सम्पादकीय

सीमांत क्षेत्र : पूर्वोत्तर पर खास नजर, राष्ट्रीय विकास का आर्थिक वाहक बनेगा यह इलाका

Neha Dani
7 April 2022 1:47 AM GMT
सीमांत क्षेत्र : पूर्वोत्तर पर खास नजर, राष्ट्रीय विकास का आर्थिक वाहक बनेगा यह इलाका
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इसलिए कुछ अच्छी शुरुआत के बावजूद, पूर्वोत्तर को शांति और विकास का क्षेत्र बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद से ही यह तर्क देते हुए, कि चारों तरफ से भू-सीमाओं से घिरा यह सीमांत क्षेत्र आगे राष्ट्रीय विकास का आर्थिक वाहक बनेगा, लगातार पूर्वोत्तर पर ध्यान केंद्रित किया है। उनकी सरकार ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है और पहले से शुरू की गई, लेकिन लंबे समय तक अधूरी छोड़ दी गई परियोजनाओं को समय से पूरा किया है। लेकिन क्या स्थायी शांति और राजनीतिक स्थिरता के बिना आर्थिक विकास हो सकता है?

इसलिए वर्ष 2019 में सत्ता में लौटने के बाद से, प्रधानमंत्री मोदी ने लंबे समय से चले आ रहे उग्रवाद, और राज्यों के बीच सीमा विवादों को हल करने पर ध्यान केंद्रित किया, जो अक्सर हिंसा का कारण बनते हैं। अब मोदी सरकार ने विवादास्पद कानून सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफ्स्पा) को रद्द किए बिना ही असम, नगालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में इस कानून का दायरा कम करने का फैसला किया है।
निश्चित रूप से केंद्र सरकार के इस फैसले से वे लोग खुश नहीं होंगे, जो इस कठोर कानून का पूरी तरह से खात्मा चाहते थे और जिन्होंने इसके लिए लंबे समय तक अदालतों में और सड़कों पर आंदोलन किया है। लेकिन अपने इस फैसले के जरिये केंद्र सरकार यह संकेत देने में सफल हो सकती है कि अफ्स्पा कानून का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इन तीन राज्यों के निवासियों द्वारा केवल बहुत जरूरी होने पर ही इस कानून को विवेकपूर्ण ढंग से लागू करने का स्वागत किया जा सकता है, खासकर उन क्षेत्रों से, जहां से अफ्स्पा को वापस लिया जाएगा।
इस तरह से यह समझ में आता है कि इस विवादास्पद कानून को केवल चरम स्थितियों में ही उपयोग में लाया जाएगा, लेकिन विद्रोही हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में स्थिति सामान्य होते ही इसे जल्द ही वापस ले लिया जाएगा। इसलिए अफ्स्पा कानून अभी बरकरार है, लेकिन सरकार के ताजा फैसले से असम के अधिकांश क्षेत्रों, नगालैंड और मणिपुर के कई इलाकों से अफ्स्पा कानून को वापस लेने का फैसला सही दिशा में एक कदम है। पूर्वोत्तर से जुड़े एक अन्य घटनाक्रम पर भी गौर करना जरूरी है।
बीते दिनों असम और मेघालय के प्रतिनिधियों के बीच अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए जो समझौता हुआ, वह पूर्ण समझौता नहीं है। यहां तक कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, जो इस समझौते पर हस्ताक्षर के समय मौजूद थे और जिन्होंने इसे एक 'ऐतिहासिक दिन' बताया, ने अपने ट्वीट में स्वीकार किया कि यह सौदा 70 प्रतिशत विवाद को हल करता है। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने ज्यादा स्पष्टता से मीडियाकर्मियों को बताया कि '12 क्षेत्रों पर हमारे बीच मतभेद थे, लेकिन हमने छह क्षेत्रों पर असम के साथ समझौता किया है।
इसके अलावा सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा दोनों राज्यों की सहभागिता के साथ एक सर्वे किया जाएगा और जब सर्वे का काम पूरा हो जाएगा, तब वास्तविक सीमांकन होगा।' हालांकि यह पूर्ण समझौता नहीं है, लेकिन इसे सही दिशा में उठाया गया कदम बताया गया है। सबसे बड़ी बात है कि इस विवाद को निरंतर बातचीत के जरिये सुलझाया गया है, जिसमें केंद्र ने सूत्रधार की भूमिका निभाई है। कोई भी इस बात से असहमत नहीं होगा कि जिस देश में राज्य अक्सर सीमाओं या नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तल्ख विवाद करते रहते हैं, वहां केंद्र की बहुत बड़ी भूमिका होती है।
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने सीमा विवाद को बढ़ाने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया है। तथ्य यही है कि आजादी के बाद के इतिहास में ज्यादातर कांग्रेस ही केंद्र और पूर्वोत्तर राज्यों में शासन में रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों में विवाद बढ़ते रहे हैं और अक्सर हिंसक रूप लेते रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि केंद्र की ओर से ऐसी कोशिशें कम रहीं कि वह राज्यों को बैठकर बातचीत के माध्यम से मतभेदों को सुलझाने के लिए प्रेरित करती।
असम का उन सभी चारों राज्यों के साथ सीमा विवाद है, जो इससे अलग हुए थे-नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय। केंद्र द्वारा सुलभ बातचीत के माध्यम से असम मेघालय सीमा विवाद का समाधान अन्य सीमा विवादों को हल करने की शुरुआत हो सकता है, जो अक्सर हिंसक हो जाते हैं। अतीत में असम और उसके पड़ोसी राज्यों के पुलिस बलों के बीच खूनी संघर्ष भी हुए हैं। मिजोरम पुलिस के साथ संघर्ष में पिछले वर्ष असम के पांच पुलिसकर्मी मारे गए थे।
वर्ष 2019 में नरेंद्र मोदी की अगुआई में केंद्र की सत्ता में भाजपा की वापसी के बाद से पूर्वोत्तर के राज्यों पर केंद्र सरकार की खास नजर रही है। केंद्र सरकार ने न केवल रेलवे और पुलों जैसे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पूरा करने में दिलचस्पी दिखाई, बल्कि राजनीतिक मुद्दों और विभिन्न राज्यों के बीच सीमा विवादों को हल करने की दिशा में भी सक्रिय भमिका निभाई है। यदि पूर्वोत्तर के राज्यों को दक्षिण पूर्व एशिया से जुड़ने के लिए भारत की 'ऐक्ट ईस्ट' नीति के केंद्र में रहना है, तो उसे राजनीतिक रूप से स्थिर और शांतिपूर्ण होना होगा।
मोदी सरकार यही हासिल करना चाहती है, लेकिन उसे इस दिशा में अभी काफी कुछ करना होगा। 23 साल की बातचीत के बाद भी नगा शांति प्रक्रिया अब भी अटकी हुई है और नगा समस्या का समाधान पूर्वोत्तर में उग्रवाद से निपटने की कुंजी है। इसी तरह नगालैंड और मिजोरम के साथ असम के सीमा विवादों का समाधान खोजना अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन सीमाओं पर अक्सर हिंसा भड़कती रही है। इसलिए कुछ अच्छी शुरुआत के बावजूद, पूर्वोत्तर को शांति और विकास का क्षेत्र बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

सोर्स: अमर उजाला

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