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- तस्करी का सामान नहीं...
कैलाश सत्यार्थी। सीमा (बदला हुआ नाम) को महज 13 साल की उम्र में उनके गांव के कुछ लोगों द्वारा चुराकर दिल्ली की एक प्लेसमेंट एजेंसी में बेच दिया गया था। फिर प्लेसमेंट एजेंसी से एक दंपति ने उन्हें घरेलू कामगार के रूप में केवल 20,000 रुपये में खरीद लिया। लेकिन वहां से मजदूरी के नाम पर उनको एक रुपया भी नहीं मिला। इतना ही नहीं, नियोक्ताओं और ट्रैफिकर (तस्कर) द्वारा उनका बार-बार बलात्कार और शोषण किया जाता रहा। अपनी बेटी के लापता होने से निराश और घनघोर पीड़ा झेलने के बाद सीमा के मजदूर पिता हमारे पास आए। हमने सीमा को दिल्ली के एक घर में ढूंढ़ लिया। लेकिन, हमारे लिए यह हैरानी की बात थी कि गुलामी और शोषण से आजाद होने के बाद भी वह दुखी थीं और हमारे सामने नहीं आ रही थीं। पिता से मिलने के बजाय वह रोते हुए दीवार के पीछे छिप गईं। बहुत कुरेदने पर उन्होंने रोते हुए कहा, 'मैं पिता को अपना चेहरा नहीं दिखा सकती। मैं अब गंदी हो चुकी हूं। मैं खुद को मार डालना चाहती हूं।' यह सुनकर मेरा सिर शर्म से झुक गया।