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कई बार लगता है कि आर्यावर्तियों के पास अब मज़ाक और आलोचना के सिवाय कोई काम नहीं बचा। युगपुरुष प्रधानमंत्री गम्भीर होकर जब भी कोई क़दम उठाते हैं, लोग उनके क़दमों पर मज़ाक और आलोचना के जाल फैंकना शुरू कर देते हैं। पर लोग भी क्या करें? युगपुरुष कब सीरियस होते हैं और कब मज़ाकिए, पता ही नहीं चलता। पता नहीं युगपुरुष सत्ता प्राप्ति से दशक भर पहले चुनावी रैलियों में जब डॉलर के मुक़ाबले रुपया गिरने की बात कर रहे थे, तब सीरियस थे या अब, जब रुपया हमारे चरित्र की भाँति हर रोज़ गिर रहा है। युगपुरुष उसे उन देशों के मुक़ाबले बेहतर बता रहे हैं जो हमारी फटी कमीज़ के बरअक्स चिथड़ों में या नंगे खड़े हैं। गिरने में भी महानता का सकारात्मक दृष्टिकोण राष्ट्रीय मज़ाक का परिचायक है। युगपुरुष की छाती छप्पन की बजाय भले टूक हो गई हो पर लोग अब तक उनकी सीरियसनेस और मज़ाक में भेद नहीं कर पाए हैं। लोग अभी तक कनफ्यूजिय़ाए हुए हैं कि युगपुरुष अग्निवीर पर सीरियस हैं या मज़ाक के मूड में।
By: divyahimachal