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- क्रिकेट से सियासत तक :...
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बाजवा का सिद्धांत लागू हो सकता है, और द्विपक्षीय रिश्तों में थोड़ी-सी उम्मीद जग सकती है।
वर्ष 1992 के विश्व कप क्रिकेट के राष्ट्रीय नायक रहे इमरान खान ने अपनी मौजूदा राजनीतिक पारी के आखिरी ओवर में सिर की ऊंचाई से छह फीट ऊपर से ऐसी अवैध बाउंसर गेंदबाजी की, जो विपक्षी दलों-पीएमएल (एन), पीपीपी, और एमक्यूएम (पी) के नेताओं को तो छू नहीं पाई, लेकिन मैकियावेली शैली से उन्हें मात दे दी। यह किसी भी तरह से उनकी स्विंग योर्कर नहीं थी, लेकिन इसने पाकिस्तान के संविधान का मखौल उड़ाया और उन्हें उन क्रिकेट कप्तानों की श्रेणी में ला दिया, जिन्होंने खेल के नियम तोड़कर अपनी गरिमा खो दी।
41 साल पहले जब गेंद से छेड़छाड़ को कानूनी मान्यता थी, तब इमरान खान का सामना करना आसान नहीं होता था। अब उन्होंने गेंद के साथ छेड़छाड़ की है (जब इसकी अनुमति नहीं है), और संसद में संख्या बल के खेल में हारने के बाद अपना अस्तित्व बचाने के लिए संयुक्त विपक्ष को क्लीन बोल्ड करने की कोशिश की, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों को खत्म करने का नग्न और भौंडा प्रयास था। अब पाकिस्तान के लोगों की उम्मीदें मुल्क के सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं, जो पाकिस्तान के पहले से ही कमजोर लोकतंत्र के उद्धारकर्ता के रूप में कार्य कर सकता है।
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि नेशनल असेंबली को भंग करने के संबंध में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए सभी आदेश और कार्य अदालत के फैसले के अधीन होंगे। मौजूदा सांविधानिक संकट में मुख्य न्यायाधीश की प्रतिक्रिया सर्वोपरि और प्रासंगिक है। सुप्रीम कोर्ट मौजूदा परिस्थितियों में राष्ट्रपति द्वारा नेशनल असेंबली भंग किए जाने की वैधता की जांच करेगा। इमरान खान एक विभाजित व्यक्तित्व हैं, जिन्हें विरोधाभासों और असमानताओं के मिश्रण के रूप में वर्णित किया जा सकता है और जिनकी मैकियावेली शैली का अंदाजा सेना और विपक्ष को डराने के लिए अपनाई गई हालिया रणनीति से लगाया जा सकता है।
लंदन में पढ़ाई के दौरान उन्हें प्लेबॉय के रूप में जाना जाता था, क्योंकि वह अक्सर सुपर मॉडल्स की संगत में रहते थे और विलासितापूर्ण जीवन जी रहे थे। 43 साल की उम्र तक वह अविवाहित रहे और उसके बाद उन्होंने तीन शादियां कीं। अपने मुल्क के शीर्ष पद पर पहुंचने की उनकी यात्रा और सत्ता से चिपके रहने की उनकी बेताब पैंतरेबाजी सिनेमा की पटकथा से मिलती-जुलती है, जो हमेशा सच्चाई और जमीनी हकीकत से दूर होती है। विडंबना देखिए कि कभी इमरान खान को खेल भावना का अवतार माना जाता था और वह खेल की गरिमा की रक्षा के लिए हद से आगे चले जाते थे।
उन्होंने 1989 में लाहौर में दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों-भारत और पाकिस्तान के बीच खेले जा रहे एकदिवसीय मैच में के. श्रीनाथ को वापस मैदान में बुला लिया था, जिन्हें वकार यूनिस की गेंद पर एंपायर ने गलत ढंग से एलबीडब्ल्यू करार दिया था, जिससे पूरी दुनिया स्तब्ध थी। लेकिन उनकी गरिमा का पतन देखिए, अब इमरान ने अपने कथित 'आश्चर्यजनक कदम' के जरिये संविधान को अमान्य कर दिया है। ऑक्सफोर्ड से पढ़े-लिखे 69 वर्षीय पश्तूनी राजनेता ने 2021 में अविश्वास मत जीता था, जो तब उन्हें मंजूर था, लेकिन बीते रविवार को संसद में जब उनकी हार तय थी, तो उनकी मानसिकता बदल गई।
उन्हें मात्र 142 सांसदों का समर्थन था, जबकि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने के बाद 342 सीटों वाली संसद में 199 सांसदों के साथ दुनिया के सामने अपनी शक्ति प्रदर्शित की थी, जिसमें सत्ताधारी दल के 24 दलबदलू सदस्य भी शामिल थे। इमरान का 'नया पाकिस्तान' का सपना तभी चकनाचूर हो गया था, जब उनकी सरकार गंभीर आर्थिक संकट से निपटने, आसमान छूती महंगाई, मुद्रास्फीति के उच्चतम स्तर, बिगड़ती कानून-व्यवस्था और विदेश नीति जैसे सभी मोर्चों पर विफल साबित हुई थी।
इमरान खान की सरकार ने बढ़ती महंगाई और विशेष रूप से चीन से लिए गए कर्ज के कारण जनता का भी समर्थन खो दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि इमरान ने अपनी पराजय के लिए 'विदेशी साजिश' (अमेरिका) जैसे कारक को दोषी बताकर देशवासियों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश की, जिसका उद्देश्य आगामी चुनावों के लिए जमीन तैयार करना था। अमेरिकी अधिकारियों ने इस दावे पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे कल्पना की उपज बताया।
वर्ष 2018 के चुनाव जीतने में सेना ने उनकी पूरी मदद की थी, इसलिए विपक्ष ने हमेशा उन्हें सेना के हाथ की 'कठपुतली' बताया। लेकिन सेना के साथ उनके संबंध तब बिगड़ गए, जब इमरान ने सेना को बांटने और शासन करने की रणनीति अपनाई। इमरान ने आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, हालांकि बाद में उन्हें झुकना पड़ा, लेकिन इमरान और बाजवा के बीच खाई चौड़ी हो गई। दूसरी बात, जब इमरान ने अमेरिकी साजिश की बात की, तो उसे बाजवा ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अमेरिका के साथ पाकिस्तान के अच्छे रिश्ते हैं।
यह सेना और इमरान खान के बीच दरार का सबूत था, जो सार्वजनिक हो गया। इमरान पाकिस्तान के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हो सकते हैं, जिन्होंने सेना को चुनौती देने का साहस किया, जिसने उनके पतन का मार्ग प्रशस्त किया। तीसरी बात, बाजवा ने बहुत पहले एक सिद्धांत पेश किया था, जिसमें उन्होंने अतीत को भूलकर पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने और आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देने की बात कही थी। अगर सुप्रीम कोर्ट डिप्टी स्पीकर एवं राष्ट्रपति के फैसले को खारिज करता है और विपक्ष वहां सरकार बनाने में सफल होता है, तो बाजवा की सेवा को एक और विस्तार मिलना तय है और वह अपने सिद्धांत को आगे बढ़ाएंगे, जो भारत के लिए स्वागत योग्य कदम होगा।
संसद में प्रधानमंत्री और विपक्ष के बीच गतिरोध के दौरान सेना 'तटस्थ' थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इमरान ने कहा कि केवल जानवर ही तटस्थ रहते हैं। इस बयान ने उनकी नियति तय कर दी और उसके बाद तो जो हुआ, वह अपने आप में इतिहास है, जो धीरे-धीरे सामने आया है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर इमरान खान अदालत में यह लड़ाई हार जाते हैं, तो यह चीन के लिए एक बड़ा झटका होगा। दूसरी तरफ, इमरान के चलते अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्ते पूरी तरह खराब हो गए हैं। अस्थिर पाकिस्तान भारत के हित में नहीं है और यदि वहां नई सरकार आती है, तो बाजवा का सिद्धांत लागू हो सकता है, और द्विपक्षीय रिश्तों में थोड़ी-सी उम्मीद जग सकती है।
सोर्स: अमर उजाला
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