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नए कृषि कानूनों के खिलाफ बुलाए गए भारत बंद को विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों |
जनता से रिश्ता वेबडेसक| नए कृषि कानूनों के खिलाफ बुलाए गए भारत बंद को विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ-साथ जिस तरह कांग्रेस ने भी अपना समर्थन देने की घोषणा की उस पर हैरानी नहीं। कांग्रेस पहले दिन से इन कानूनों का विरोध करने में लगी हुई है। यह बात और है कि उसने पिछले लोकसभा चुनाव के अवसर पर अपने घोषणापत्र में साफ तौर पर वे सारे कदम उठाने का वादा किया था जो इस कृषि कानूनों के जरिये उठाए गए हैं। कांग्रेस अवसरवादी राजनीति का जैसा उदाहरण पेश कर रही है उसकी मिसाल मिलना कठिन है। अपनी इसी अवसरवादी राजनीति के कारण कांग्रेस ने पहले पंजाब में विभिन्न किसान संगठनों को सड़कों पर उतारा और फिर उन्हें दिल्ली कूच करने के लिए प्रेरित किया।
किसानों के हित की बात करते हुए आठ दिसंबर को बुलाए गए भारत बंद के पक्ष में जैसे तर्क दिए जा रहे हैं उनसे यह साफ है कि किसानों के हित की बात करने वाले विभिन्न राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक संगठन अपने संकीर्ण हितों को सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
जिस तरह से नए कृषि कानूनों को खत्म करने की जिद पकड़ ली गई है उससे यही स्पष्ट होता है कि इन तथाकथित किसान हितैषी संगठनों का उद्देश्य अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करना और केंद्र सरकार को नीचा दिखाना है। यदि ऐसा कुछ नहीं है तो क्या कारण है कि पहले जहां इस पर जोर दिया जा रहा था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को सुनिश्चित किया जाए वहीं अब यह बेजा मांग की जा रही है कि नए कानूनों को रद कर दिया जाए? इस तरह की मांग लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के प्रतिकूल ही है। विभिन्न दलों के साथ-साथ कांग्रेस जिस तरह नए कृषि कानूनों के खिलाफ आ खड़ी हुई है उससे तो यही लगता है कि उसे यह आशंका है कि कहीं इन कानूनों से किसानों को मिलने वाले लाभ के चलते उसकी राजनीतिक जमीन और अधिक कमजोर न हो जाए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मोदी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है और नए कृषि कानून उसी प्रतिबद्धता का परिचायक हैं।
शायद यही कारण है कि कांग्रेस एवं अन्य राजनीतिक दल किसानों को गुमराह करने में लगे हुए हैं और हास्यास्पद यह है कि वे बातें तो किसानों के हित की कर रहे हैं, लेकिन वस्तुत: आढ़तियों और बिचौलियों की मांगों को आगे बढ़ा रहे हैं। उचित यह होगा कि किसान संगठन यह देखें-समझें कि अतीत में उनके हितों की रक्षा का हवाला देकर उनके साथ कैसा छल किया गया है। इसका एक उदाहरण बंगाल के सिंगूर में टाटा की परियोजना का संकीर्ण राजनीतिक कारणों से किया गया विरोध है, जिसके दुष्परिणाम किसानों को ही भोगने पड़े।
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