में उभर आता है। फिर भी बड़े संतोष का विषय है कि महाराष्ट्र में हिंदी बोलने वालों की संख्या छह करोड़ के लगभग है। हिंदी साहित्य क्षेत्र की सेवा के अतिरिक्त बॉलीवुड क्षेत्र को भी हिंदी के प्रसार का श्रेय जाता है। अपनी हिंदी, मराठी को लेकर जहां मैं कुछ हद तक संतुष्ट हूं, वहीं अंग्रेजी और पंजाबी के व्याकरण को लेकर आज भी विद्यार्थी दशा में ही हूं।
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं निकाला जाए कि किसी भाषा को लेकर मेरे मन में कोई दुजाभाव है। मैं भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त सभी भाषाओं के प्रति अपने मन में समान आदर रखता हूं। मेरा सौभाग्य है कि इस बहुभाषीय क्षेत्र में मेरा जन्म हुआ और जीवन जीने का एक दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। वहीं राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा हिंदी और प्रांतीय भाषा मराठी में कार्य करने का मुझे अवसर प्रदान हुआ। मैं केवल हिंदी दिवस के दिन ही हिंदी की सेवा की बात या बढ़ाई नहीं करता, अपितु वर्षभर हिंदी के स्फुरण में रहकर अपने नैतिक कर्म और जीवनशैली में हिंदी भाषा को सम्मान सहित उपयोग में लाता हूं। देवनागरी लिपि के जरिये हिंदी और मराठी रचनाकार्य अमल में लाना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव है। महाराष्ट्र के मराठी भाषिक व्यक्तित्व, साहित्यकार, पत्रकारों ने भी स्वतंत्रता पश्चात हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए अपना योगदान दिया हुआ है। आचार्य काकासाहेब कालेलकर, शंकर शेष, मधुकरराव चौधरी, नरहर विष्णु गाडगील सहित अन्य लोगों ने हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए अपना उल्लेखनीय योगदान प्रदान किया था। बहरहाल, भारत का आने वाला कल हिंदी भाषा का नया युग अधोरेखित करेगा, ऐसी आशा हम कर सकते हैं।
रविंद्र सिंह मोदी, लेखक नांदेड़ से हैं
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