सम्पादकीय

मजबूरी में पलायन

Subhi
7 March 2022 5:27 AM GMT
मजबूरी में पलायन
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यूक्रेन पर हुए आक्रमण ने एक बार फिर भारत में चिकित्सा शिक्षा की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान दिलाया है। चिकित्सा क्षेत्र में उपलब्ध वास्तविक सीटों और आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या के बीच भारी अंतर को मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया द्वारा 2021 में जारी आंकड़ों से समझा जा सकता है।

Written by जनसत्ता: यूक्रेन पर हुए आक्रमण ने एक बार फिर भारत में चिकित्सा शिक्षा की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान दिलाया है। चिकित्सा क्षेत्र में उपलब्ध वास्तविक सीटों और आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या के बीच भारी अंतर को मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया द्वारा 2021 में जारी आंकड़ों से समझा जा सकता है। उसमें कहा गया है कि 2021 में उपलब्ध नब्बे हजार सीटों के लिए सोलह लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था।

भारत में कुल 586 मेडिकल कालेजों में सरकारी 286 और निजी 276 हैं। चूंकि इच्छुक उम्मीदवारों के लिए सरकारी मेडिकल कालेजों और निजी संस्थानों में प्रवेश लेना मुश्किल होता है, इसलिए वे बहुत अधिक शुल्क लेते हैं, जो कि गरीब, मध्यवर्ग और समाज के वंचित वर्ग के लोग नहीं भर सकते। ऐसे में यूक्रेन, चीन और रूस में मेडिकल की पढ़ाई एक व्यावहारिक विकल्प है। यह न केवल भारत को उसकी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा से वंचित करता है, बल्कि कुशल श्रम शक्ति को भी बाहर निकाल देता है।

भारत में निजी संस्थानों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जहां यूरोपीय समकक्षों की तुलना में चिकित्सा शिक्षा कई गुना महंगी है। यही मुख्य कारण है कि कई छात्र उन देशों में चले जाते हैं, जो उन्हें सस्ती दरों पर सुविधाएं प्रदान करते हैं। निजी और सार्वजनिक संस्थानों में कमियों को दूर करने की सख्त जरूरत है। चिकित्सा अध्ययन को निजी संस्थानों के चंगुल से मुक्त किया जाना चाहिए, जिनका एकमात्र उद्देश्य अपना खजाना भरना है। इसके लिए बुनियादी ढांचे में निवेश की आवश्यकता है, जो बेहद कम है। भारत में चिकित्सा शिक्षा को और अधिक सुलभ बनाया जाना चाहिए ताकि न केवल समाज का निचला तबका इसका लाभ उठा सके, बल्कि अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे सके।

आज इलेक्ट्रानिक मीडिया के युग में जहां खबरों और अन्य जानकारियों के लिए हम टीवी तथा अन्य दूरसंचार माध्यमों पर निर्भर होते जा रहे हैं, वहीं हाल के घटनाक्रम रूस-यूक्रेन युद्ध में समाचार पत्रों के महत्त्व का फिर से एहसास हो गया है। सभी न्यूज चैनल चौबीस घंटे केवल रूस-यूक्रेन से जुड़ी खबरें दिखा रहे हैं, वहीं अपने देश से संबंधित कोई भी खबर हमें नहीं मिल पा रही है। देश की आर्थिक स्थिति, व्यापार और वाणिज्य, खेल समाचार तो बहुत पीछे छूट गए हैं।

राजनीतिक उठा-पटक के इस दौर में मिडिया की भागीदारी महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के एक समूह ने साक्षात्कार में बताया कि भारतीय डिजिटल मीडिया द्वारा की जा रही रिपोर्टिंग काफी डराने वाली है। स्थिति जरूर खराब है, लेकिन जैसा बताया जा रहा है वैसा बिल्कुल नहीं हैं। भारत सरकार के आग्रह पर रूस तथा यूक्रेन के पड़ोसी देश भारतीय छात्रों की मदद कर रहे हैं, ताकि वे यूक्रेन से सुरक्षित बाहर निकल सकें। हमें यह समझना होगा कि कहीं यह स्थिति इतनी गंभीर न हो जाए कि युद्ध के भय से लाखों लोग बेघर, बेसहारा और असहाय हो जाएं। आवश्यकता है कि संपूर्ण देश का मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे और रूस-यूक्रेन की स्थिति पर बिना किसी सत्यापन के खबरें प्रकाशित न करें।


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