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सोर्स- जागरण
दिव्य कुमार सोती : एक ऐसे समय जब यूरोप, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और यहां तक कि अमेरिका में भी बड़ी टेक कंपनियों की मनमानी और उनके एकाधिकार पर लगाम लगाने के लिए एक के बाद एक कदम उठाए जा रहे हैं, तब भी भारत में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग गूगल, फेसबुक समेत बड़ी टेक कंपनियों के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार एवं गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार के खिलाफ कदम उठाने पर काम कर रहा है, लेकिन अभी तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है।
ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ये कंपनियां भारतीय कानूनों के तहत काम करने के लिए तैयार नहीं दिखतीं। हाल में एक मामले में ट्विटर ने भारत सरकार के विरुद्ध कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया और वहां यह दलील दी कि सरकार जो ट्वीट्स हटाने के लिए कह रही है, उससे संविधानप्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा। इसके पहले एक अन्य मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में ट्विटर ने बड़ा सुविधाजनक रवैया अपनाया। इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा हिंदू देवी-देवताओं से जुड़े अपमानजनक ट्वीट्स हटाने की मांग पर ट्विटर ने तर्क दिया कि उन्हें तभी हटाया जा सकता है जब संबंधित सरकारी एजेंसियों को लगे कि वे हटाए जाने योग्य हैं।
प्रश्न है कि भारतीय कानूनों के उल्लंघन पर ऐसी कंपनियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की जा रही है? सीधे शब्दों में कहें तो विदेशी बिग टेक कंपनियां हर तरह से मनमानी पर उतारू हैं। इसका एक कारण यह भी है कि भारत में इन कंपनियों की जवाबदेही सिर्फ इंटरनेट बिचौलिये होने तक सीमित है।
विदेशी टेक कंपनियों द्वारा इकट्ठा किए जाने वाले करोड़ों भारतीयों के डाटा की सुरक्षा के लिए भी अभी तक देश में कोई सख्त कानून नहीं बना। डाटा सुरक्षा बिल की बात वर्षों से हो रही है, किंतु वह अटका हुआ है। वहीं टेक कंपनियां भारतीय यूजर्स का डाटा बाहर भेज रही हैं। इसका हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, इसकी किसी को परवाह ही नहीं है। दुनिया का कोई बड़ा देश ऐसा नहीं होने देता। वहां सरकारें डाटा सुरक्षा के नाम पर इन कंपनियों को अनुशासित रखती हैं। डाटा सुरक्षा कानूनों के जरिये पश्चिमी देश इन कंपनियों की कमजोर नस पर हाथ रखे रहते हैं और कंपनियों की डाटा सुरक्षा ही क्या, अन्य किसी मामले में भी सरकारी आदेशों के उल्लंघन की हिम्मत नहीं होती।
बीते दिनों आयरलैंड ने यूरोपीय डाटा एवं निजता नियमों के उल्लंघन मामले में इंस्टाग्राम पर करीब 3,100 करोड़ का हर्जाना लगाया। उसी इंस्टाग्राम पर भारत में हिंदू देवी-देवताओं को लेकर तमाम अपमानजनक पेज मिल जाएंगे। आयरिश सरकार वाट्सएप और फेसबुक पर 1.7 करोड़ यूरो का जुर्माना भी ठोक चुकी है। गत सप्ताह ही यूरोपीय संघ की अदालत ने गूगल की प्रवर्तक कंपनी अल्फाबेट पर 4.2 अरब डालर का जुर्माना लगाया। इससे पहले दक्षिण कोरिया में अल्फाबेट और फेसबुक पर संयुक्त रूप से 7.1 करोड़ डालर का हर्जाना लगाया गया था। अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया ने भी यूरोप की तर्ज पर ऐसा कानून बनाया है।
कुछ दिन पहले ही चीन ने भी निजी सुरक्षा संरक्षण कानून लागू कर दिया। उसके उल्लंघन पर कंपनी के वैश्विक राजस्व का पांच प्रतिशत तक जुर्माना लगाया जा सकता है और संबंधित कंपनी का व्यापारिक लाइसेंस भी रद किया जा सकता है। स्पष्ट है कि ऐसी सूरत में न तो कोई कंपनी इस चीनी कानून का उल्लंघन करने की हिम्मत करेगी और न ही चीनी सरकार के किसी और दिशानिर्देश की अनदेखी कर सकेगी।
दिग्गज तकनीकी कंपनियां भारत के मामले में किस तरह बेलगाम हैं, इसका पता हाल में हुए एशिया कप में पाकिस्तान से मैच हारने के बाद भारतीय गेंदबाद अर्शदीप सिंह के खिलाफ कुत्सित प्रचार से चलता है। इसके जरिये ऐसा आभास कराया गया कि भारतीय प्रशंसक अर्शदीप सिंह की सिख पहचान को खालिस्तान से जोड़कर उन्हें निशाना बना रहे हैं, लेकिन जब पड़ताल हुई तो ऐसा करने वाले मुख्य रूप से पाकिस्तानी निकले। इससे पहले मोहम्मद शमी के मामले में भी ऐसा ही किया गया था।
भाजपा से निष्कासित नेता नुपुर शर्मा के बयान के बाद पाकिस्तान और खाड़ी देशों से भी इंटरनेट मीडिया पर भारत विरोधी ट्रेंड चलाया गया था। इसमें स्वयंभू फैक्ट-चेकर मोहम्मद जुबैर का हाथ था। जुबैर और उनके जैसे लोगों ने ही यह प्रचारित किया कि कैसे हिंदू समुदाय एक सिख अर्शदीप के खिलाफ घृणास्पद अभियान चला रहा है। नुपुर शर्मा मामले ने भी यही बताया था कि खाड़ी देशों और पाकिस्तान से चलाए गए इंटरनेट मीडिया ट्रेंड स्वतःस्फूर्त नहीं, बल्कि एक साजिश का हिस्सा थे।
स्पष्ट है कि भारत विरोधी ये तत्व किसी भी बेसिर-पैर के मुद्दे को हवा देकर देश को अस्थिर करने की कोशिश करते रहेंगे और उनसे लड़ने में पारंपरिक राजनीतिक एवं प्रशासनिक तरीके कारगर नहीं होंगे। उनसे निपटने के लिए भारत को भी वालंटियर इंटरनेट मीडिया तंत्र खड़ा करना होगा, जो पाकिस्तान जैसे देशों में हो रही उथल-पुथल का लाभ उठाकर उसके विरुद्ध जवाबी सूचना युद्ध छेड़ सके। ध्यान रहे कि अर्शदीप मामले में पाकिस्तानी साजिश को किसी सरकारी एजेंसी ने नहीं, अपितु सजग इंटरनेट मीडिया यूजर्स ने बेनकाब किया। इसके बाद ही सरकार ने विकिपीडिया के अधिकारियों को तलब कर अर्शदीप से जुड़ी गलत जानकारी हटाने को कहा।
चूंकि मामला अंतरराष्ट्रीय बन गया था तो इतनी कार्रवाई हुई, लेकिन आंतरिक मोर्चे पर भी भारत की सुरक्षा एवं स्थिरता के लिए ऐसे तमाम खतरे पैदा किए जा रहे हैं, जिन्हें लेकर या तो सरकारें राजनीतिक कारणों से उदासीन रहती हैं या फिर लापरवाही के चलते अनभिज्ञ। जैसे ज्ञानवापी परिसर में हिंदू पक्ष द्वारा आदि विश्वेश्वर शिवलिंग मिलने का दावा किया गया तो इंटरनेट मीडिया पर शिवलिंग से जुड़ीं ऐसी तमाम पोस्ट की गईं, जो बहुत अपमानजनक थीं। इक्का-दुक्का मामलों को छोड़कर किसी पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई। अर्शदीप प्रकरण में विकिपीडिया ने भले ही आपत्तिजनक सामग्री हटा दी, परंतु ऐसे मामलों में बिग टेक कंपनियां अमूमन सरकारी आदेशों और भारतीय कानूनों का मखौल ही उड़ाती हैं।
Rani Sahu
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