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भारतीय विदेश नीति की नाकामियों की शृंखला हाल के वर्षों में लंबी होती गई है। अब ये ऐसी हो गई है
भारतीय विदेश नीति की नाकामियों की शृंखला हाल के वर्षों में लंबी होती गई है। अब ये ऐसी हो गई है कि उसकी देश में चर्चा भी नहीं होती। वरना, रूस अगर पाकिस्तान का करीबी बनने लगे, तो उससे भारतीय विदेश नीति के कर्ताधर्तां को चिंता में डूब जाना चाहिए था। विदेश नीति और कूटनीति का एक अहम मकसद यही होता है कि अपने सबसे बड़े शत्रु को दुनिया में अलग-थलग करने की कोशिश की जाए। लेकिन हाल के वर्षों में हुआ यह है कि पाकिस्तान को नए-नए दोस्त मिलते गए हैँ। बहरहाल, रूस का उसका दोस्त बनना इसलिए ज्यादा अहम है, क्योंकि रूस भारत का मित्र देश रहा है। लेकिन हाल की घटनाओं से साफ है कि वह पाकिस्तान में अपनी पैठ बढ़ाने की रणनीति पर चल रहा है। उसने अब 2.5 अरब डॉलर के प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के निर्माण की योजना को फिर से जिंदा कर दिया है। लेकिन बात यहीं तक नहीं है।
बल्कि ज्यादा जानकारों ने इसे रूस के बड़ी रणनीति का हिस्सा माना है। गौरतलब है कि हाल के वर्षों में रूस ने पाकिस्तान के साथ सुरक्षा में सहयोग का समझौता किया है। उसने अपने हेलीकॉप्टर पाकिस्तान को बेचे हैं। दोनों देशों के बीच साझा सैनिक अभ्यास हुए हैँ। अब जबकि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज वापस जा रही है, दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लगातार संपर्क में हैं। रूस ने अफगानिस्तान पर शांति वार्ताएं आयोजित की हैं, जिनमें पाकिस्तान को भी शामिल किया गया है। रूस अफगानिस्तान में अपनी भूमिका बढ़ाना चाहता है। इसमें तालिबान से अपने निकट रिश्तों के कारण पाकिस्तान एक उपयोगी पार्टनर नजर आया है। साथ ही रूस चीन के करीब जा रहा है, जिसका पाकिस्तान पुराना सहयोगी है। लेकिन दूसरी हकीकत यह है कि भारत के साथ उसके पुराने संबंधों में अब वो गरमाहट नहीं रही। इसका लाभ पाकिस्तान को मिल रहा है। हाल में गैस पाइपलाइन बनाने का जो करार हुआ, उसे तमाम विश्लेषकों ने पाकिस्तान के लिए बहुत सकारात्मक घटना माना है। पाकिस्तान ऊर्जा की कमी की समस्या से जूझता रहा है। अब तक पाकिस्तान प्राकृतिक गैस के लिए अपने घरेलू स्रोतों पर ही निर्भर था। बढ़ती मांग के मुताबिक गैस का उत्पादन बढ़ाने में वह नाकाम रहा है। अब रूस से सीधे वहां गैस पहुंचेगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे संबंध रणनीतिक मामलों में रिश्तों को भी गहराई देते हैँ।
Triveni
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