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बेरोजगारी घटाने में कुछ मदद मिलेगी। (सप्रेस) -लेखक सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम (वर्धा) के प्रबंधक ट्रस्टी हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी जी ने चरखा और गुंडी, अर्थात कत्तिन और बुनकर को आजादी के आंदोलन से जोड़ा और उसे आजादी की लड़ाई का एक शस्त्र ही बना डाला। लेकिन भारत में विदेशी कपड़ों के आयात के साथ कत्तिन-बुनकरों की हालत बद-से-बदतर होने लगी। आजादी के बाद देश ने 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' का प्रारूप तैयार किया, जिसमें बड़े उद्योगों के साथ-साथ छोटे और मझोले उद्योंगों के लिए भी गुंजाइश थी।
इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और ग्रामोद्योगों के माध्यम से बुनकरों को रोजगार प्राप्त हुए। उनके विकास के लिए अलग से योजनाएं बनाई गईं, परंतु 1970 के दशक के अंत तक हैंडलूम और खादी क्षेत्र के बुनकरों की हालत खस्ता होने लगी। इसका मुख्य कारण था कि 'पावरलूम' और मिलों में कपड़ा बहुतायत में उत्पादन होने लगा। हैंडलूम में जो साड़ी चार से पांच दिन में तैयार होती थी, वह पावरलूम में एक दिन में बनने लगी और बहुत सस्ते दामों पर बाजार में उपलब्ध होने लगी।
नतीजतन बुनकरों की आय कम होती गई और उन्हें गांव छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करना पड़ा। उन्हें शहरों में मजदूरी व अन्य छोटे-मोटे रोजगारों से गुजारा करना पड़ा। सरकारों ने भी इस क्षेत्र के लिए कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। कॉरपोरेट क्षेत्र को लाखों-करोड़ों रुपये की सब्सिडी दी जाने लगी, पर खादी-हैंडलूम सेक्टर में सब्सिडी कम होने लगी। उदारीकरण के युग में उनको भी बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया।
देश में कपड़े का उत्पादन चार पद्धतियों से हो रहा है- खादी, हैंडलूम, पावरलूम और मिल। इसमें से केवल खादी और हैंडलूम सेक्टर में ही बुनकरों को रोजगार मिलता है। पॉवरलूम में बिजली का प्रयोग होता है और मिल में काम मशीनों से होता है, जिसमें बुनकरों के रोजगार की संभावना क्षीण है। अभी भी भारत में कृषि के बाद हैंडलूम सेक्टर दूसरा सबसे बड़ा ग्रामीण रोजगार देने वाला क्षेत्र है।
भारत में कुल वस्त्र का 15 प्रतिशत उत्पादन हैंडलूम सेक्टर में होता है। विश्व भर में हाथ से बुने कपड़े में भारत प्रथम स्थान पर है और यह प्रतिशत के हिसाब से 95 प्रतिशत है। वर्ष 2020 में 22.31 करोड़ डॉलर का हैंडलूम निर्यात हुआ है। हालांकि सरकार ने बुनकरों के लिए कई लाभकारी योजनाएं चलाई हैं, लेकिन हैंडलूम बुनकरों की स्थिति दयनीय बनी हुई है। इन सभी योजनाओं के पुनरावलोकन के बाद इन सभी को 'एकल खिड़की' के दायरे में लाने की आवश्यकता है।
हथकरघा उद्योग के विकास के लिए बुनकरों को जो सहायता प्रदान की जा रही है, वह भी अलग-अलग एजेंसी द्वारा दी जा रही है। जैसे खादी से जो बुनकर जुड़े हैं, उनके विकास के लिए 'खादी और ग्रामोद्योग आयोग' विभिन्न योजनाएं बनाकर सहायता देता है, जो भारत सरकार के 'सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम मंत्रालय' के अंतर्गत आता है। इसी प्रकार हैंडलूम क्षेत्र से जो बुनकर जुड़े हैं, उनके लिए 'वस्त्र मंत्रालय' के माध्यम से सहायता दी जाती है।
'वस्त्र मंत्रालय' के साथ पावरलूम, मिल सेक्टर भी जुड़ा है। 'वस्त्र मंत्रालय' जो कपड़ा नीति निर्धारित करता है, उसका लाभ खादी और हथकरघा उद्योग को न के बराबर होता है। इसके अतिरिक्त 'अल्पसंख्यक आयोग' के माध्यम से भी बुनकरों को सहायता दी जाती है। सरकार ने समय-समय पर बुनकरों के कर्ज भी माफ किए हैं, परंतु उसका लाभ सभी बुनकरों को नहीं मिला।
ऐसे में बुनकरों के लिए आज 'एकल खिड़की' (सिंगल विंडो सिस्टम) की आवश्यकता है, चाहे वह भारत सरकार के किसी भी मंत्रालय के अधीन हो। 12वीं पंचवर्षीय योजना' में 'एकल खिड़की' के माध्यम से लोन आदि देने का प्रावधान किया था, परंतु बुनकरों की सभी समस्याओं और सुविधाओं के लिए यह पद्धति होनी चाहिए।
'नीति आयोग' को भी इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है कि किस प्रकार 'एकल खिड़की' के माध्यम से बुनकरों की सभी समस्याओं का समाधान करें। इससे हथकरघा उद्योग के साथ-साथ खादी के बुनकर भी लाभान्वित होंगे और बेरोजगारी घटाने में कुछ मदद मिलेगी। (सप्रेस) -लेखक सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम (वर्धा) के प्रबंधक ट्रस्टी हैं।
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