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
बीते समय में इंग्लैंड के चुनाव में वहां की लेबर पार्टी ने जनता को मुफ्त ब्राडबैंड, मुफ्त बस यात्रा और मुफ्त कार पार्किंग जैसी सुविधाओं का प्रलोभन दिया था। हम भी क्यों पीछे रहते। उत्तर प्रदेश में कुछ वर्ष पूर्व छात्रों को मुफ्त लैपटॉप दिए गए, तमिलनाडू में चुनाव पूर्व किचन ग्राइंडर और साइकिल वितरित करने का आश्वासन दिया गया। दिल्ली में एक सीमा के अंतर्गत मुफ्त बिजली और पानी दिया जा रहा है और केन्द्र सरकार द्वारा मुफ्त गैस सिलेंडर, एलईडी बल्ब और खाद्यान्न वितरित किए जा रहे हैं। निश्चित रूप से इस प्रकार के सीधे वितरण से जन कल्याण हासिल होता है। जिस छात्र को लैपटॉप मिल जाता है वह उससे अपने कौशल को सुधार सकता है और जीवन में आगे बढ़ सकता है। लेकिन कहावत है कि किसी को मछली देने के स्थान पर मछली पकडऩा सिखाना ज्यादा उत्तम है, चूंकि मछली देने से एक बार मछली का भोजन करके वह आनंदित हो सकता है, लेकिन यदि उसे मछली पकडऩा सिखा दिया जाए तो आजीवन अपने भोजन की व्यवस्था कर सकता है। इसलिए सरकार के लिए जरूरी है कि वह अपने सीमित राजस्व का उस स्थान पर निवेश करे जहां कि जनता का लंबे समय तक और अधिकाधिक कल्याण हो सके। यहां एक विषय यह है कि अकसर इस प्रकार के मुफ्त वितरण के वायदे चुनाव पूर्व किए जाते हैं, जैसा कि इंग्लैंड में लेबर पार्टी ने चुनाव पूर्व किया है।
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