सम्पादकीय

ठगी का जाल

Subhi
27 July 2022 4:50 AM GMT
ठगी का जाल
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ठगी का दायरा कितना व्यापक और मुनाफेवाला होता जा रहा है, आम लोगों को तो इसकी कल्पना भी शायद ही हो। अभी तक तो यही सुनने में आता रहा कि नौकरी लगवाने, परीक्षा में पास करवाने, विवादित मामले सुलझाने या अन्य काम करवाने के नाम पर ही ठगी होती है।

Written by जनसत्ता: ठगी का दायरा कितना व्यापक और मुनाफेवाला होता जा रहा है, आम लोगों को तो इसकी कल्पना भी शायद ही हो। अभी तक तो यही सुनने में आता रहा कि नौकरी लगवाने, परीक्षा में पास करवाने, विवादित मामले सुलझाने या अन्य काम करवाने के नाम पर ही ठगी होती है। पुराने जमाने में तो ठग पीतल को सोना बनाने का लालच देकर बड़ा हाथ साफ कर लिया करते थे। वैसे ग्रामीण इलाकों में ऐसी घटनाएं आज भी होती रहती हैं।

लेकिन ऐसा पहले शायद ही कभी सुनने में आया कि राज्यपाल और राज्यसभा सदस्य बनवाने के नाम पर भी लोगों जाल में फंसाया गया। केंद्रीय जांच ब्यूरो ने हाल में एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया जो बड़े लोगों को राज्यपाल और राज्यसभा बनवाने का झांसा देता था और इसके एवज में उनसे करोड़ों रुपए की मांग करता था। जाहिर है, इस गिरोह के लोग मामूली नहीं हैं। इसके लिए वे सारे हथकंडे अपनाते रहे होंगे जो सत्ता के गलियारों तक पहुंचने के लिए जरूरी होते हैं। आखिर राज्यसभा का सदस्य बनने की एक पूरी कानूनी और संवैधानिक प्रक्रिया होती है।

हर पार्टी अपने शीर्ष निकाय के माध्यम से ही उम्मीदवार उतारती है। फिर विधानसभा सदस्य वोट देते हैं। हालांकि राज्यसभा के लिए कुछ सदस्य मनोनीत भी किए जाते हैं, पर इसकी भी नियत प्रक्रिया होती है। राज्यपालों की नियुक्ति का काम भी सरकार में शीर्ष स्तर पर ही होता है। ऐसे में अगर लोगों को बड़े पदों तक पहुंचाने के लिए कोई गिरोह काम और दावा करता है, तो यह बेहद संवेदनशील मामला बन जाता है। इसकी गहन जांच होनी चाहिए।

जैसा कि सीबीआइ ने बताया कि गिरोह में कई लोग काम कर रहे हैं। गिरोह का जाल दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक में काम कर रहा था। कुछ लोग तो जांच ऐजेंसी के हत्थे चढ़े, पर कई फरार हैं। हैरानी की बात यह कि छापे के दौरान गिरोह का एक सदस्य सीबीआइ की पकड़ से भाग निकला। मामले का भंडाफोड़ तब हुआ जब जाल में फंसे एक व्यक्ति को गिरोह के लोगों पर संदेह पर हुआ।

उसने सीबीआइ में शिकायत दर्ज करवा दी। जांच में पता चला कि गिरोह के लोग बड़े-बड़े कारोबारियों को अपने जाल में फंसा रहे थे। यह भी खुलासा हुआ कि राज्यसभा में पहुंचाने और राज्यपाल बनवाने के लिए सौ-सौ करोड़ रुपए मांगे जा रहे थे। गिरोह के सदस्य बड़े नेताओं और अधिकारियों से संपर्कों का दावा करते थे। जैसा कि बताया गया, गिरोह का एक सदस्य तो खुद को सीबीआइ का बड़ा अधिकारी बताता था और काम करवाने के लिए पुलिस अधिकारियों को भी धमका देता था।

बात केवल ठगों और ठगी के तरीके तक ही सीमित नहीं है। सवाल तो उन लोगों पर भी खड़ा होता है जो राज्यसभा सदस्य, राज्यपाल या ऐसे अन्य महत्त्वपूर्ण पद हासिल करने के लिए ऐसे अनुचित रास्ते तलाशते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि राजनीति में ऊपर तक पहुंचने के लिए लोग किस तरह बड़ी रकम फूंकने को तैयार रहते होंगे। ऐसे लोग मान कर चलते हैं कि पैसे से सब हासिल किया सकता है। इसके लिए वे शायद ही कोई विकल्प बाकी छोड़ते हों। कहीं न कहीं ये सब बातें राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार की तरफ भी संकेत करती हैं। सीबीआइ ने गिरोह का पर्दाफाश कर निश्चित ही सराहनीय काम किया है, लेकिन उन लोगों का चेहरा भी बेनकाब होना चाहिए जो बड़े पदों के लिए ऐसे जुगाड़ की तलाश में रहते हैं।

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