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भारत के नजरिए से यह कहा जा सकता है कि जिस समय अमेरिका से टकराव की पृष्ठभूमि में चीन और रूस की धुरी बनने के स्पष्ट संकेत हैं
अब इससे इस धारणा का क्या होगा कि भारत ने अपने रणनीतिक उद्देश्यों को अमेरिका के साथ जोड़ लिया है? अगर भारत के रणनीतिकारों में दूरदृष्टि हो, तो वे ताजा बिंदु से एक बेहतर विदेश नीति विकसित कर सकते हैँ। वरना, भारतीय विदेश नीति को लेकर भ्रम और गहरा जाएगा, जो देश के हित में नहीं होगा।
ये बात ध्यान खींचने वाली है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से अपनी बहुचर्चित ऑनलाइन शिखर वार्ता से एक दिन पहले भारत आए। यहां उन्होंने यह संदेश देने में कोई कोताही नहीं बरती कि भारत रूस का पारंपरिक मित्र है और इस दोस्ती में आज भी उतनी ही गर्मजोशी है। भारत के साथ उन्होंने पुराने रक्षा सौदों को दोहराया और कई नए समझौते किए। यहां गौरतलब यह है कि रूस से कोई देश हथियार खरीदे, यह अमेरिका के लिए बेहद संवेदनशील मुद्दा है। टर्की समेत रूसी हथियार खरीदने कई देशों पर वह प्रतिबंध लगा चुका है। इस बात के भी साफ संकेत हैं कि रूस के मामले में भारत का रुख उसे पसंद नहीं है। तो यह प्रश्न उठता है कि पुतिन की यात्रा से भारत और रूस में किसका रणनीतिक मकसद ज्यादा सधा?
भारत के नजरिए से यह कहा जा सकता है कि जिस समय अमेरिका से टकराव की पृष्ठभूमि में चीन और रूस की धुरी बनने के स्पष्ट संकेत हैं, उस समय भारत के मामले में रूस चीनी रुख का समर्थन ना करे, इसे सुनिश्चित करने के लिहाज से पुतिन की यात्रा उपयोगी रही। जबकि मास्को के नजरिए से देखें, तो यह कहा जा सकता है कि जिस समय भारत चीन को घेरन की अमेरिकी रणनीति चौगुट (क्वैड) का हिस्सा बन गया है, वैसे में अमेरिकी धुरी पर भारत की स्थिति को लेकर कुछ भ्रम पैदा करने में रूस सफल रहा है। हैरतअंगेज यह है कि चीनी विश्लेषकों ने पुतिन की यात्रा और उस दौरान हुए रक्षा सौदों पर नाराजगी नहीं जताई। बल्कि उनकी टिप्पणियों में ऐसे छिपे संतोष का भाव रहा कि इस दौरान नई दिल्ली में जो बातें कही गईं, उससे भारत के अमेरिकी खेमे का मजबूत खंभा होने की धारणा कमजोर हुई है।
ये बात भारतीय विश्लेषकों ने भी कही है कि पुतिन की यात्रा और रूस के साथ 2+2 वार्ता से भारत के अपनी कूटनीतिक स्वायत्तता को जताया है। मगर असल सवाल यह है कि इससे इस धारणा का क्या होगा कि भारत ने अपने रणनीतिक उद्देश्यों को अमेरिका के साथ जोड़ लिया है? कहा जा सकता है कि अगर भारत के रणनीतिकारों में दूरदृष्टि हो, तो वे ताजा बिंदु से एक बेहतर विदेश नीति विकसित कर सकते हैँ। वरना, भारतीय विदेश नीति को लेकर भ्रम और गहरा जाएगा, जो देश के हित में नहीं होगा।
नया इण्डिया
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