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भूपेंद्र सिंह| 75वें स्वतंत्रता दिवस के साथ ही भारत ने एक नए युग में प्रवेश कर लिया है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष की हमारी गौरवशाली यात्रा यह उम्मीद जगाती है कि आने वाले समय में हम और अधिक तेज गति से आगे बढ़ेंगे और इस क्रम में उन सपनों को भी साकार करेंगे, जो हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने भी देखे और हमारी आज की पीढ़ी भी देख रही है। ये सपने हैं सक्षम, आत्मनिर्भर और समरस भारत के-एक ऐसे भारत के, जिसमें सभी सुखी और समृद्ध हों और सबके बीच सद्भाव हो। भविष्य के भारत का निर्माण करने के लक्ष्य की ओर बढ़ते समय हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि हम केवल 75 साल पुराने राष्ट्र नहीं हैं। यह अच्छा हुआ कि स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री ने यह याद दिलाया कि विभाजन के दर्द को भूला नहीं जाना चाहिए। भारत का विभाजन केवल देश के लिए ही नहीं, दुनिया के लिए भी एक बड़ी त्रासदी था। इस त्रासदी ने जो सबक दिए, वे विस्मृत नहीं होने चाहिए। इसी तरह हमें अपनी उस सांस्कृतिक थाती को भी विस्मृत नहीं करना चाहिए, जो हमने अपनी परंपराओं में संजो रखी है। हमारी संस्कृति और उसकी समृद्ध परंपराओं ने हमें विशिष्ट रूप में गढ़ा है, इसलिए हमें उनका स्मरण भी करते रहना है और खुद को एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में ढालना भी है, क्योंकि यही समय की मांग है।