सम्पादकीय

जो आज भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं, उनके लिए यही कहा जा सकता है कि कुछ दीये तूफान से लड़ रहे हैं

Rani Sahu
22 Sep 2021 4:05 PM GMT
जो आज भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं, उनके लिए यही कहा जा सकता है कि कुछ दीये तूफान से लड़ रहे हैं
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पत्रकारिता को गणतंत्र व्यवस्था का चौथा स्तंभ माना जाता है। पत्रकार का दायित्व है

जयप्रकाश चौकसे पत्रकारिता को गणतंत्र व्यवस्था का चौथा स्तंभ माना जाता है। पत्रकार का दायित्व है कि देश-दुनिया और आम आदमी से जुड़ी हर जानकारी और सत्य को वो अवाम तक पहुंचाए। जब कभी कहीं भी कुछ गलत घटित होता है, तो पत्रकार ही उसे अपनी कलम के अंकुश से सही मार्ग पर लेकर आए। इंदौर के पत्रकार राजेंद्र माथुर इसी शैली के पत्रकार थे वे इतने लोकप्रिय रहे कि सभी उनका आदर करते थे और उनके लेखों के अभिप्राय को सम्मान देते थे ।

उनकी कलम के हर शब्द का सम्मान और उनके द्वारा लिखे गए सामाजिक मुद्दों को दुरुस्त करने का प्रयास व्यवस्था उन दिनों करती थी। कालांतर में राजेंद्र माथुर दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अखबार के प्रमुख संपादक बने और विष्णु खरे सह-संपादक नियुक्त किए गए। यही नहीं उस समय की व्यवस्था में राजेंद्र माथुर को सलाह-मशविरे के लिए आमंत्रित भी किया जाता था। अपने प्रखर आलोचक रहे पत्रकार को सलाह-मशविरे के लिए आमंत्रित करना, उन दिनों की राजनीति की सहिष्णुता को अभिव्यक्त करता है।
ज्ञातव्य है कि अमेरिका में 'वॉटरगेट स्कैंडल का पर्दाफाश एक पत्रकार ने ही किया था। एक पत्रकार की रिपोर्ट से प्रेरित फिल्मकार ओलिवर स्टोन ने फिल्म 'जे.एफ.के' में जॉन एफ कैनेडी की हत्या का षड्यंत्र रचने वाले नेता पर फिल्म में साजिश का आरोप लगाया और आश्चर्य की बात है कि उस शक्तिशाली नेता ने मानहानि का मुकदमा भी दायर नहीं किया। अत: सत्य में इतनी ताकत होती है। गोया कि पत्रकारों के अनुभव से प्रेरित फिल्में बहुत कम संख्या में बनी हैं। मधुर भंडारकर की कोंकणा सेन शर्मा अभिनीत 'पेज 3' उम्दा फिल्म थी।
शशि कपूर अभिनीत 'न्यू दिल्ली टाइम्स' भी यादगार फिल्म साबित हुई। आश्चर्य है कि प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, पटकथा राइटर और उर्दू लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास की बायोपिक क्यों नहीं बनी? गौरतलब है कि भारतीय फिल्म एवं टेलिविजन निर्देशक व एडिटर शिवम नायर लंबे समय से राज कपूर पर डॉक्यूड्रामा बनाने की तैयारी कर रहे हैं और उनके सीनियर साथी स्क्रीन राइटर, प्रोड्यूसर नीरज पांडे, फिल्म गीतकार शैलेंद्र पर बायोपिक बनाने का विचार कर रहे हैं।
संभव है कि शिवम नायर और नीरज संयुक्त प्रयास कर सकते हैं और उसमें ख्वाजा अहमद अब्बास के काम और विचारों को भी शामिल किया जा सकता है। अब्बास की फिल्म 'चार दिन चार राहें' में दो विविध वर्ग के प्रेमियों की प्रेम कथा प्रस्तुत की गई है। बहरहाल, जातिवाद का सांप कभी मरता नहीं है और आज भी इसी संकीर्णता के चलते हिंसा हो रही है। दुष्कर्म की घटनाएं प्राय: रोज सामने आती हैं।
जरूरत है कि पत्रारिता के क्षेत्र में काम करने वाले साहस के साथ जुटे रहें और सत्य की राह में संघर्ष करते रहें। यह लोकप्रिय बात है कि खबरें जल्दी पुरानी हो जाती हैं और उनकी जगह नई खबरें अगले ही पल उनकी जगह ले लेती हैं। किसी दौर में महिलाएं बच्चों को खेलने के लिए कागजों से अखबार के टुकड़ों की लुगदी से गुड्डे-गुड़ियां बनाती थीं। लेकिन अब तो बच्चों के खेलने के खिलौने, बाजार में हथियार नुमा बनाए जाते हैं।
इसी तरह एके-47 भी प्लास्टिक से बनाई जाती है। कई लेखक और विचारक आज भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं और अपने पाठकों तक सत्य पहुंचाने का उनका काम बदस्तूर जारी है। लेखक कौशिक बसु की किताब 'पॉलिसीमेकर्स जर्नल: फ्रॉम न्यू देल्ही टू वाशिंगटन, डीसी' पत्रकारिता का प्रशिक्षण केंद्र है।
इस फील्ड के नवयुवकों के पास पाठ्यक्रम में उत्कृष्ट विचारकों और लेखकों की किताबें शामिल होनी चाहिए। गोया कि किसी भी विधा को सीखने के लिए निष्ठा प्रतिभा के साथ तर्क सम्मत विचार शैली का होना आवश्यक है। शिक्षकों का अभाव आज हर क्षेत्र में नजर आता है। धन अब साधन नहीं साध्य हो चुका है। उन सबको नमस्कार जो आज भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं। उनके लिए यही कहा जा सकता है कि कुछ दीये तूफान से लड़ रहे हैं।


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