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- मुफ्त अनाज कब तक
नवभारत टाइम्स; केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को एक बार फिर तीन महीने के लिए बढ़ाने का फैसला किया है। आज ही यह योजना समाप्त हो रही थी, लेकिन अब 31 दिसंबर तक जारी रहेगी। यह इस योजना का सातवां विस्तार है। ध्यान रहे, इसकी शुरुआत अप्रैल 2020 में तब की गई थी, जब कोरोना को बेकाबू होने से रोकने की कोशिशों के तहत देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी। उस दौरान अचानक सारा कामकाज ठप हो जाने और आजीविका के साधन समाप्त हो जाने की वजह से देश में कमजोर तबकों के सामने जीवन निर्वाह की समस्या पैदा हो गई थी। उस कठिन दौर में जरूरतमंदों की मदद के लिए सरकार ने दो महीने के लिए यह योजना घोषित की, जिसके तहत 80 करोड़ गरीबों को पांच किलो गेहूं और चावल मुफ्त मुहैया कराए गए। चूंकि कोरोना की समस्या जारी रही, इसलिए सरकार ने अप्रैल 2021 में फिर से यह योजना घोषित की। इस बार भी यह दो महीने के लिए थी, लेकिन इसे पांच महीने के लिए बढ़ा दिया गया। तब से इसे लगातार बढ़ाया जाता रहा है।
चूंकि अब कोरोना के वैसे हालात नहीं रहे, जन जीवन सामान्य हो चुका है, काम धंधे शुरू हो चुके हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि इस योजना को और विस्तार नहीं दिया जाएगा। यूक्रेन युद्ध के कारण जहां दुनिया में सप्लाई चेन बाधित हुई वहीं अनाज की आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। बढ़ी हुई महंगाई दर और रुपये की कमजोरी के चलते देश की वित्तीय स्थिति भी कमजोर हुई है। इसलिए वित्त मंत्रालय इस योजना को मिलने वाले विस्तार की वजह से करीब 45000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बर्दाश्त करने के मूड में नहीं था।
खबरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय का सुझाव था कि अगर योजना को विस्तार देना ही है तो भी उसमें अनाज की मात्रा कम की जानी चाहिए। मगर कैबिनेट के फैसले के मुताबिक योजना अपने पुराने स्वरूप में ही जारी रहेगी। ध्यान रहे, साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। स्वाभाविक ही आरोप लग रहे हैं कि सरकार के इस फैसले के पीछे चुनावी हित हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि इस फैसले की वजह से गरीबों के चेहरे पर मुस्कान आएगी और उनके घर में चूल्हे जलते रहेंगे।
निश्चित रूप से किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार को देश की आबादी के कमजोर हिस्सों की चिंता होनी चाहिए। लेकिन उसी चिंता का एक रूप यह भी है कि देश की वित्तीय संरचना पर हद से ज्यादा बोझ न पड़े। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री ने मुफ्त घोषणाओं को मुद्दा बनाया था और राजनीतिक दलों को इससे बचने की जरूरत बताई थी। ऐसे में इस योजना को मिला विस्तार खुद सरकार की प्राथमिकताओं पर कुछ असुविधाजनक सवाल तो खड़े कर ही गया है।