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- महंगाई का ईंधन
Written by जनसत्ता; महंगाई को लेकर विपक्ष हमलावर है, मगर सरकार इस पर काबू पाने का कोई उपाय तलाशती नजर नहीं आती। रोज डीजल और पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है, रसोई गैस और वाहनों में इस्तेमाल होने वाली प्राकृतिक गैस यानी सीएनजी की कीमतें भी थोड़े-थोड़े अंतराल पर बढ़ जा रही हैं। कहा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते तेल आपूर्ति में रुकावट आने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। मगर पांच राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव के मद्देनजर सरकार ने करीब तीन महीने र्इंधन की कीमतों की समीक्षा रोके रखी।
उनमें कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। यहां तक कि उस दौरान केंद्र ने उत्पाद शुल्क में कटौती कर तेल की कीमत घटाई थी। जबकि उस दौरान भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऊपर थीं। तब स्वाभाविक ही पूछा जा रहा था कि अगर सरकार चुनाव के समय तेल की कीमतों पर नियंत्रण कर सकती है, तो बाद में क्यों नहीं। विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से डीजल और पेट्रोल की कीमतें अब तक थोड़ा-थोड़ा करके सात रुपए से अधिक बढ़ चुकी हैं। इसी तरह प्राकृतिक गैस यानी सीएनजी की कीमतों में दो बार बढ़ोतरी हो चुकी है। महीना भी नहीं हुआ कि सीएनजी की कीमत में एक रुपए तीस पैसे प्रति किलो की बढ़ोतरी हो चुकी है।
ईंधन के दाम में बढ़ोतरी की मार सबसे अधिक गरीब, मध्यवर्ग और छोटे कारोबारियों पर पड़ती है। घरेलू गैस का सिलेंडर एक हजार रुपए से पार पहुंच गया है। व्यावसायिक सिलेंडर की कीमत पिछले एक महीने में दो बार बढ़ चुकी है। ताजा बढ़ोतरी ढाई सौ रुपए की हुई है। इसी तरह पाइप के जरिए घरों में पहुंचने वाली रसोई गैस यानी पीएनजी की कीमत पांच रुपए प्रति घन मीटर बढ़ा दी गई है।
खुदरा और थोक महंगाई इस समय अपने शिखर पर है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी हैं, जिसे लेकर आम लोग परेशान हैं। तिस पर तेल और गैस की कीमतें बढ़ने से उन पर अतिरिक्त मार पड़नी शुरू हो गई है। तेल की कीमतें बढ़ने से केवल उन लोगों की जेब पर असर नहीं पड़ता, जो बड़ी गाड़ियों में चलते हैं, बल्कि दुपहिया, तिपहिया और सार्वजनिक वाहनों से चलने वालों पर भी इसका असर पड़ता है। माल ढुलाई का खर्च बढ़ता है, तो उसकी मार हर वर्ग पर पड़ती है। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
पिछले कार्यकाल में केंद्र सरकार ने उज्ज्वला योजना को बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाया। मगर हालत यह है कि पिछले सात सालों में घरेलू गैस की कीमतें करीब ढाई गुना बढ़ चुकी हैं। लोगों को मुफ्त के सिलेंडर तो मिल गए, मगर उनमें गैस भराने के पैसे उनके पास नहीं हैं। अब बहुत सारे लोगों के सामने यह विकल्प भी नहीं बचा है कि पुराने तरीके से रसोई पका सकें।
इसी तरह व्यावसायिक सिलेंडर की कीमत बढ़ने से छोटे स्तर के बहुत सारे कारोबारियों पर मार पड़ी है। खानपान की दुकानें चलाने वालों के सामने संकट है कि अगर वे अपनी वस्तुओं की कीमत बढ़ाते हैं, तो ग्राहक घटने की आशंका रहती है और न बढ़ाएं तो घाटा उठाना पड़ता है। इस समय तेल पर करीब सत्ताईस रुपए प्रति लीटर उत्पाद शुल्क वसूला जाता है। अगर सरकार केवल उसमें कटौती कर दे, तो कीमत नियंत्रण में आ जाएगी। मगर उसका ऐसा इरादा दिख नहीं रहा।