सम्पादकीय

आमिर खान के विज्ञापन वाले 'ज्ञान' पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक घमासान

Shiddhant Shriwas
23 Oct 2021 12:36 PM GMT
आमिर खान के विज्ञापन वाले ज्ञान पर सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक घमासान
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विज्ञापन बनाने वालों को हमेशा दिमाग को विस्तृत रूप देकर तब पटकथा लिखनी चाहिए.

आमिर खान (Amir Khan) और विवाद, यूं समझिए कि ये दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं. साथ हैं तो संपूर्ण हैं. गाहे बगाहे, ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि आमिर खान विवादों में घिरे. उनके लिए ये वाकया सालाना कमाई जैसा है. फिल्म भले ही कम करते हों, विवादों में हमेशा ज्यादा रहे हैं. अबकी बार आमिर खान के विज्ञापन पर विवाद है. विज्ञापन एक टायर की कंपनी का है. जिसके जरिए, वो देशवासियों को एक अच्छी सलाह देते नजर आ रहे हैं, कि सड़क ट्रैफिक के लिए है ना कि पटाखे फोड़ने के लिए. कुछ रोज पहले इसी टायर की कंपनी का एक और विज्ञापन आमिर खान ने किया था. उसमें भी हिंदू रीति रिवाज से शादियों में निकलने वाली बारात और उसमें होने वाले नाच गाने पर मशविरा दिया गया था.

आमिर खान कहते हैं- सड़क ट्रैफिक के लिए होती है, ना कि नागिन डांस के लिए. इस विज्ञापन में भी पटाखे फोड़े जाते हैं. दोनों ही विज्ञापन के बाद हिंदू वर्ग और सनातन धर्म को मानने वालों की भावनाएं आहत हुईं और जागृत भी. लोग तुरंत ही आमिर खान के ज्ञान पर बरस पड़े और पूछ पड़े कि जब सड़क पर नमाज होती है, तब आमिर खान का ज्ञान कहां गायब हो जाता है? जब सड़कों पर तलवार, भाले और तमंचे लेकर चंद मजहबी लोग या हुसैन या हुसैन करते हैं, तब आमिर खान जैसे लोगों का ज्ञान कहां फुर्र हो जाता है?
समाज में नफरत का जहर घोलने वाला सौदागर कौन?
चलिए, मान लेते हैं कि आमिर खान ने विज्ञापन के जरिए एक विशेष धर्म को टारगेट किया. मगर क्य हिंदू और सनातनी लोगों ने एक पल के लिए ये सोचा कि उन्होंने जो भी किया है, उसमें एक संदेश अच्छा भी है. अगर आप सड़क पर पटाखे नहीं फोड़ेंगे तो कई जिंदगियों के लिए मुसीबत खड़ी नहीं होगी. अगर आमिर कहते हैं कि पटाखे सोसायटी के अंदर ही फोड़ो, तो इसमें बड़े, बुजुर्ग, बच्चे सबकी जिंदगियां माएने रखती हैं.

बीजेपी सांसद अनंत हेगड़े का लेटर.
हम क्यों, किसी भी मुद्दे को कम्युनल रंग देने पर उतारू हो जाते हैं? हम क्यों, त्योहार नजदीक आते ही किसी भी एक विषय को पकड़कर तकरार के मूड में आ जाते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम या आप, सोशल मीडिया पर किसी खास एजेंडे के तहत टारगेट किए जाते हैं और इससे किसी और का फायदा होता है. शायद कंपनी का. शायद ब्रांड का. शायद इंसान का. या शायद कुछ और. मगर मैं आपसे इससे भी एक कदम आगे बढ़ता हूं और एक सवाल पूछता हूं.
"क्या बैन, बायकॉट और बहिष्कार के पीछे समाज में कोई नफरती सौदागर बैठा है?"
ये सौदागर किसी भी रूप में हो सकते हैं. जिनका सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद होता है, समाज में जहर घोलना. लोगों के दिलों में नफरतों का बीज बोना. धर्म को धर्म से लड़ाना. सौहार्द को असहिष्णुता से लड़ाना. शांति को झूठी क्रांति से भिड़ाना. और इसके बावजूद अगर कुछ बच जाए, तो घृणा, द्वेष और दंगा कराकर उसे भी खत्म कर देते हैं. बीते कुछ सालों में लोगों की सोच, समझ और विचारों में गजब की तब्दीलियां हुई हैं. दिमाग या तो राइट की तरफ पूरी तरह घूमता है या पूरी तरह लेफ्ट की ओर. बहुत कम बचे हैं जो न्यूट्रल होकर हर मुद्दे पर सोच पाएं. तो क्या आमिर खान के भी विज्ञापन को हवा दी गई है या वाकई विज्ञापन बनाने वाले ने या फिर कंपनी ने या स्वयं आमिर खान ने कोई गलती की है?
धर्म-आस्था और विश्वास को चोटिल करने वाले विज्ञापन क्यों बनाए जाते हैं?
जब आप जनसंचार की पढ़ाई करेंगे. जब आप संवाद पर विचार-विमर्श करेंगे. जब आप सूचना के संप्रेषण का तरीका समझने की कोशिश करेंगे तो आपको एक जानकारी हमेशा दी जाएगी. हमेशा अपने मंतव्य, अपने विचार, अपने लेख को संयमित रखें. इसका ख्याल रखें कि आपकी वजह से किसी के धर्म, आस्था या विश्वास पर चोट ना पड़े. अगर गौर से देखेंगे तो टायर कंपनी के विज्ञापन में ब्रैंड एंबेसेडर आमिर खान ने इसका ख्याल नहीं रखा. चाहते तो रखा जा सकता था. क्योंकि हमारे यहां शादियों में अगर नागिन डांस ना हो तो वो शादी अधूरी मानी जाती है. वो नागिन डांस सड़क पर क्यों करना पड़ता है. इसके पीछे भी कई वजह है, कई दलीलें हैं, कई रीति-रिवाज हैं.
हां, मगर ऐसा भी हुआ है कि अगर आप हिंदू रीति रिवाज से निकले बैंड बाजों को सड़क पर देखेंगे, तो एक कायदा आपको हमेशा नजर आएगा. बाराती सलीके से सड़क का एक किनारा पकड़ते हैं और उसी बाराती में शामिल दो-चार शख्स पूरी शिद्दत से कोशिश करते हैं कि सड़क जाम ना हो. उसी तरह, जब दीपावली आती है तो लोग खुशी में लोग पटाखे फोड़ते हैं. क्योंकि बिन पटाखा दीपावली को खाली ही समझा जाता है. लिहाजा, लोग घरों से बाहर निकलते हैं. सामने सड़क पर आते हैं. पटाखा फोड़ते हैं. ऐसा नहीं है कि इससे परेशानी नहीं होती, मगर इतना भी तय है कि हर शुक्रवार वाली परेशानी तो बिल्कुल भी नहीं होती.
सड़क पर नागिन डांस और पटाखे फोड़ने की जरूरत है, ठीक वैसे ही जैसे नमाज पढ़ना
भारत एक लोकतांत्रिक देश है. सौहार्द का देश है. प्रेम का देश है. भाईचारे का देश है. ईद हो या दीपावली. रमजान हो या दशहरा. कोई ऐसा त्योहार नहीं है जिसे हर धर्म के लोग मिल जुलकर नहीं मनाते हैं. हमारा आपका सबका पहला धर्म है कि दूसरे धर्म की आस्था और विश्वास का ख्याल रखा जाए. और ये ख्याल रखे जाने का ही मतलब है कि हम हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब की इज्जत करते हैं. लोग सड़क पर नमाज क्यों अदा करते हैं, क्योंकि मस्जिदों में जगह कम होती है. विवाद उस पर भी नहीं होना चाहिए. एक बार शांत दिमाग से सोचना चाहिए, कि आखिर वो ऐसा करने को मजूबर क्यों होते हैं. दूसरी तरफ शादियों में नागिन डांस हो या फिर सड़कों पर पटाखा फोड़ना, ये भी समाज की जरूरत है, इस पर फिर कभी बात होगी.
विज्ञापन समाज का आईना हो सकता है, आइन नहीं
विज्ञापन बनाने वालों को हमेशा दिमाग को विस्तृत रूप देकर तब पटकथा लिखनी चाहिए. वरना दीपावली के जश्न-ए-रिवाज और हिंदू महिला की मुस्लिम परिवार में गोदभराई जैसी पटकथाएं समाज में विद्वेष का कारण ही बनेंगी. पटकथाओं में देवी-देवताओं के बाल सैलून में काटे जाएंगे तो एक धर्म विशेष के लोग विरोध जरूर करेंगे. विज्ञापन की पटकथा में MC-BC जैसे शब्दों का इस्तेमाल होगा तो जरा आप ही बताएं कि कैसे हिंदुस्तान का, हिंदुस्तानियों का और गंगा जमुनी तहजीब को मानने वालों का मन व्यथित नहीं होगा. विज्ञापन को समाज का आईना समझा गया है, आइन नहीं. ये बनाने वालों को भी समझने की जरूरत है.
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