सम्पादकीय

ओलिंपियन से अपराध तक

Triveni
25 May 2021 3:14 AM GMT
ओलिंपियन से अपराध तक
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पूरा देश सकते में है और हरियाणा के लोग भी परेशान हैं क्योंकि राज्य के युवाओं के लिए रोल मॉडल रहे पहलवान सुशील कुमार और उसके साथी को पुलिस ने हत्या के मामले में गिरफ्तार कर ही लिया।

आदित्य चोपड़ा| पूरा देश सकते में है और हरियाणा के लोग भी परेशान हैं क्योंकि राज्य के युवाओं के लिए रोल मॉडल रहे पहलवान सुशील कुमार और उसके साथी को पुलिस ने हत्या के मामले में गिरफ्तार कर ही लिया। कितने ही युवा सुशील कुमार को अपना आदर्श मानकर कुश्ती की तरफ आकर्षित हुए होंगे, कितनों ने अभ्यास शुरू किया होगा। जब भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में हमने उसे पदक बटोरते देखा तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हुआ। देश की प्रतिष्ठा को गौरवांवित करने के लिए उसके प्रति हमारे दिलों में सम्मान भी बढ़ गया। भारत में पहलवान गामा से लेकर गुरु हनुमान तक ने इसी विद्या में नाम कमाया लेकिन इस मामले में साफ है कि गुरुओं द्वारा स्थापित परम्पराओं को शर्मसार होना पड़ा है। दरअसल सुशील कुमार ही ऐसे पहलवान हैं जिसने ओलिंपियन में दो पदक जीते, पहले कांस्य और फिर दूसरे ओलिम्पिक रजत पदक जीता। उसने तीन बार राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीते। यद्यपि सुशील कुमार ने कानून से बचने की बहुत कोशिश की लेकिन कहते हैं कि कानून के हाथ लम्बे होते हैं। वैसे तो हमने कई नायकाें को खलनायक बनते देखा है। 23 वर्ष के सागर धनखड़ की हत्या के मामले में आरोपी सुशील कुमार 18 दिन तक 5 राज्यों में भागता फिरा। सुशील के वकीलों ने अग्रिम जमानत की याचिका भी डाली मगर अदालत ने उसे भी खारिज कर दिया। उसकी गिरफ्तारी पर पुलिस ने एक लाख का ईनाम भी घोषित कर डाला था।

जाहिर है कि नामीगिरामी सुशील कुमार के ऊंचे सम्पर्क भी होंगे और रसूखदार लोगों ने उसे शरण भी दी होगी। सवाल यह भी है कि सुशील कुमार हत्या में शामिल है या नहीं यह तय तो अदालत ही करेगी क्योंकि केवल पुलिस प्राथमिकी दर्ज होने पर ही कोई हत्यारा या अपराधी नहीं हो जाता। सुशील कुमार की शादी महाबली सतपाल की बेटी से हुई है और पहलवानी के गुर भी उसने अपने गुरु और ससुर से ही सीखे हैं। लोग यह सवाल बार-बार उठा रहे हैं कि अगर सुशील ने अपराध नहीं किया तो उसे कानून का सामना करना चाहिए था। एक राज्य से दूसरे राज्य में भागने की बजाय कानून का सम्मान करना चाहिए था। सुशील कुमार पर आरोप कई बार लगे हैं। डोप टेस्ट में फेल होने के बाद चार वर्ष तक बैन झेलने वाले पहलवान का तो आरोप रहा है कि उसके खाने में सुशील कुमार ने ही प्रतिबंधित दवाएं मिला दी थी। किसी भी खिलाड़ी में खेल भावना और किलर इंस्टिंक्ट का होना बहुत जरूरी है लेकिन ऐसा भी नहीं कि वो उसे हत्या का आरोपी बना दे। हमने माइक टाइसन को भी देखा है जो अपने गुस्से पर काबू नहीं रखने के कारण ऐसा कुछ करते रहे हैं जिसकी वजह से जेल की हवा खाते रहे हैं। वैसे हरियाणा ही क्यों देश के अन्य राज्यों के कई ऐसे पहलवान हैं जिनके सपने पूरे नहीं होने पर उन्होंने अपराध के चक्रव्यूह में प्रवेश कर लिया।
रिंग से अपराध के रिंग में दाखिल होना आसान होता है लेकिन बाहर निकलना काफी मुश्किल होता है। ओलिंपिक तक पहुंचने वाले सुशील कुमार का हत्या के मामले में आरोपी हो जाना अपने आप में दुखद और शर्मसार है। ओलिंपियन और राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियो कोे सरकारी नौकरी मिल जाती है। राज्य सरकारें उन्हें अपने विभागों में सम्मानजनक पद देती है। अधिकतर पुलिस में चले जाते हैं, कुछ को रेलवे भी अपना लेता है। सुशील भी रेलवे के कर्मचारी हैं। सर्वविदित है कि कुछ ने अपने गैंग बना लिए हैं जो विवाद मकानों, सम्पत्तियों आदि पर कब्जे का धंधा अपना लिया है। पूरे घटनाक्रम से सुशील की छवि को तो नुक्सान पहुंच ही साथ ही देश का भी नुक्सान हुआ। सुशील कुमार को विश्व स्तरीय पहलवान बनने में कितनी मेहनत की, कितना पसीना बहाया। यह प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए उसे वर्षों लग गए। रियो ओलिंपिक कौन जाएगा इस पर भी विवाद हो गया था लेकिन जैसे-तैसे सुशील रियो ओलिंपिक पहुंच तो गए लेकिन पदक जीतने में सफल नहीं हो सके। खेलों में हार और जीत तो होती रहती है।
सुशील कुमार ने तिरंगा लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लिया लेकिन वे खुद बरसों तक भारी दबाव में रहे क्योंकि उनके सामने पदक जीतने का लक्ष्य रहा। कितनी भी तनावपूर्ण स्थिति क्यों न हो उसमें भी संयम बनाये रखने का लम्बा अभ्यास भी किया होगा। सुशील कुमार के सामने बड़ी चुनौती अब अदालत में खुद को निर्दोष साबित करने की है। हादसे में गैंगेस्टरों की संलिप्तता की खबरें भी चिंताजनक हैं। सुशील कुमार का कहना है कि उसको फंसाने की साजिश हुई है। अगर यही बात घटना के बाद खुद पुलिस को बताते और जांच में सहयोग करते तो यह अपने आप में देश के सामने एक बड़ी मिसाल होती। उसे सजा होती है या वे बरी होते हैं, इसका फैसला तो भविष्य के गर्भ में है। सुशील कुमार के पास निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने के विकल्प मौजूद हैं लेकिन सम्मान, प्रतिष्ठा और सरकारी नौकरी सब एक झटके में चले गए।


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