सम्पादकीय

फ्रांस का साथ

Subhi
7 May 2022 2:45 AM GMT
फ्रांस का साथ
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भारत के हितों और सुरक्षा को लेकर फ्रांस ने जैसा सरोकार दिखाया है, उससे निश्चित ही दोनों देशों के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की फ्रांस यात्रा के बाद यह साफ हो गया कि न सिर्फ रक्षा क्षेत्र, बल्कि आतंकवाद से लेकर हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दे तक पर फ्रांस भारत के साथ खड़ा है।

Written by जनसत्ता: भारत के हितों और सुरक्षा को लेकर फ्रांस ने जैसा सरोकार दिखाया है, उससे निश्चित ही दोनों देशों के बीच रिश्ते और मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की फ्रांस यात्रा के बाद यह साफ हो गया कि न सिर्फ रक्षा क्षेत्र, बल्कि आतंकवाद से लेकर हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दे तक पर फ्रांस भारत के साथ खड़ा है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और प्रधानमंत्री मोदी की दो दौर की बैठकों के बाद जारी साझा बयान से भी इस बात की पुष्टि होती है। जर्मनी और डेनमार्क के बाद प्रधानमंत्री का फ्रांस दौरा भी इस तथ्य को रेखांकित करता है कि यूरोपीय देशों में भारत की न सिर्फ स्वीकार्यता बढ़ी है, बल्कि भारत को एक बड़ी शक्ति के रूप में भी देखा जा रहा है।

इस लिहाज से फ्रांस यात्रा की बड़ी उपलब्धि यह है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दे पर भारत और फ्रांस के बीच गहन चर्चा हुई और इस पर आपसी सहयोग के लिए मैक्रों ने सकारात्मक संकेत दिए। इससे पहले जर्मनी, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ भी हिंद प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक भागीदारी को लेकर अपना रुख साफ कर चुके हैं कि वे भारत के साथ हैं। कूटनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो हिंद प्रशांत के मुद्दे पर यूरोपीय देशों का समर्थन जुटाना भारत के लिए कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।

दरअसल, आज हिंद प्रशांत क्षेत्र भौगोलिक और रणनीतिक लिहाज से बेहद संवेदनशील बन गया है। इस विशाल भूभाग में चीन की बढ़ती ताकत से सब चिंतित हैं। दक्षिण चीन सागर में तो पहले ही उसने अपने सैन्य अड्डे बना लिए हैं। चीन इन दोनों महासागरों में समुद्री मार्ग पर कब्जा करने की कोशिश में है। दुनिया का लगभग आधा समुद्री परिवहन इसी रास्ते होता है। कई जगहों पर तो चीन ने अपने मनमाने नियम लागू कर दिए हैं। इसे लेकर अमेरिका के साथ उसका टकराव बढ़ता रहा है और कई बार युद्ध जैसी नौबत भी आ गई। इसीलिए आज इस मुद्दे पर जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन जैसे देश भारत के साथ आ रहे हैं।

सबको लग रहा है कि अगर चीन ने इस क्षेत्र में पैर जमा लिए तो आधी से ज्यादा दुनिया पर उसका कब्जा होने में देर नहीं लगेगी। अमेरिका और यूरोपीय देशों को अपने आर्थिक और सामरिक हिंतों की चिंता नहीं होती तो ये देश इस क्षेत्र में साझेदारी के लिए राजी क्यों होते? फिर, हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए भी बड़ा खतरा बन गया है। हकीकत यह है कि बिना भारत के सहयोग के इस क्षेत्र में चीन को रोक पाना दूसरे देशों के लिए आसान भी नहीं होगा। यह बात भारत भी समझता है और यूरोप के देश भी।

भारत और फ्रांस के बीच लंबे समय से आपसी सहयोग का जो सिलसिला चला आ रहा है, उसका दायरा और व्यापक हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे को समर्थन देकर फ्रांस ने भारत की अहमियत को रेखांकित किया है। फ्रांस यह भी चाहता है कि भारत को भी परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का सदस्य बनाया जाए।

महत्त्वपूर्ण यह भी है कि जर्मनी ने भारत को समूह-सात की शिखर बैठक के लिए न्योता दिया है। फ्रांस भी इस समूह में है। यह सब वैश्विक परिदृश्य में भारत के बढ़ते प्रभाव का परिचायक है। आतंकवाद के मुद्दे पर भी भारत और फ्रांस का नजरिया और संकल्प समान ही हैं। फ्रांस ने बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों के लिए दरवाजे खोले हैं। जाहिर है, भारत-फ्रांस के रिश्ते एक नए दौर में प्रवेश कर गए हैं।


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