सम्पादकीय

प्रधानमंत्री संग्रहालय बनने से नेहरू-गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्रियों को बराबरी का दर्जा मिला

Gulabi Jagat
16 April 2022 11:57 AM GMT
प्रधानमंत्री संग्रहालय बनने से नेहरू-गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्रियों को बराबरी का दर्जा मिला
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ओपिनियन न्यूज
अजय झा |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने गुरुवार को नवनिर्मित प्रधानमंत्री संग्रहालय (Prime Minister Museum) का उद्घाटन किया जिसमें अब तक के सभी 14 भारतीय प्रधानमंत्रियों के योगदान को दर्शाया गया है. इसमें गुलजारीलाल नंदा को भी शामिल किया गया है. जिन्होंने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में 13 दिनों के लिए दो बार अपनी सेवाएं दी. इसमें मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी को शामिल नहीं किया गया है. नया संग्रहालय तीन मूर्ति भवन परिसर के अंदर बनाया गया है जिसे वर्तमान में नेहरू संग्रहालय (Nehru Museum) के रूप में जाना जाता है, जबकि अब उसे ब्लॉक 1 के नाम से जाना जाएगा और उसके पास बने नए भवन को ब्लॉक 2 के रूप में नामित किया गया है. इन दोनों ब्लॉक का कुल क्षेत्रफल 15,600 वर्ग मीटर है.
नया संग्रहालय दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर राष्ट्र को समर्पित किया गया, जबकि पिछले 74 सालों में जब से भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल की है, कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री दलित समुदाय से नहीं आया है. वैसे दलित समाज की आबादी देश की जनसंख्या का 16.6 प्रतिशत से ज्यादा है. प्रधानमंत्री पद के सबसे करीब पहुंचने वाले एक दलित नेता के तौर पर जगजीवन राम का नाम लिया जा सकता है. जिन्होंने 1979 में लगभग छह महीने तक उप प्रधानमंत्री के तौर पर काम किया. जबकि उस दौरान मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री के पद पर आसीन थे.
तीन मूर्ति भवन का इतिहास
तीन मूर्ति भवन का निर्माण ब्रिटिश शासकों द्वारा किया गया था जब उन्होंने भारतीय राजधानी को कलकत्ता (जिसे अब कोलकाता कहते हैं) से नई दिल्ली में स्थानांतरित करने का फैसला किया था. इसे ब्रिटिश आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल द्वारा डिजाइन किया गया था जिन्होंने कनॉट प्लेस और क्वीन्स वे को भी डिजाइन किया था. जिसे अब जनपथ के नाम से जाना जाता है. तीन मूर्ति भवन को मूल रूप से फ्लैगस्टाफ हाउस के नाम से जाना जाता था. जिसका उद्घाटन 1930 में हुआ था और यह ब्रिटिश भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ का निवास स्थान हुआ करता था.
यह वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के बाद दूसरा सबसे बड़ा आवास परिसर था. पहले भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने आवास के तौर पर फ्लैगस्टाफ हाउस को चुना और आजादी के बाद से अपनी मृत्यु (24 मई, 1964) तक वहीं रहे. ऐसा कहा जाता है कि नेहरू के उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री ने एक छोटे से मंत्रिस्तरीय बंगले में रहने का विकल्प चुना जो उन्हें नेहरू कैबिनेट के मंत्री के तौर पर आवंटित किया गया था. क्योंकि नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने बंगले से जुड़ी यादों की वजह से शास्त्री के तीन मूर्ति भवन में जाने पर आपत्ति जताई थी. जनवरी 1966 में इंदिरा गांधी के भारतीय प्रधानमंत्री बनने पर इसे आधिकारिक तौर पर नेहरू मेमोरियल में बदल दिया गया. जिसमें उनसे जुड़ी चीजों को रखा गया है.
अब नेहरू मेमोरियल का क्या होगा?
कुछ समय के लिए मौजूदा नेहरू स्मारक को नहीं बदला गया. लेकिन नेहरू खानदान की मौजूदा पीढ़ी उनके गौरव को कम करती प्रतीत हो रही है. कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस परिवार को अब गांधी परिवार के नाम से जाना जाता है. अब तक तीन भवन पूर्व प्रधानमंत्रियों को समर्पित किए जा चुके हैं. तीन मूर्ति भवन के अलावा 1 मोतीलाल नेहरू मार्ग बंगला जहां लाल बहादुर शास्त्री रहते थे को अब शास्त्री संग्रहालय के रूप में जाना जाता है.
जबकि 1 सफदरजंग रोड बंगला जहां इंदिरा गांधी रहती थीं. 1984 में उनकी हत्या के बाद, राजीव गांधी ने उनके आवास को भारतीय प्रधानमंत्री को समर्पित तीसरे संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया. राजीव उनके उत्तराधिकारी भी बने. बहुत बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली पहली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने पीएम आवासों को संग्रहालयों में बदलने की परंपरा को तोड़ दिया क्योंकि 7 रेसकोर्स रोड कॉम्प्लेक्स (जिसे अब 7 लोक कल्याण मार्ग के रूप में जाना जाता है) भारतीय प्रधानमंत्रियों को नामित आधिकारिक बंगला बन गया. 1 मोतीलाल नेहरू रोड और 1 सफदरजंग रोड बंगलों का क्या होगा इस पर अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है.
हालांकि मोदी सरकार ने तीन मूर्ति भवन से जुड़ी नेहरू की विशिष्टता को खत्म कर दिया है क्योंकि अब उनके साथ उनके सभी 13 उत्तराधिकारियों को भी समान दर्जा दिया गया है. नया संग्रहालय शास्त्री, गुलजारीलाल नंदा और पीवी नरसिम्हा राव को भी मान्यता दे रहा है जिन्हें कथित तौर पर राजनीतिक कारणों से सम्मान से वंचित कर दिया गया था.
नए संग्रहालय में हॉल ऑफ फेम में शामिल प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू: कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 (16 साल और 286 दिन) तक. उन्हें भारत के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्री का दर्जा प्राप्त है.
लाल बहादुर शास्त्री: कार्यकाल 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक. कांग्रेस पार्टी पर राजनीतिक कारणों से राष्ट्र के लिए शास्त्री के योगदान की अनदेखी करने का आरोप है.
इंदिरा गांधी: कार्यकाल 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977 और 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984 तक. 15 साल और 350 दिन के अपने कार्यकाल के जरिए वो नेहरू के बाद सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं.
मोरारजी देसाई: कार्यकाल 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक. पार्टी के अंतर्विरोधों और जनता पार्टी के विभाजन के कारण उनकी सरकार गिर गई.
चौधरी चरण सिंह: कार्यकाल 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक. कांग्रेस पार्टी द्वारा उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने की वजह से उनकी सरकार गिर गई.
राजीव गांधी: कार्यकाल 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसंबर 1989 तक. उनकी सरकार के बोफोर्स तोप घोटाले में शामिल होने की वजह से वो 1989 के आम चुनाव हार गए.
विश्वनाथ प्रताप सिंह: कार्यकाल 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990. अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) को आरक्षण देने वाले विवादास्पद मंडल कमीशन रिपोर्ट को लागू करने के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है.
चंद्रशेखर: कार्यकाल 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991. चंद्रशेखर को भारत के स्वर्ण भंडार को गिरवी रखने के लिए याद किया जाता है, ताकि भारत को अंतर्राष्ट्रीय ऋणों को चुकाने में डिफॉल्टर बनने से बचाया जा सके.
पीवी नरसिम्हा राव: कार्यकाल 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक. जो नेहरू-गांधी परिवार के बाहर से प्रधानमंत्री बनने वाले पहले कांग्रेस नेता थे. उदारीकरण शुरू करने और अमेरिका के साथ दोस्ती के जरिए भारतीय विदेश नीति में सुधार कर भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन के लिए उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाता है. हालांकि उनके योगदान को राजनीतिक कारणों से मान्यता नहीं मिली.
अटल बिहारी वाजपेयी: कार्यकाल 16 मई 1996 से 1 जून 1996 और 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक. छह साल और 80 दिनों तक वो प्रधानमंत्री के पद पर आसीन रहे. पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध के अलावा अपने कार्यकाल के दौरान भारत को परमाणु शक्ति के रूप में पहचान दिलाने के लिए भी उन्हें याद किया जाता है.
एच. डी. देवगौड़ा: कार्यकाल 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक. उन्हें प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने अल्पसंख्यक संयुक्त मोर्चा सरकार को अपना समर्थन जारी रखने के लिए उन्हें प्रधानमंत्री का पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया.
इंदर कुमार गुजराल: कार्यकाल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक. जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने संयुक्त मोर्चा से समर्थन वापस ले लिया तो उन्हें पद छोड़ना पड़ा और आम चुनावों का सामना करना पड़ा.
मनमोहन सिंह: कार्यकाल 22 मई 2004 से 26 मई 2014 तक. इन्होंने नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया था और भारत को एक गहरे आर्थिक संकट से बाहर निकालने का इन्हें श्रेय दिया जाता है. अचानक प्रधानमंत्री पद की दावेदार सोनिया गांधी ने अपने कदम पीछे खींच लिए और मनमोहन सिंह का नाम नए प्रधानमंत्री के रूप में घोषित किया. प्रधानमंत्री के तौर पर उनका 10 साल और 4 दिन का कार्यकाल रहा. वो तीसरे सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री बनें. उनकी सरकार कई भ्रष्टाचार घोटालों से घिरी हुई थी. अर्थव्यवस्था, विदेशी मामलों और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सराहनीय काम के बावजूद उनकी सरकार 2014 के आम चुनावों में मोदी लहर के हमले का सामना करने में विफल रही.
गुलजारीलाल नंदा: आधिकारिक तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है क्योंकि उन्होंने शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से पहले और उनकी मृत्यु के बाद 13 दिनों के लिए दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. उनकी गिनती सबसे ईमानदार नेताओं में की जाती है. उनकी मृत्यु गरीबी में ही हुई. उन्हें कभी-कभी दिल्ली के फुटपाथों पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. क्योंकि उनके पास न तो घर था और न ही किराए के लिए पैसे.
नरेंद्र मोदी : जिन्होंने 26 मई 2014 से मनमोहन सिंह की जगह 14वें प्रधान मंत्री के रूप में पदभार संभाला. वह अगले महीने अपने कार्यकाल के आठ साल पूरे करेंगे. वह चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले नेता बन गए हैं. और सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले पहले गैर-कांग्रेसी नेता. मोदी ने अपने का नाम सेक्शन प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय में न रखने का फैसला किया है. इस संग्रहालय ऐसे दो पूर्व प्रधानमंत्री जो जीवित हैं उनमें देवगौड़ा और मनमोहन सिंह शामिल हैं.
नया संग्रहालय क्यों?
प्रधानमंत्रियों का संग्रहालय उन सभी प्रधानमंत्रियों के लिए एक सम्मान है, जिन्होंने अपनी पार्टी और उनकी अलग विचारधाराओं के बावजूद देश की सेवा में अपना योगदान दिया. भले ही उनका कार्यकाल कितना भी रहा हो. मोदी कुछ समय से कांग्रेस पार्टी और नेहरू संग्रहालय को निशाना बना रहे हैं. जिसे उनकी पौत्रवधु बहू सोनिया गांधी, परपोते राहुल गांधी और परपोती प्रियंका गांधी मिलकर चला रही हैं. नया संग्रहालय नेहरू और उनके परिवार को दूसरों के बराबर रखता है और इस तरह उनके खास ओहदे को खत्म करता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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