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मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा के आम चुनाव के लिए अभी डेढ़ साल से ज्यादा का समय बाकी है
दिनेश गुप्ता
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा के आम चुनाव के लिए अभी डेढ़ साल से ज्यादा का समय बाकी है. लेकिन,राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह चुनावी मुद्रा में है. सरकार तेजी से ऐसे फैसले ले रही है जिसका लाभ BJP को चुनाव में मिले और कांग्रेस के हाथ सरकार के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा भी न हो? विधानसभा के पिछले चुनाव में मंदसौर गोलीकांड का मुद्दा हावी था. किसानों की कर्ज माफी आर महंगी बिजली से भी उपभोक्ता परेशान था.
कर्ज माफी की वजह से किसान हुए डिफाल्टर
मार्च 2020 में कांग्रेस की सरकार 28 विधायकों के कारण चली गई थी. कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार सिर्फ पंद्रह माह ही चल पाई थी. कांग्रेस की सरकार की अल्पमत वाली सरकार थी. बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. कांग्रेस को 115 सीटें मिली थीं. भाजपा को 109 सीटें मिली थीं. विधायकों ने दलबदल किया तो विधायकों की संख्या के लिहाज से विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. सरकार गिरी तो किसानों की कर्ज माफी भी अटक गई. यद्यपि शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने सितंबर 2020 में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में यह स्वीकार किया था कि 26 लाख किसानों का एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ किया है. लेकिन,किसी किसान का दो लाख रुपए का कर्ज माफी नहीं हुआ.
राहुल गांधी की घोषणा सरकार बनने के बाद किसानों के दो लाख रुपए तक के कर्ज माफ करने की थी. भारतीय जनता पार्टी दो लाख रुपए की कर्ज माफी को मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश में है. ब्याज की माफी इसी रणनीति का हिस्सा है. सरकार जिन किसानों का कर्ज माफ करने जा रही है,ये वो है जिन्होंने कर्ज माफी की उम्मीद बैंक की किश्त देना बंद कर दी थी. समय से पहले कांग्रेस की सरकार गिर जाने से डिफाल्टर हो गए. डिफाल्टर हो जाने का असर यह हुआ कि खाद, बीज के लिए नया लोन भी मिलना बंद हो गया. केन्द्र सरकार और राज्य सरकार किसानों को जो सम्मान निधि दे रही है बैंक यह राशि ब्याज खाते में डाल रही थी किसान को योजना का फायदा नहीं मिल पा रहा था.
शिवराज की नजर लघु एवं सीमांत किसानों पर है
जनसंख्या की दृष्टि से मध्यप्रदेश देश में यह पांचवें क्रम पर है. मध्यप्रदेश में कृषि तथा कृषि से जुड़े व्यवसाय मुख्य रूप से राज्य की अर्थ व्यवस्था का आधार हैं. प्रदेश की लगभग 72 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है. इनमें से 35 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की है. इस वर्ग के पास कृषि योग्य जमीन बहुत कम है. विभिन्न कारणों से ये समुचित कृषि उत्पादन नहीं ले पाते हैं.
इन्हें मिलाकर प्रदेश में 27.15 प्रतिशत लघु कृषक हैं. इनके पास एक से दो हेक्टेयर कृषि भूमि है. 48.3 प्रतिशत सीमान्त कृषक हैं, जिनके पास अधिकतम 1 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है. समस्या इन दोनों श्रेणी के किसानों के समक्ष ही है. जो बड़े किसान है उनके खाते भी डिफाल्टर नहीं है. ब्याज माफी के जरिए शिवराज सिंह चौहान लघु एवं सीमांत किसान को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.
ब्याज और बिजली के बिलों को कांग्रेस नहीं बना सकी मुद्दा
ब्याज की माफी और बिजली के बिलों के बारे में शिवराज सिंह चौहान सरकार के फैसले से कांग्रेस पर दबाव दिखाई भी देने लगा है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ कहते हैं कि घोषणा पर अमल होता कहां हैं. वे कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान की बाइस हजार घोषणाएं ऐसी हैं जिन पर अमल नहीं हुआ. मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सामने सरकार के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती मुद्दे की है. जिस तरह से कमलनाथ की सरकार गिरी, उसे भी कांग्रेस बड़ा मुद्दा नहीं बना पाई.
शिवराज सिंह चौहान की सरकार के खिलाफ भी कोई बड़ा आंदोलन कांग्रेस खड़ा नहीं कर पाई है. खासकर बिजली के मुद्दे पर. कोरोना की पहली लहर में बिजली के बिलों की वसूली पर शिवराज सिंह सरकार ने रोक लगा दी थी. कोरोना की दूसरी लहर में भी बिजली बिल वसूल नहीं किए गए. अचानक बकाया बिलों की वसूली के लिए बिजली कंपनियों के सक्रिय होने से लोगों की नाराजगी बड़ा मुद्दा बनती जा रही थी. राज्य में बिजली पहले से ही महंगी है. कांग्रेस सरकार में सौ रुपए में सौ यूनिट बिजली दी जा रही थी. शिवराज सिंह चौहान की सरकार में इस योजना को बंद कर दिया गया.
आम आदमी पार्टी का चुनावी मॉडल भी है शिवराज की रणनीति का हिस्सा
पंजाब आम आदमी पार्टी की जीत में बिजली को बड़ा कारण माना जा रहा है. मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी ने अभी मैदान नहीं संभाला है. पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को बहुत उत्साह जनक समर्थन नहीं मिला था. लेकिन, अरविन्द केजरीवाल का दिल्ली मॉडल कहीं न कही शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भी लागू होता दिखाई दे रहा है. मोहल्ला क्लिनिक की तर्ज पर संजीवनी केन्द्र खोले गए हैं. शिक्षकों की भर्ती भी की जा रही है. सीएम राइज स्कूल भी इस कड़ी का हिस्सा हैं. मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति दो दलीय व्यवस्था पर आधारित है.
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी. तीसरे दल अब तक उभरकर सामने नहीं आ पाया है. इसी कारण कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही परंपरागत राजनीति को नहीं छोड़ पा रहे हैं. राजनीति के केन्द्र में ग्रामीण वोटर और योजनाएं ज्यादा दिखाई देती हैं. शिवराज सिंह चौहान की पिछले एक सप्ताह में की गईं घोषणाएं इसी ओर इशारा करती हैं. श्योहर जिले के करहल में उन्होंने घोषणा की कि गांव के युवा को पुलिस भर्ती में अंकों की छूट भी जाएगी. प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास भी चुनावी राजनीति के लिहाज से काफी अहम हैं. 28 मार्च को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पांच लाख से अधिक लाभार्थियों का ग्रह प्रवेश कराएंगे.
Rani Sahu
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