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सम्पादकीय
मौज गहरा मामला है और आनंद के निकट है, मस्ती में जरा-सा चूक जाएं तो वह भोग-विलास में भी बदल सकती है
Gulabi Jagat
30 March 2022 8:45 AM GMT
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मौज-मस्ती हम मनुष्यों का स्वभाव है। इन पर लगातार काम करते रहना चाहिए
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
मौज-मस्ती हम मनुष्यों का स्वभाव है। इन पर लगातार काम करते रहना चाहिए। अपनी दिनचर्या में कुछ काम ऐसे करिए जिनमें कि मौज-मस्ती का छींटा हो। कुछ देशों में कई व्यावसायिक संस्थानों में शाइनिंग मंडे और प्रीमियम फ्राइडे की व्यवस्था है। यानी सोमवार को काम थोड़ा देर से शुरू करो और शुक्रवार को अपने कार्यस्थल से जल्दी निकल जाओ। इसका उद्देश्य है मानसिक ऊर्जा का मौज-मस्ती में उपयोग करना।
लेकिन, मौज व मस्ती में फर्क है। इस फर्क को समझना चाहिए। मौज गहरा मामला है और आनंद के निकट है, मस्ती में जरा-सा चूक जाएं तो वह भोग-विलास में भी बदल सकती है, दुर्गुणों को पोषित कर सकती है। यह बिल्कुल ऐसा है, जैसे वेट लॉस और फैट लॉस। कुछ लोग अपना वजन कम करने में जुट जाते हैं। मेडिकल साइंस के अनुसार एक सीमा के बाद यह खतरनाक है, क्योंकि इस प्रक्रिया में मांसपेशियां, चर्बी, हड्डियां इनमें गिरावट आती है जो सेहत के लिए ठीक नहीं होती।
फैट लॉस में फायदा है, क्योंकि इसमें चर्बी घटती है और मसल्स में बदलकर एक जगह सुरक्षित हो जाती है। फिर वजन भले ही न घटे, स्वास्थ्य को सपोर्ट मिल जाता है। मौज और मस्ती इसी तरह है। मौज हमेशा कायम रहना चाहिए, मस्ती के रूप बदल सकते हैं। तो क्यों न अपना शाइनिंग मंडे और प्रीमियम फ्राइडे खुद ही बनाएं और खुद ही मनाएं। स्वयं भी खुश रहे, दूसरों को भी खुश रखें।
Tagsओपिनियन
Gulabi Jagat
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