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हर गुजरते दिन के साथ दुनिया में नई बीमारियों के फैलने और अगली महामारी के उभरने की आशंका बढ़ती जाती है
चंद्रकांत लहारिया,
हर गुजरते दिन के साथ दुनिया में नई बीमारियों के फैलने और अगली महामारी के उभरने की आशंका बढ़ती जाती है। ऐसा होने के पीछे कई कारण हैं। वनों की कटाई और जंगलों में बढ़ते इंसानी दखल के कारण नए-नए रोगाणु मानव के संपर्क में आने लगे हैं। रोगाणु वैश्विक गरमी (ग्लोबल वार्मिंग) और बढ़ते तापमान के कारण नई परिस्थितियों और जगहों में भी ढलने लगे हैं। नतीजतन, पिछले कुछ दशकों में कई नई बीमारियां उभरी हैं। साथ ही, हवाई यात्राओं के कारण 24 घंटे से भी कम समय में संक्रमण का प्रसार दुनिया के एक से दूसरे हिस्से में होने लगा है। इन सबमें शहरों में बढ़ती भीड़ और सघन बसावट भी कमजोरी साबित होती हैं।
लोगों की सेहत चरम मौसमी घटनाएं, भूमि क्षरण और सूखे के कारण होने वाले विस्थापन से भी प्रभावित हो रही है। न सिर्फ सागरों की गहराइयों में प्रदूषक और प्लास्टिक मिलने लगे हैं, बल्कि पर्वतों के ऊंचे शिखर भी इससे अछूते नहीं हैं। इन्होंने हमारी खाद्य शृंखला में सेंध लगा दी है। अत्यधिक प्रसंस्कृत उत्पाद और 'जंक' कहे जाने वाले खाद्य व पेय पदार्थ हमें मोटापे की सौगात दे रहे हैं, जिससे कैंसर और हृदयाघात जैसी बीमारियां बढ़ गई हैं। एंटीमाइक्रोबायल्स (एंटीबायोटिक्स और एंटीवायरल) के बेरोक-टोक उपयोग से पूर्व में प्रभावी रहे एंटीबायोटिक्स अब बेअसर साबित होने लगे हैं। इस रफ्तार से नए एंटीबायोटिक्स की खोज नहीं हो रही है।
इन तमाम पहलुओं का इंसान और धरती की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है। अनुमान है कि साल 2030 से 2050 के बीच जलवायु परिवर्तन के कारण कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और बेहिसाब गरमी से दुनिया भर में सालाना 2.5 लाख अतिरिक्त लोगों की अकाल मौत हो सकती है। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान और बाढ़ से डेंगू जैसी वेक्टर-जनित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। अभी दुनिया में हर दस में से नौ लोग दूषित हवा में सांस ले रहे हैं। करीब 24 फीसदी वैश्विक मौत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दूषित आबोहवा से होती है। वायु प्रदूषण तो फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग और मस्तिष्काघात के कारण हर मिनट में 13 लोगों की जान लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि दुनिया भर में हर साल लगभग 1.3 करोड़ लोग उन पर्यावरणीय कारकों से मर रहे हैं, जिनसे बचा जा सकता है।
अध्ययन बताते हैं कि विश्व भर में 3.6 अरब लोगों के पास सुरक्षित शौचालय नहीं है। अनुपचारित मानव मल पारिस्थितिक तंत्र और मानव स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है। दुनिया में करीब दो अरब लोगों को सुरक्षित पेयजल नहीं मिलता। दूषित पानी और गंदगी की वजह से हर साल लगभग आठ लाख लोग डायरिया से मर जाते हैं। इसी तरह, तंबाकू हर साल 80 लाख लोगों की जान लेता है। यह कैंसर, हृदय रोग, फेफड़़ों की बीमारियों का एक प्रमुख कारक है। हर साल 60 करोड़ पेड़ सिर्फ इसलिए काट दिए जाते हैं, ताकि 60 खरब सिगरेट बनाए जा सकें। जाहिर है, साफ हवा की राह में यह एक बड़ी रुकावट है। अगर सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को पर्यावरण-हितैषी बनाया जाए, तो हवा की गुणवत्ता सुधर सकती है। सीवेज, अवशिष्ट पदार्थ और जहरीले रसायनों को हमारी झीलों, नदियों और भूजल में प्रवेश करने से रोककर हम अपने जल स्रोतों की रक्षा कर सकते हैं।
ये सभी बिंदु बताते हैं कि मानव, पशु और स्वच्छ आबोहवा किस तरह परस्पर जुड़े हुए हैं। इसी के कारण पिछले दशक में 'एक स्वास्थ्य' की सोच उभरी है। इस अंतर्संबंध का सबसे बड़ा व ज्वलंत प्रमाण तो कोरोना महामारी है, जिसने पूरी दुनिया में उथल—पुथल मचा रखी है। यानी, हमें अपने परिवेश का हर हाल में ध्यान रखना ही होगा। इस लिहाज से देखें, तो विश्व स्वास्थ्य दिवस, 2022 की थीम 'हमारा ग्रह, हमारा स्वास्थ्य' समय के अनुकूल है। यह थीम इंसानों व धरती को सेहतमंद रखने और स्वस्थ समाज बनाने के लिए विशेष प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर जोर डालती है। मौजूदा कोरोना महामारी ने सतत स्वास्थ्य की जरूरत बताई है, इसलिए पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना अपनी व अगली पीढ़ियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध होना आज की बड़ी जरूरत है।
निश्चय ही, हम सब मिलकर इनमें से कई चुनौतियों से पार पा सकते हैं और अगली महामारी को आगे धकेल सकते हैं। इसके लिए हमें ऐसे प्रयास करने होंगे कि जंगलों और जानवरों से वायरस का फैलाव इंसानों में न हो। समझना होगा कि जब कृषि कार्य या अंधाधुंध विकास के नाम पर वनों की कटाई की जाती है, तो माइक्रोब्स आसानी से इंसानों के संपर्क में आ जाते हैं। सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि विकास के नाम पर प्रकृति का नुकसान न हो। सरकारों को खाना पकाने और रोशनी के लिए स्वच्छ ऊर्जा की व्यवस्था को प्राथमिकता देनी चाहिए। सुरक्षित और किफायती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली तैयार करने, पैदल चलने योग्य या साइकिल के अनुकूल फुटपाथ बनाने और वाहन उत्सर्जन रोकने के उच्च मापदंड अपनाने की भी जरूरत है। ऊर्जा-किफायती आवास व बिजली उत्पादन में निवेश करने, औद्योगिक व नगरीय कचरे के निपटान में सुधार लाने, पराली जलाने पर लगाम लगाने और कृषि वानिकी से जुड़ी गतिविधियों को सीमित करने की भी सख्त दरकार है।
इन कामों में समाज का हर व्यक्ति सहयोग दे सकता है। कार पूल को बढ़ावा देकर और हरसंभव सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करके हम ऐसा कर सकते हैं। हम चाहें, तो बिजली की खपत घटाकर, अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से परहेज करके, तंबाकू उत्पादन और इसका सेवन बंद करके, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करके व रीसाइकिल योग्य बैग का उपयोग करके भी स्वस्थ धरती बनाने में अपना योगदान दे सकते हैं। साफ है, विश्व स्वास्थ्य दिवस हमें महामारी से सफलतापूर्वक और हरित तरीके से उबरने का विशेष मौका दे रहा है। हमें स्वास्थ्य-उन्मुख समाज बनाने की दिशा में आज ही जुटना होगा, क्योंकि हर एक दिन की भी देरी से शायद बहुत देर न हो जाए।

Rani Sahu
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