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भारत का संविधान हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने की आजादी देता है।
भारत का संविधान हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने की आजादी देता है। लेकिन आजादी के 75 साल बाद सम्मान से जीने के अधिकार को इस देश ने पांच किलो अनाज की खैरात पर जीने में बदल दिया है। सरकार गर्व से कह रही है कि वह देश के 81 करोड़ से ज्यादा लोगों को पांच किलो अनाज और एक किलो दाल दे रही है। यह सम्मान से जीना नहीं, बल्कि खैरात पर जीना है। सम्मान से जीने का मतलब है कि सरकार हर नागरिक के लिए काम-धंधे का बंदोबस्त करे। उसकी एक निश्चित कमाई सुनिश्चित करे ताकि वह अपना जीवन सम्मान के साथ जी सके। लेकिन रोजगार के अवसर बनाने में विफल रही सरकार अनाज बांट कर अपनी उपलब्धि बता रही है।
याद करें 50-60 के दशक में जब पूरा देश कटोरा हाथ में लेकर खड़ा रहता था और अमेरिका से पीएल-480 के गेहूं आते थे तो लोगों का पेट भरता था। आज आजादी के 75 साल बाद फिर वही स्थिति बन गई है। आज भी लोग कटोरा हाथ में लेकर खड़े हैं कि सरकार का खैरात आएगा तो उनका जीवन चलेगा। क्या देश के महान नेताओं ने हरित क्रांति क्या इसी दिन के लिए की थी कि एक दिन देश के किसान लाखों टन अनाज उपजाएंगे और उसे बांट कर करोड़ों लोगों का पेट भरा जाएगा? देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर क्या इसी दिन के लिए हुआ था? किसने देश को इस स्थिति में पहुंचाया है? कुछ साल पहले तक तो यह स्थिति नहीं थी। तब भी कुछ लोगों को राशन का अनाज मिलता था लेकिन देश की 60 फीसदी आबादी कटोरा लेकर नहीं खड़ी थी। इस सरकार की आर्थिक नीतियों ने, नोटबंदी जैसे बेसिरपैर के फैसलों ने देश में ऐसे हालात बनाए हैं कि हर व्यक्ति परेशान है।
यह कहने की बात है कि कोरोना वायरस की महामारी ने ऐसे हालात पैदा किए हैं। भारत में कोरोना की महामारी शुरू होने के दो साल पहले से ही हालात बिगड़ने लगे थे। 2018 की पहली तिमाही से अर्थव्यवस्था गिरने का जो दौर शुरू हुआ वह आज तक जारी है। इस दौरान करोड़ों लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई हैं और करोड़ों लोगों का रोजगार बंद हुआ। आजादी के बाद भारत ने रिकार्ड संख्या में लोगों को गरीबी से निकाला था। लेकिन अब उतनी ही रिकार्ड संख्या में लोग फिर गरीबी के दलदल में गिरे हैं। करोड़ों लोग मध्य वर्ग से निकल कर निम्न मध्य वर्ग या निम्न वर्ग में पहुंच गए हैं। चुनिंदा लोगों की संपत्ति बढ़ी है और बहुसंख्यक लोग बेरोजगार होकर सरकारी मदद पर निर्भर हैं। जुलाई के महीने में बेरोजगारी की दर आठ फीसदी से ऊपर रही है।
इस भयावह आर्थिक संकट के बीच सरकार राहत देने की बजाय महंगाई बढ़ाती जा रही है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के सिलिंडर और खाने-पीने की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। यह आम लोगों के लिए कोढ़ में खाज की तरह है। एक तो नौकरी, रोजगार नहीं हैं और ऊपर से आसमान छूती महंगाई है। सरकार चाहे जितना प्रचार करे और जितने भाषण दिए जाएं पर हकीकत है कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारत की हालत सबसे खराब है। पड़ोस के देश बांग्लादेश के साथ सिर्फ एक तुलना पिछले सात साल की उपलब्धियों की पोल खोल देने के लिए पर्याप्त है। 2014 में जब अच्छे दिन लाने वाली सरकार बनी थी तब भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख 17 हजार रुपए थी और उस समय बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति जीडीपी 83 हजार थी। सात साल बाद भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी एक लाख 45 हजार है और बांग्लादेश की एक लाख 65 हजार रुपए है। यानी उस देश ने अपनी प्रति व्यक्ति जीडीपी दोगुनी कर ली और भारत बड़ी मुश्किल से उसमें मामूली बढ़ोतरी कर पाया।
हकीकत यह है कि प्रति व्यक्ति आय कम हो रही है, जीडीपी में कमी आ रही है, लोगों की बचत खत्म हो रही है, बेरोजगारी उच्चतम स्तर पर है और महंगाई रिकार्ड ऊंचाई पर है। यह आर्थिक अराजकता की स्थिति है, जिससे देश को निकालने का कोई रोडमैप नहीं दिख रहा है। कोरोना की पूरी महामारी में सरकार लोगों को कर्ज देने की योजनाएं घोषित करती रही। पर लोगों के हाथ में नकद पैसे पहुंचाने का एक फैसला नहीं हुआ। मांग कम रख कर महंगाई काबू में रखने की योजना अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचा रही है। लेकिन सरकार अर्थव्यवस्था, महंगाई, बेरोजगारी के किसी संकट को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हर संकट से आंख मूंद कर सरकार समझ रही है कि कोई संकट ही नहीं है।
Triveni
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