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फ्रांसीसी संसद ने हाल में 'गणतांत्रिक मूल्यों को सशक्त करने का विधेयक' पारित किया है। इसका उद्देश्य आम मुसलमानों को रेडिकल यानी चरमपंथी इस्लाम से दूर रखना है। इसमें मस्जिदों को बाहरी धन लेने से रोकना, मुस्लिम बच्चों को भूमिगत इस्लामी प्रशिक्षण स्थलों में भेजने से रोकना, डॉक्टरों द्वारा मुस्लिम लड़कियों को 'कुंआरी होने का प्रमाण' देने पर रोक लगाने जैसे प्रविधान हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने इसे 'इस्लाम पर हमला' करार दिया है। वहां फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के पुतले जलाए गए। इस बीच अहम सवाल यही है कि क्या राज्य या सरकार जिहादियों और अन्य पक्षों के बीच तटस्थ बने रहें? यदि राज्य निर्विकार हो जाए तो संविधान को अंगूठा दिखाते हुए इस्लामवादी पूरे देश को शरीयत से चलने पर विवश करेंगे। यूरोप में कई स्थानों पर यह दिखने भी लगा है।
सेक्युलरिज्म एकतरफा नहीं चल सकता, फ्रांस में लयसिटे और इस्लाम की कशमकश