सम्पादकीय

मुफ्त बिजली : साहसिक और ऐतिहासिक फैसला

Rani Sahu
31 Jan 2022 7:12 PM GMT
मुफ्त बिजली : साहसिक और ऐतिहासिक फैसला
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हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व दिवस के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर द्वारा प्रदेश के सभी घरेलू उपभोक्ता परिवारों को 60 यूनिट बिजली मुफ्त में दिए जाने की घोषणा का राजनीतिक निहितार्थ कुछ भी निकाला जाए

हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व दिवस के अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री जयराम ठाकुर द्वारा प्रदेश के सभी घरेलू उपभोक्ता परिवारों को 60 यूनिट बिजली मुफ्त में दिए जाने की घोषणा का राजनीतिक निहितार्थ कुछ भी निकाला जाए, परंतु कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के संदर्भ में इस फैसले को एक बड़ा कदम ही माना जाएगा। यह प्रदेश के इतिहास के उन चुनिंदा फैसलों में से एक है जिसका लाभ वर्ग विशेष को न मिलकर समस्त जनता को मिलेगा। सिक्के के दो पहलुओं की तरह किसी भी नीतिगत निर्णय के भी दो पक्ष होने स्वाभाविक हैं। इसलिए दूरगामी प्रभाव होने के कारण इस फैसले की तुलनात्मक विवेचना किए बिना किसी भी पक्ष की ओर खड़े होना संकीर्ण मानसिकता या दुराग्रह का ही परिचायक होगा।

प्रदेश की विद्युत दरों की तुलना अगर हम पड़ोसी राज्यों के साथ करें तो पंजाब में पहले 100 यूनिट के लिए घरेलू उपभोक्ताओं को रु. 1.19 प्रति यूनिट और 100 से 300 यूनिट के लिए रु. 1.49 प्रति यूनिट खर्च करने पड़ते हैं। हरियाणा में विद्युत दर 0 से 50 यूनिट के लिए रु. 2.00 प्रति यूनिट और 51 से 100 यूनिट तक रु. 2.50 प्रति यूनिट है। वहां पर कोई उपभोक्ता 100 यूनिट से अधिक विद्युत उपभोग करता है तो उसे रु. 2.50 से लेकर रु. 7.10 प्रति यूनिट खर्च करने पड़ सकते हैं। इसी तरह समकक्ष पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में 0 से 50 यूनिट के लिए रु. 2.00 और 100 से 200 यूनिट के लिए रु. 4 प्रति यूनिट विद्युत दर है। इन सबकी तुलना में हिमाचल प्रदेश में पहले 60 यूनिट मुफ्त और 60 से 125 यूनिट के लिए मात्र रु. 1 प्रति यूनिट खर्च करना पड़ेगा।
प्रदेश में अगर विद्युत उपलब्धता की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश इस मामले में आत्मनिर्भर अवश्य नजर आता है, पर धरातल पर स्थिति थोड़ी सी भिन्न है। वर्तमान में हम लगभग 11500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन करते हैं, पर प्रदेश सरकार के स्वामित्व में कुल विद्युत उत्पादन का 7.5 फीसदी ही हिस्सा है, बाकी पर केंद्र सरकार या निजी पावर प्रोजेक्ट्स का स्वामित्व है। हिस्सेदारी, रॉयल्टी और उत्पादन मूल्य पर खरीद का अधिकार होने के चलते हम हिमाचल को विद्युत उत्पादन में आत्मनिर्भर कह सकते हैं। इसी वजह से प्रदेश प्रतिवर्ष लगभग 700 से 900 करोड़ रुपए का विद्युत विक्रय करने में सक्षम है। प्रदेश में कुल विद्युत की खपत लगभग 9150 मेगावाट है जिसमें घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए लगभग 2200 मेगावाट की आवश्यकता होती है।वर्तमान फैसले की समीक्षा करें तो 60 यूनिट बिजली मुफ्त और 125 यूनिट तक रु. 1 प्रति यूनिट दिए जाने से लगभग 11 लाख उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिलेगा जिसके लिए सरकार को 60 करोड़ रुपए अतिरिक्त व्यय करने होंगे। ऐसे में जब हिमाचल प्रदेश सरकार पहले से ही बिजली सबसिडी पर 450 करोड़ रुपए से अधिक व्यय कर रही है तो कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद जनता को उसके हिस्से का आर्थिक लाभांश देकर जन हितैषी सरकार ने अपना कर्त्तव्य ही निभाया है, नहीं तो कुछ यूनिट विद्युत सुविधा से वंचित करना ऐसा ही था जैसे कोई किसान परिवार चलाने के नाम पर अपनी फसल बाजार में बेच दे और परिवार की जरूरतों को पूरी करने के लिए पीडीएस सिस्टम पर निर्भर रहे।
इस निर्णय के विरोध में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जाता है कि कोई भी सेवा मुफ्त में नहीं होनी चाहिए। इससे जनता में मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति बढ़ेगी। यह तर्क अमूमन वे लोग देते हैं जो साधन संपन्न हैं, किसी भी सेवा की कीमत चुकाने में सक्षम हैं। इसके विपरीत कोरोना काल में गरीब व मध्यमवर्गीय परिवारों को किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा है, उनसे शायद वे परिचित नहीं हैं। किस तरह लोगों को दूसरे राज्यों से वापस आना पड़ा, युवाओं की नौकरियां गई, घरों पर बैठना पड़ गया और किस तरह से दिल पर हाथ रख कर राशन के पैकेट लिए हैं। इसलिए आज कुछ यूनिट मुफ्त बिजली किसी बड़े उपहार से कम नहीं है और वह भी तब, जब राज्य के संसाधनों पर जनता का सामूहिक अधिकार होता है। आखिरकार, उसका लाभांश उन्हें क्यों न मिले?
दूसरा तर्क प्रदेश की कमजोर आर्थिक व्यवस्था पर पड़ने वाले भार का दिया जाता है। वर्तमान में जल विद्युत में प्रति यूनिट उत्पादन खर्च लगभग तीन रुपए 30 पैसे है। ऐसे में मुफ्त या सबसिडी में विद्युत दिए जाने से निश्चित रूप से सरकार पर आर्थिक भार बढ़ेगा, परंतु हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अधिक कीमत पर बिजली बेचकर पैसा भी कमाते हैं। व्यावसायिक और औद्योगिक श्रेणियों को हम ज्यादा कीमत पर भी बिजली देते हैं। वर्तमान फैसले से सरकार पर ज्यादा भार न पड़े, इसके लिए वर्णित श्रेणियों की विद्युत दरों में भी युक्तिसंगत परिवर्तन किया जा सकता है। साथ में इसी वर्ष के अंत तक प्रदेश की विद्युत क्षमता में वृद्धि होने के कारण सरकार का विद्युत क्षेत्र में घाटा भी कम होने के आसार हैं। इस निर्णय को अगर समग्रता से देखा जाए तो इसका लाभ समाज के सभी वर्गों को समान रूप से मिलेगा, अन्यथा यह देखा गया है कि वर्ग विशेष की आवश्यकताओं या मांगों को पूरा करने के लिए फैसले लिए जाते रहे हैं। मुफ्त या सबसिडी युक्त बिजली के स्लैब के निर्धारण से जनता में बिजली बचत की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी, बशर्ते साधारण से अधिक उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं के स्लैब में विद्युत दरों का मूल्य अधिक कर दिया जाए। प्रदेश में चुनावों के लिए अभी समय है, इसलिए इस निर्णय को अगर राजनीति से न जोड़ा जाए तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार का यह एक साहसिक और ऐतिहासिक फैसला है जिसके न केवल दूरगामी परिणाम होंगे, बल्कि लंबे समय तक याद भी रखा जाएगा।
प्रवीण कुमार शर्मा
सतत विकास चिंतक
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