सम्पादकीय

सुशासन की बुनियाद

Gulabi
3 Nov 2020 1:24 PM GMT
सुशासन की बुनियाद
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सत्ता की कमान संभालते वक्त हर सरकार बेहतर सुशासन देने के दावे करती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सत्ता की कमान संभालते वक्त हर सरकार बेहतर सुशासन देने के दावे करती है, मगर हकीकत में वे दावे सिरे नहीं चढ़ पाते। सुशासन यानी चुस्त कानून-व्यवस्था, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और सेवाएं, कारोबार और रोजगार के अच्छे अवसर आदि। ये सब बातें अब सिर्फ पक्ष या विपक्ष में बंटे नागरिकों के संतोष या असंतोष पर निर्भर नहीं करतीं।

कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां अध्ययन करने लगी हैं कि दुनिया के किस देश, किस राज्य और शहर में नागरिक सुविधाओं की क्या स्थिति है। बंगलुरू की पब्लिक अफेयर सेंटर नामक एजेंसी ने सार्वजनिक मामलों को लेकर भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का अध्ययन किया है और उन्हें अंकों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए बताया है कि केंद्र शासित प्रदेशों में सुशासन के स्तर पर चंडीगढ़ सबसे ऊपर है।

राज्यों में केरल शीर्ष पर और दक्षिण दूसरे सभी राज्य ऊपर के पायदान पर हैं, तो उत्तर प्रदेश, बिहार और ओड़ीशा सबसे खराब स्थिति में हैं। उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है। अभी कुछ दिनों पहले ही एक दूसरी एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कारोबार करने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में स्थितियां बाकी सभी राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर है। इसी तरह के विरोधाभास दूसरे कुछ राज्यों के मामले में भी उभर सकते हैं।

सुशासन समग्र प्रयास से स्थापित होता है। यह एकांगी कभी नहीं हो सकता। ऐसा नहीं हो सकता कि लचीली नीतियां बना कर या कुछ आसानी उपलब्ध करा कर राज्य में कारोबार के लिए स्थितियां तो बेहतर बना ली जाएं, पर अपराध और भ्रष्टाचार रोकने के मामले में शिथिलता बरतते रहें। जब किसी राज्य में सुशासन और खुशहाली आंकी जाती है तो उसमें देखा जाता है कि वहां सड़कों की क्या हालत है, वहां स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षण संस्थाएं कैसी हैं। वहां के किसान, दुकानदार कितने सहज महसूस करते हैं।

महिलाएं और समाज के निर्बल कहे जाने वाले तबकों के लोग कितने सुरक्षित हैं। प्रशासन से आम लोगों की कितनी नजदीकी है। अगर कोई अपराध होता है, तो दोषियों की धर-पकड़ में कितनी मुस्तैदी दिखाई जाती है और कितने न्यायपूर्ण तरीके से उसे निपटाया जाता है। बंगलुरू के जिस संस्थान ने राज्यों में सुशासन संबंधी ताजा रिपोर्ट जारी की है, उसने भी समानता, विकास और निरंतरता के आधार पर अध्ययन किया।

इन बिंदुओं का महत्त्व समझा जा सकता है। इन्हीं के आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में किन राज्यों का देश के आर्थिक विकास में कैसा और कितना योगदान रह सकता है। टिकाऊ विकास के मामले में इनसे कितनी मदद मिल सकती है।

कुछ लोगों का तर्क हो सकता है कि छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दायरा छोटा और उनकी आबादी कम होती है, इसलिए वहां कानून-व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं के मामले में बेहतर काम हो पाते हैं, मगर उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े और सघन आबादी वाले राज्यों में सरकारों के सामने कई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

मगर यह तर्क जिम्मेदारियों से बचाव का कोई रास्ता नहीं हो सकता। राज्यों को उनके आकार और आबादी के हिसाब से बजटीय आबंटन किए जाते हैं, उनकी आमदनी भी उसी अनुपात में छोटे राज्यों की अपेक्षा अधिक मानी जा सकती है। ऐसे में अगर बुनियादी स्तर पर वे बेहतर काम नहीं कर पातीं, तो यह उनकी नाकामी ही कही जाएगी। सुशासन के मामले में पिछड़े हर राज्य को अपने से बेहतर राज्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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