सम्पादकीय

महंगाई का ईंधन

Subhi
8 July 2022 4:23 AM GMT
महंगाई का ईंधन
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आम आदमी की रसोई से रौनक गायब है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम ऊपर ही चढ़ते जा रहे हैं। उसके ऊपर रसोई गैस की कीमत में बढ़ोतरी से दोहरी मार पड़ रही है। इस साल मार्च से लेकर अब तक रसोई गैस के दाम चार बार बढ़ चुके हैं।

Written by जनसत्ता; आम आदमी की रसोई से रौनक गायब है। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम ऊपर ही चढ़ते जा रहे हैं। उसके ऊपर रसोई गैस की कीमत में बढ़ोतरी से दोहरी मार पड़ रही है। इस साल मार्च से लेकर अब तक रसोई गैस के दाम चार बार बढ़ चुके हैं। इस तरह पिछले एक साल में घरेलू रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत दो सौ चौवालीस रुपए तक बढ़ चुकी है। तेल कंपनियों को यह बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय बाजार में र्इंधन की चढ़ती कीमतों के मद्देनजर करनी पड़ी है। आगे भी इसमें कमी के कोई आसार नजर नहीं आ रहे।

इसी तरह पेट्रोल और डीजल के दाम ऊपर चढ़ने शुरू हुए और हाहाकार मचने लगा तो केंद्र और राज्य सरकारों ने उनके करों में कटौती कर कुछ राहत देने की कोशिश की। र्इंधन की बढ़ती कीमतों का असर तमाम वस्तुओं पर पड़ता है, जिसके चलते महंगाई पर काबू पाना कठिन बना रहता है। इस समय खुदरा से अधिक थोक महंगाई बेकाबू है। इसलिए सरकार की चिंता स्वाभाविक है। महंगाई रोकने के लिए केंद्र ने कुछ राहत के कदम भी उठाए हैं, जैसे कुछ वस्तुओं के निर्यात पर रोक लगाई है, कुछ के आयात पर शुल्क घटाए हैं, अभी खाद्य तेलों पर दस रुपए की कटौती करने को कहा है। मगर ये कदम फौरी राहत भर दे सकते हैं।

रसोई गैस पर सबसिडी समाप्त कर दी गई है। यह केवल उज्ज्वला योजना का लाभ उठाने वाले लोगों को ही दी जाती है। इस तरह मध्यवर्गीय परिवारों को रसोई का खर्च अब भारी पड़ने लगा है। उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त सिलेंडर जरूर बांटे गए थे, चुनाव के वक्त कुछ सरकारें त्योहारों पर मुफ्त गैस देने की घोषणा भी करती देखी गर्इं, मगर इससे गरीब की रसोई में रौनक लौटती नजर नहीं आ रही। जिन लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत सिलेंडर बांटे गए थे, उनके पास उसमें गैस भराने के पैसे नहीं हैं।

कई सर्वेक्षणों से स्पष्ट है कि गरीब परिवारों के लोग फिर से पारंपरिक र्इंधन का इस्तेमाल करने लगे हैं। खुद सरकार का दावा है कि बहुत सारे परिवार मुफ्त राशन योजना पर निर्भर हैं। ऐेसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे सिलेंडर में गैस कहां से भराएंगे। यानी गैस की खपत भी ज्यादा नहीं बढ़ी है, फिर भी कीमत पर अंकुश लगाना चुनौती बना हुआ है।

हालांकि सरकार ने व्यावसायिक सिलेंडर के दाम बढ़ाने से बचने का प्रयास किया है, मगर वह पहले ही इतना बढ़ चुका है कि उससे महंगाई रोकने में बहुत मदद नहीं मिल रही। खाने-पीने का कारोबार करने वालों के सामने वस्तुओं की कीमत बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस तरह उनके ग्राहकों की संख्या पर असर पड़ रहा है।

पहले ही लोग बेरोजगारी और मंदी की मार झेल रहे हैं, जिसके चलते उनकी कमाई नहीं बढ़ पा रही। उस पर महंगाई की मार जीना दूभर कर रही है। समस्या केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और र्इंधन के दाम में बढ़ोतरी से नहीं है। अर्थव्यवस्था को संभालने वाले सभी स्तंभ कमजोर हो चले हैं। अगर लोगों की कमाई बढ़ेगी, तभी खपत भी बढ़ेगी। खपत नहीं बढ़ेगी, तो थोक महंगाई चुनौती बनी रहेगी। यानी भारी उद्योगों के सामने संकट बना रहेगा, जिनके बल पर अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का प्रयास किया जाता है। इसलिए तदर्थ के बजाय स्थायी उपायों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश होनी चाहिए।


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