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- फ्रीडम हाउस की...
दुनिया भर में लोकतंत्र की स्थिति पर नजर रखने वाले एक अमेरिकी एनजीओ 'फ्रीडम हाउस' की ताजा रिपोर्ट वैसे तो वैश्विक स्तर पर इसकी मौजूदा दशा को चिंताजनक बताती है, लेकिन अभी इसकी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि इस बार भारत के स्टेटस को इसने फ्री (स्वतंत्र) से घटाकर पार्टली फ्री (आंशिक रूप से स्वतंत्र) कर दिया है। हर भारतीय के लिए यह बात तकलीफदेह होगी कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित और अपने लोकतांत्रिक मूल्यों, परंपराओं के लिए हर जगह समादृत हमारे देश को आंशिक रूप से ही स्वतंत्र माना जाए। सीधे शब्दों में इसका मतलब यह हुआ कि इस देश के नागरिक पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं। स्वयं अमेरिका की नजरों में अपनी सीमाओं से बाहर लोकतंत्र और मानवाधिकारों का क्या स्थान रहा है और दुनिया में कहां-कहां इसने तानाशाहों और रंगभेद जैसी मनुष्य विरोधी मान्यताओं को संरक्षण दिया है, यह कोई बताने की बात नहीं है। जहां तक फ्रीडम हाउस और उसकी इस रिपोर्ट का सवाल है तो इसे लेकर भी सोशल मीडिया पर जारी बहस में तीखा विभाजन दिखता है। कुछ लोग इसे स्वयंसिद्ध प्रमाण की तरह उद्धृत कर रहे हैं तो कुछ सीधे खारिज कर रहे हैं। लेकिन अहम बात यह नहीं है कि इस रिपोर्ट को हम कितना वजन देते हैं, बल्कि यह है कि इस रिपोर्ट में दर्ज ऐतराजों की कितनी तपिश हम खुद अपनी चमड़ी पर महसूस करते हैं।