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आदित्य चोपड़ा: भारत सरकार द्वारा देश के सभी पूर्व प्रधानमन्त्रियों की याद में स्मारक बनाये जाने के फैसले काे भारत की बदलते समय में भूमिका और महत्ता के नुक्ते से देखा जाना इसलिए वाजिब होगा क्योंकि स्वतन्त्रता मिलने के 74 वर्ष बाद देश में जो सामाजिक- आर्थिक औऱ राजनीतिक परिवर्तन आया है उसके चरणबद्ध सिलसिले को जनता की अपेक्षाओं औऱ आकांक्षाओं के आइने में पेश करने की जरूरत है। इस दौरान जिन–जिन नेताओं के हाथ में भी देश की बागडोर रही है उनकी छोड़ी हुई विरासत का मूल्यांकन देश-काल परिस्थितियों के अनुरूप करते हुए उनके योगदान का महत्व समझना प्रत्येक भारतवासी का कर्त्तव्य भी बनता है। भारत में अभी तक कुल 14 प्रधानमन्त्री हुए हैं जिनमें श्री नरेन्द्र मोदी वर्तमान में भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर कमान संभाले हुए हैं। लोकतन्त्र में सरकार एक सतत् प्रक्रिया होती है। अतः पिछले 74 सालों में आज हम जहां पहुंचे हैं उसमें सभी पिछली सरकारों का किसी न किसी स्तर पर योगदान रहना लाजमी है। पुराने कुल 13 भूतपूर्व प्रधानमन्त्रियों मे से ऐसे भी रहे हैं जो संसदीय हमारी लोकतन्त्र में लोकसभा में बने संख्याबल के बहुमत के आधार पर उस समय के राजनीतिक जोड़तोड़ के परिणाम भी कहे जा सकते हैं मगर इससे देश के विकास में किया गया उनका योगदान कम नहीं होता है। पहले प्रधानमन्त्री प. जवाहर लाल नेहरू से लेकर, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, पीवी नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी, एचडी देवेगौड़ा, इन्द्र कुमार गुजराल, डा. मनमोहन सिंह का अपने कार्यकाल के दौरान देश का नेतृत्व करना हमारे स्वातन्त्रोत्तर भारत के इतिहास का ऐसा जीता-जागता सच है जिसके छाेड़े हुए निशानों से हमारी पुरानी औऱ नई पीढि़यां प्रभावित रही हैं औऱ वर्तमान में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इसी विरासत को लेकर नये इतिहास की रचना कर रहे हैं। मगर जब भी भारत के पूर्व प्रधानमन्त्रियों की बात होती है तो तीन नाम हमें बहुत ऊंचाई पर खड़े नजर आते हैं जो श्री जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के हैं। इनमें प. नेहरू को उनकी विभिन्न राजनीतिक गलतियों के बावजूद दूरदृष्टा राजनेता (स्टेट्समैन) और विचारक माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प. नेहरू महात्मा गांधी के नेतृत्व मे कांग्रेस द्वारा चलाए गए आजादी के आन्दोलन के प्रमुख सिपहसालार थे और 1947 में अंग्रेज जो लुटा–पिटा और मजलूम भारत उन्हें छोड़ कर गये थे उसे उन्होंने अपनी दूरदृष्टि से आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से मजबूत करने के लिए ऐसे कदम उठाये जिनका 'फल' आने वाली पीढि़यों को मिलता रहे। साथ ही उन्होंने भारत मे लोकतन्त्र की जड़े जमाने के लिए भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुए भारत में ऐसे जवाबदेह संस्थानों की नींव डाली जिससे संविधान द्वारा लोगों को मिले एक वोट के अधिकार की सर्वसत्ता सदैव मुखरित होती रहे। इसका एक कारण यह भी था कि प. नेहरू का यह दृढ़ विश्वास था कि भारत कभी भी किसी युग में 'गरीब राष्ट्र' नहीं रहा है। मगर वह जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर एक एतिहासिक गलती कर गये थे कि पाकिस्तान द्वारा इस क्षेत्र पर आक्रमण करने के बाद वह इस मामले को राष्ट्रसंघ में लेकर चले गये थे जबकि इसके विपरीत पाकिस्तान ने ही ब्लूचिस्तान को मार्च 1948 में ही बलात सेना भेजा कर तब कब्जा लिया था जबकि मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान के वजूद में आने से पहले ही 11 अगस्त 1947 को इसे एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में मान्यता दे दी थी। यह मामला राष्ट्रसंघ में नहीं गया था। नेहरू के आलोचक उनकी दूसरी गलती स्वतन्त्र भारत में एक समान नागरिक आचार संहिता को लागू न करना मानते हैं। मगर इन सबके बावजूद प. नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता माना जाता है। दूसरा नम्बर निश्चित रूप से लाल बहादुर शास्त्री का आता है जिन्होंने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को भारत पर अकारण ही युद्ध थोपने के लिए करारा सबक सिखाया था और ईंट का जवाब पत्थर से दिया था। उनका दिया गया 'जय जवान-जय किसान' का उद्घोष बच्चे-बच्चे की जुबान पर तब तैरने लगा था क्योंकि भारत में अनाज की कमी को देखते हुए उन्होंने हरित क्रांति की शुरूआत भी कर दी थी और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के फार्मूले की बुनियाद डाली थी। इसके बाद स्व. इंदिरा गांधी का नाम पूरे देश में इस हकीकत के बावजूद पूरे सम्मन से लिया जाता है कि उन्होंने भारत में 18 महीने के लिए इमरजेंसी लगाई थी। इंदिरा जी के प्रशंसक उनके कार्य काल विशेष कर 1970 से 1974 को भारत का स्वर्णिम काल भी कहते हैं क्योंकि इसी दौरान इन्दिरा जी ने प्रथम परमाणु विस्फोट करके भारत को परमाणु शक्ति बनाया और इसकी भौगोलिक सीमाओं में विस्तार सिक्किम का भारत में विलय करके किया और सबसे ऊपर 1971 के युद्ध में पाकिस्तान को बीच से चीर कर बंगलादेश बनवाया परन्तु उन पर इमरजेंसी का दोष लगा रहा और दूसरा आरोप समग्र लोकतन्त्र को कमजोर करने का रहा और इसमें भी कांग्रेस पार्टी के आन्तरिक लोकतन्त्र को कोने में रख कर परिवारवाद को प्रश्रय देने का रहा। चौथे सबसे महत्वपूर्ण प्रधानमन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी रहे जिन्होंने भारत की राष्ट्रीय राजनीति में अप्रतिम प्रयोग साझा या गठबन्धन सरकारों का किया और वह सभी घटक दलों के निर्विवाद नेता बने रहे। भारत की बहुदलीय औऱ बहुवैचारिक राजनीति को देखते हुए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं कही जा सकती। जहां तक स्व. राजीव गांधी का प्रश्न है तो उनके खाते में सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में सूचना या संचार अथवा कम्प्यूटर क्रन्ति की शुरूआत करना माना जाता है। हालांकि राजनीतिक अनुभव न होने की वजह से उनसे कुछ ऐतिहासिक गलतियां भी हुई जिनमें 'शाहबानो' मुआवजा मामला सबसे ऊपर आता है।