सम्पादकीय

पर्यावरण की खातिर

Gulabi
10 Nov 2020 1:02 PM GMT
पर्यावरण की खातिर
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राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक के नकारात्मक प्रदर्शन से सामने आया कि वायुमंडल में जहरीली गैसें बनी हुई हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों को संज्ञान में लेते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने डेढ़ दर्जन राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाने के जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उन पर राज्य सरकारों को कड़ाई से पालन करवाना चाहिए। हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता सूचकांक के नकारात्मक प्रदर्शन से सामने आया कि वायुमंडल में जहरीली गैसें बनी हुई हैं।

बरसात नहीं होने के कारण भी वातावरण विषैले विषाणुओं से भरा हुआ है, जो मनुष्यों, जीव-जंतुओं के शरीर में पहुंच कर अपना दुष्प्रभाव छोड़ रहे हैं। कुछ दिनों बाद दीपावली के त्योहार के मद्देनजर निवासियों को बुद्धिमता, जागरूकता का परिचय देते हुए स्वच्छ वातावरण, स्वस्थ वतन, पर्यावरण संरक्षण पर जोर देना चाहिए। बिना पटाखों के दीपोत्सव का त्योहार बेहतरीन तरीके से अन्य जगह धन खर्च करके मनाया जा सकता है।

वायु प्रदूषण से होने वाली हानि से प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य प्रभावित होता है। प्रदूषण को घटाना पर्यावरण को बचाना अच्छे तरीके से संभव है। अगर इस बार के त्योहारों में पटाखों के क्रय विक्रय और प्रयोग पर यथासंभव प्रतिबंध बनाए रखें तो यह समाज और जीव-जंतुओं के हित में होगा।

'युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद, हरियाणा

खतरे के खाद्य

चौक-चौराहों पर खाने-पीने की दुकानों में अक्सर चीजें अखबार के कागज पर परोसी जाती हैं। अखबार की स्याही शरीर में जाने से कई गंभीर रोग जन्म ले सकते हैं। इस कारण लोग बवासीर, पीलिया, दस्त जैसे रोगों के शिकार हो सकते हैं। पिछले दिनों भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि दुकानदारों को खाद्य सामग्री छपे अथवा अखबारी कागजों में नहीं परोसनी चाहिए।

इसकी रोकथाम के लिए सख्त नियम बनाए जाएंगे तथा उनका सख्ती से पालन भी किया जाएगा। अखबारों की छपाई में प्रयोग होने वाली स्याही में कई घातक रसायन मिले होते हैं। जिसके खाद्य उपयोग से गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। भोजन के लिए दूसरे विकल्पों के अलावा सखुआ पत्ता को फिर से प्रचलन में लाया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे पत्तों पर खाना खाने से कोई बीमारी नहीं होती है।

'भूपेंद्र सिंह रंगा, पानीपत, हरियाणा

बदलाव के बाद

हाल ही में संपन्न हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से दुनिया भर में एक चीज तो साफ हो गई है कि समाज में खत्म होती एकता, समानता और भाईचारा के लिए अभी थोड़ी जगह बाकी है । मौजूदा दौर में विश्व भर मे कुंठित राजनीति चल रही है, जिससे किसी को फायदा नहीं मिलने वाला है। चूंकि अमेरिका एक शक्तिशाली देश है और समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था अमेरिका की सड़क से होकर गुजरती है, इसलिए सबको उससे उम्मीद लगाना स्वाभाविक ही है।

मौजूदा संकट के दौर में अमेरिका में एक ऐसी सरकार की जरूरत है जो दुनिया में फिर से खुशहाली लौटाए। दुनिया में बढ़ती अमानवता को रोके और विश्व में नया जोश भर दे। यूरोप, एशिया और खाड़ी देशों में बढ़ता तनाव चाहे राजनीतिक या आर्थिक या अमानवीय घटना और पर्यावरण संबंधी हो, पर अब सबमें विराम लगाने का वक्त आ गया है।

पिछली सरकार पूरी तरह दिशाहीन रही और दुर्बल राजनीति का प्रयोग कर विश्व को भटके हुए राही जैसा अनुभव करा दिया है। जॉन बाइडेन सभी बारीकियों से वाकिफ पहले से ही हैं। उम्मीद है वे अमेरिका ही नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लिए चौकीदार का किरदार निभाएंगे।

'सुनील चिलवाल, हल्द्वानी, उत्तराखंड

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