सम्पादकीय

चीन पर चार निगाहें

Rani Sahu
23 May 2022 7:12 PM GMT
चीन पर चार निगाहें
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क्वाड मंच पर शीर्ष नेताओं के विमर्श और अमरीका के ‘इंडो-पेसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क’ के दो मायने तय हैं

क्वाड मंच पर शीर्ष नेताओं के विमर्श और अमरीका के 'इंडो-पेसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क' के दो मायने तय हैं। एक तो चीन पर चार मित्र-देशों की निरंतर निगाहें और दूसरा चारों देशों के बीच आपसी आर्थिक सहयोग। भारत भी इस फ्रेमवर्क का पक्षधर है, यह प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया है। भारत का इससे जुड़ना तय है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के साथ-साथ इसके आर्थिक आयामों पर भी भारत अमरीका, जापान और ऑस्टे्रलिया के साथ विमर्श करता रहा है और इस बैठक में भी करेगा। क्वाड के मंच पर अमरीकी राष्ट्रपति जोसेफ बाइडेन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा मौजूद हैं। चूंकि ऑस्टे्रलिया में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है और एंथनी अल्बनीस नए प्रधानमंत्री चुने गए हैं। वह क्वाड बैठक के बाद ऑस्टे्रलिया के हिस्से का कार्यक्रम तय करेंगे, लेकिन वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के आर्थिक फ्रेमवर्क के प्रयास का आगाज जरूर करेंगे। क्वाड एशिया और उसके बाहर की दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक मंच है। बुनियादी सहमति यह है कि हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की नौसैनिक और कारोबारी गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जाए और चीन की सक्रियता को समझा जाए। चीन हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और साऊथ चाइना सागर में अपना वर्चस्व कायम करने की रणनीतियां बनाता रहा है, कोशिशें भी जारी रखी हैं।

उस वर्चस्व को तोड़ने में अमरीका के साथ भारत और जापान सरीखी एशियाई ताकतों का समर्थन है। ऑस्टे्रलिया कुछ बाद में क्वाड के साथ जुड़ा था। क्वाड ने समुद्री निगरानी तंत्र की शुरुआत टोक्यो बैठक में ही की है। इस प्रयास के तहत भारत, सिंगापुर और प्रशांत महासागर में मौजूद निगरानी-केंद्रों को सेटेलाइट से जोड़ा जाएगा। इससे दक्षिण-पूर्वी एशिया, हिंद महासागर और दक्षिणी प्रशांत तक चीन की अवैध गतिविधियों को टै्रक किया जा सकेगा और चीन की समुद्री रणनीति को समझा जाएगा। दरअसल जब टोक्यो में क्वाड के चारों देशों के शीर्षस्थ नेताओं की बैठक हुई है, तब रूस-यूक्रेन युद्ध के तीन माह बीत चुके हैं। इस पर भी नेताओं ने चर्चा की होगी, क्योंकि युद्ध ने पूरी दुनिया को किसी न किसी तरह प्रभावित किया है। यह कालखंड ही युद्ध का लगता है, क्योंकि चीन ताइवान पर हमला करने के संकेत देता रहा है। उसके लड़ाकू विमानों ने जबरन और अवैध तरीके से ताइवान के वायु-क्षेत्र में घुसने की कोशिशें भी की हैं। चीन के हजारों सैनिक एक लंबे अंतराल से भारत के लद्दाख वाली एलएसी पर तैनात हैं। कुछ अतिक्रमण और अवैध निर्माण भी किए गए हैं। यदि भविष्य में चीन के साथ युद्ध की नौबत आती है, तो उसकी रणनीति तैयार होनी चाहिए। उस संदर्भ में क्वाड की यह बैठक बेहद महत्त्वपूर्ण है।
चीन भी आसान शत्रु नहीं है। क्वाड में रणनीतियां तय की गई हैं, सेटेलाइट से निगरानी का जाल बुना गया है, तो ऐसा नहीं है कि चीन तकनीकी स्तर पर कमजोर देश है। अंतरिक्ष में उसकी सक्रियता और उसका विस्तार भी काफी है। चीन ने हाल ही में कुछ विध्वंसक मिसाइल सिस्टम का प्रदर्शन किया था। वह सिस्टम किसी भी देश की ताकत को भस्म कर सकता है, चीन का यह दावा है। युद्ध और अन्य रणनीतियों के मद्देनजर चीन और रूस एक ही पाले में हैं। बेशक चीन क्वाड की बैठक से बौखला सकता है, लेकिन पराजय की चिंता वाली स्थिति में वह नहीं है। अमरीका, भारत, जापान, ऑस्टे्रलिया के रणनीतिकारों को इसकी गहरी समझ होगी, लिहाजा क्वाड की बैठक महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है। क्वाड देशों के नेताओं को आपसी द्विपक्षीय संवाद का मौका भी मिलेगा, जाहिर है कि ऐसे विषयों पर भी बातचीत होगी। सहयोग, कारोबार, अर्थव्यवस्था, वैश्विक हालात और आपसी सांस्कृतिक संबंधों पर भी बातचीत होगी। प्रधानमंत्री मोदी टोक्यो में 36 कंपनियों के सीईओ से बातचीत कर रहे हैं, तो जाहिर है कि वह दोनों देशों के औद्योगिक संबंधों को विस्तार देना चाहते हैं। क्वाड घोषणा पर भी दुनिया और खासकर चीन की निगाहें लगी होंगी, लिहाजा उसकी प्रतीक्षा की जानी चाहिए। युद्ध-काल में क्वाड की रणनीति का विश्लेषण बहुत जरूरी है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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