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- चार बनाम पच्चीस लाख

आखिर माहौल की तल्खियों ने हिमाचल विधानसभा सत्र में पहली बार यह रेखांकित कर ही दिया कि अंदर और बाहर के शोर-शराबे के कारणों मंे प्रदेश की कार्य संस्कृति का बिगड़ता मिजाज भी शामिल है। इसमें दो राय नहीं कि वर्तमान सरकार या इससे पूर्ववर्ती सरकारें कर्मचारी हितैषी रही हैं, लेकिन चुनाव की चुगलखोरी में हमेशा सरकारों के कान कच्चे पाए गए। प्रदेश में अब एक नई बहस शुरू हो रही है। यानी चार बनाम पच्चीस लाख। चार लाख सरकारी कर्मचारी एवं पेंशनर्स के सामने पच्चीस लाख निजी क्षेत्र का रोजगार खड़ा है और सदैव तत्परता के साथ मेहनत-मशक्कत करता हुआ प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में अपना योगदान कर रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अगर कड़ाई से सरकारी कार्य संस्कृति के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए विपक्ष की भूमिका और कर्मचारी आंदोलनों की तरफ इशारा किया है, तो यह हिमाचल की वास्तविकता है। हिमाचल की कार्य संस्कृति का बिगड़ता स्वरूप हर जगह अंगीकार हो रहा है और इसके लिए प्रदेश की राजनीति, मिशन रिपीट के झूले और कर्मचारी सियासत पूरी तरह दोषी है। यह पहला प्रदेश है जहां कर्मचारी अधिकार, नागरिक समाज के अधिकारों से भी ऊपर है। यह पहला राज्य है जहां सरकारी नौकरी के चमत्कार व आविष्कार की सियासत भूल जाती है कि हिमाचल का रोजगार केवल निजी क्षेत्र की खुशहाली से ही संभव है।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल
