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- चार मिले, चौंसठ खिले…
संयोग अक्सर होते हैं, होते ही रहते हैं। संयोग ऐसा बना कि मेरे कालेज के समय के चार मित्रों सुभाष, रमेश, अभिषेक और नंद लाल का अचानक चंडीगढ़ आने का कार्यक्रम बना तो मैंने उनसे निवेदन किया कि वे सब हमारे यहां ही ठहरें। पुराने मित्रों का मिलना तो खुशी का कारण होता ही है। सभी मित्र परिवार सहित पधारे थे, सो हम पांच परिवार इकट्ठे हो गए तो धमाल तो होना ही था। पुरानी यादें, पुरानी बातें, बच्चों की उपलब्धियां, सब पर खूब चर्चा हुई। खुशी के इस माहौल में हमारे मित्र सुभाष जी ने एक कविता सुनाई और उसका अर्थ बताया तो खुशियां मानो चौगुनी हो गईं। सुभाष जी ने फरमाया- 'चार मिले चौंसठ खिले, बीस रहे कर जोड़, प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़'। हमें एकदम से तो कुछ समझ नहीं आया, पर जब उन्होंने इसका खुलासा भी किया तो मज़ा आ गया। यह कोई रहस्य नहीं है। 'चार मिले'- मतलब जब भी कोई दो मित्र मिलते हैं तो वे एक-दूसरे को देखते हैं जिसके कारण सबसे पहले आपस में दोनों की आंखें मिलती हैं, इसलिए कहा, 'चार मिले', फिर कहा, 'चौंसठ खिले'- यानी, दोनों के बत्तीस-बत्तीस दांत, कुल मिलाकर चौंसठ हो गए, दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई, इस तरह 'चार मिले, चौंसठ खिले हुआ'। अब आगे है ः 'बीस रहे कर जोड़'- दोनों हाथों की दस उंगलियां, दोनों व्यक्तियों की बीस हुईं, बीसों मिलकर ही एक-दूसरे को प्रणाम की मुद्रा में हाथ उठते हैं! 'प्रेमी सज्जन दो मिले'- जब दो आत्मीय जन मिलें, दोस्त मिलें, रिश्तेदार मिलें, ऐसे लोग मिलें जिनमें आपस में प्रेम हो, विश्वास हो, एक-दूसरे का आदर हो- यह बड़े रहस्य की बात है- क्योंकि मिलने वालों में आत्मीयता नहीं हुई तो न 'चौंसठ खिलेंगे' और न 'बीस रहे कर जोड़ होगा'। वैसे तो शरीर में रोम की गिनती करना लगभग असंभव है, लेकिन मोटा-मोटा साढ़े तीन करोड़ माने जाते हैं। इस तरह इस कविता का अंतिम भाग- 'प्रेमी सज्जन दो मिले, खिल गए सात करोड़' का अर्थ हुआ कि जब हमारा कोई प्रिय व्यक्ति हमसे मिलता है तो हमारा रोम-रोम खिल जाता है। एक व्यक्ति के रोम साढ़े तीन करोड़, तो दोनों के हुए सात करोड़
सोर्स- divyahimachal