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Written by जनसत्ता: दिल्ली से सटे नोएडा में अवैध ढंग से बने दो बड़े टावरों को विस्फोटक लगा कर ध्वस्त कर दिया गया। वह एक नजीर बन गया है। कह सकते हैं कि आप कितनी ही बड़ी हस्ती और ताकतवर क्यों न हों, अगर आपने कोई काम गलत ढंग से किया है, तो फिर उसका यही हाल होना है। इन टावरों को ध्वस्त करते समय आसपास के भवनों की सुरक्षा का जिस तरह से ध्यान रखा गया, वह काबिले-तारीफ है।
इन विवादित टावरों को गिराने की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकारी एजेंसियों की देखरेख में हर तरह की सतर्कता का ध्यान रखते हुए की गई। ये टावर वर्षों से विवाद में थे और देश में बिल्डर, नौकरशाह, राजनेताओं की सांठगांठ का प्रतीक बन गए थे।
इस सिलसिले में पहली बात यह याद रखने योग्य है कि बिल्डिंग को पूरी तरह कंस्ट्रक्शन कंपनी के खर्च पर गिराया गया है, तो महत्त्वपूर्ण बात यह कि इसे गलत तरीके से मंजूरी देने वाले भी कार्यवाही के दायरे में लिए गए हैं, इसलिए यह संदेश स्पष्ट है कि आगे से इस तरह अवैध तरीके से किए गए निर्माण कभी न कभी जमींदोज होने ही हैं। पर सवाल है कि ऐसे अवैध निर्माण होते ही क्यों हैं।
दिल्ली सरकार ने अगर अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए 'शराब-नीति' में फेर-बदल/ संशोधन किया है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। आय बढ़ाने के कई और साधन अथवा तरीके हैं। मसलन, सरकारी खर्च को कम किया जा सकता है। विधायकों, सांसदों, आला अफसरों आदि को दी जाने वाली बेतहाशा सुविधाओं पर लगाम लगाई जा सकती है। विज्ञापनबाजी और मुफ्त की 'रेवड़ियां बांटने' वाली परंपराओं पर अंकुश लगाया जा सकता है आदि-आदि। ऐसा करेंगे तो राजस्व अपने आप बढ़ेगा।
एक तरफ हम कहते हैं कि शराब का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और दूसरी तरफ इस 'लत' को बढ़ावा देने के लिए सुविधाएं दे रहे हैं और नए-नए रास्ते निकाल रहे हैं, यह जनता खास तौर पर युवा-पीढ़ी के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं तो क्या है?