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- किराये पर आजादी
नवभारत टाइम्स: नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने फैसला किया है कि घरेलू उड़ानों के किराये पर सरकार द्वारा लगाई गई अधिकतम और न्यूनतम की सीमा 31 अगस्त से समाप्त कर दी जाएगी। इसके साथ ही हवाई यात्रा पर कोविड के मद्देनजर लगाई गई पाबंदियों का यह आखिरी हिस्सा भी उठ जाएगा। दरअसल, कोविड के खतरे के मद्देनजर लगाया गया 40 दिनों का लॉकडाउन समाप्त होने के बाद जब घरेलू हवाई यात्रा को मंजूरी दी गई तो सरकार ने किराये में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव की आशंका समाप्त करने के लिए किराये की सीमा तय की थी। तब उड़ानों की अवधि के आधार पर उन्हें सात श्रेणियों में बांटते हुए हर श्रेणी का अधिकतम और न्यूनतम किराया तय कर दिया गया था। उदाहरण के लिए, 40 मिनट से कम की फ्लाइट के लिए किराया 2900 रुपये से कम और 8800 रुपये से ज्यादा नहीं रखा जा सकता था। उस असामान्य दौर में तो यात्रियों को इन पाबंदियों ने काफी राहत दी, लेकिन किसी भी सेक्टर के फलने-फूलने में इस तरह की पाबंदियां बाधा ही साबित होती हैं। इसलिए धीरे-धीरे इन पाबंदियों की सख्ती कम की गई, और अब जब हालात करीब-करीब सामान्य हो गए हैं तो इन्हें पूरी तरह से हटाने का फैसला ले लिया गया, जो बिल्कुल सही है।
हालांकि इसके बावजूद यह देखना होगा कि इतने लंबे समय के बाद ये पाबंदियां हटाए जाने का एविएशन सेक्टर पर कैसा प्रभाव पड़ता है। इस बीच यात्रियों की संख्या में कमी तो एक मसला रही है, लेकिन विमान ईंधन के मूल्यों में बढ़ोतरी एयरलाइंस कंपनियों के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द साबित हो रही थी। अच्छी बात यह है कि रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद पिछले कुछ हफ्तों से इसमें गिरावट देखी जा रही है। गत 1 अगस्त को एविएशन टर्बाइन फ्यूल की कीमत दिल्ली में 1.21 लाख रुपये प्रति किलोलीटर थी, जो पिछले महीने के मुकाबले 14 फीसदी कम थी। पाबंदी हटाने का फैसला इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इसीलिए यह माना जा रहा है कि पाबंदी हटने के बाद भी हवाई किराये में अचानक बहुत बड़ा बदलाव नहीं होगा। अभी भी किसी श्रेणी में हवाई किराया अधिकतम या न्यूनतम सीमा के बिल्कुल करीब नहीं है। बावजूद इसके किराये में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव दिख सकता है। कुछ उन रूटों पर जहां यात्रियों की संख्या ज्यादा है, किराये में बढ़ोतरी हो सकती है तो कम यात्री वाली रूटों पर उन्हें आकर्षित करने के लिए किराया कम किया जा सकता है। इसके अलावा इस संभावना से भी पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता कि आपसी कॉम्पिटिशन के चक्कर में एयरलाइंस के बीच प्राइस वॉर शुरू हो जाए। लेकिन किसी भी सेक्टर में ग्रोथ की यह स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती है। कुछ समय की बढ़ोतरी और गिरावट के बाद कीमतें डिमांड सप्लाई नियम के मुताबिक संतुलित हो जाएंगी। सरकार द्वारा कृत्रिम तरीकों से जबरन कीमतें कम या ज्यादा रखने के मुकाबले यह स्थिति सबके लिए कहीं बेहतर होगी।