सम्पादकीय

वन क्षेत्र : आखिर कैसे बचेंगे हमारे जंगल

Neha Dani
17 Dec 2021 1:52 AM GMT
वन क्षेत्र : आखिर कैसे बचेंगे हमारे जंगल
x
दुनिया में यदि जंगलों के खात्मे की यही गति जारी रही, तो वर्ष 2100 तक जंगलों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा।

वनों की कटाई के चलते वन क्षेत्र का लगातार घटते जाना बेहद चिंतनीय है। कानून और नियमों के बावजूद विकास कार्यों, आवासीय जरूरतों, उद्योगों व खनिज दोहन के लिए पेड़ों का कटान जारी है। इससे मानव जीवन तो प्रभावित हुआ ही, मौसम चक्र और पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा है। ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी सीएसआईआरओ ने खुलासा किया है कि पिछले 30 साल में जलवायु परिवर्तन के चलते जंगलों में आग लगने की घटनाओं में खासी वृद्धि हुई है।

जंगल की आग के मौसम अब पहले की तुलना में लंबे होते जा रहे हैं। आग लगने की घटनाओं में 67 फीसदी वृद्धि वहां हुई है, जहां पेड़ों की कटाई की गई थी। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार, ऐसे में, 2030 तक अमेजन के 27 फीसदी जंगल खत्म हो जाएंगे। जंगलों में आग की बढ़ती घटनाओं से कीट-पतंगों, पक्षियों और जानवरों की हजारों प्रजातियां नष्ट हो रही हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड से पहाड़ तप रहे हैं। नतीजतन ग्लेशियर पिघल रहे हैं।
प्रदूषण बढ़ और पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा रहा है। ऑक्सीजन की जरूरत का 15 फीसदी से भी ज्यादा ये जंगल पूरा करते हैं। जंगल में आग लगने से वायु प्रदूषण भी बढ़ा है। सीएसआईआरओ ने पिछले 30 साल में 3,24,000 वर्ग किलोमीटर जंगल में आग की गतिविधियों का विश्लेषण प्रकाशित किया है। उसके अनुसार 2002-2019 के बीच और 1988-2001 की तुलना में सालाना जलने वाले जंगल का औसत क्षेत्र 800 फीसदी ज्यादा था।
1988 के बाद से औसत जला हुआ इलाका सर्दियों में पांच गुना और गर्मियों में दस गुना बढ़ गया है। आंकड़ों के अनुसार, 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया में करीब 1,86,000 वर्ग किलोमीटर जंगल जलकर खाक हो गए। इसी दौरान ब्राजील में आग ने अमेजन के बड़े हिस्से को तबाह कर दिया। इसी तरह वर्ष 2018 में पश्चिमी अमेरिका और ब्रिटिश कोलंबिया का बहुत बड़ा इलाका आग की चपेट में आकर बर्बाद हो गया था।
भारत में इस साल चार जनवरी से 12 अप्रैल के बीच करीब 100 दिन में जंगलों में आग लगने के 15,170 मामले सामने आए, जो बीते वर्ष की तुलना में अधिक हैं। इनमें झारखंड, बिहार, असम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शीर्ष पर हैं। तीसरी दुनिया के देश सबसे ज्यादा इस संकट से जूझ रहे हैं, जहां आबादी के बढ़ते दबाव से तेजी से जंगल कट रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में जंगल कटाई के चलते भूक्षरण की दर हर साल सात मिलीमीटर तक पहुंच गई है, जिससे कई बार नदियों और झीलों में गाद भर जाती है।
जंगलों में हर साल लगने वाली आग से करोड़ों-अरबों की संपत्ति और वन्यजीव स्वाहा हो जाते हैं। फिर भी हमने कोई सबक नहीं लिया। हमारी वननीति ने हमारे सामाजिक सरोकारों को भी छिन्न-भिन्न कर दिया है। वननीति का मसौदा स्थानीय आजीविका व पर्यावरण के लक्ष्यों पर कुठाराघात करता है, जो दुखद है। एक ताजा अध्ययन से खुलासा हुआ है कि दुनिया में यदि जंगलों के खात्मे की यही गति जारी रही, तो वर्ष 2100 तक जंगलों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा।
Next Story