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देश भर के विधायी सदनों में बैठे कुछ माननीयों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला नैसर्गिक न्याय के अनुरूप तो है ही, उम्मीद है, राजनीति और अपराध के गठजोड़ की चूलें भी इससे हिलेंगी। आला अदालत ने साफ कर दिया है कि हाईकोर्ट की इजाजत के बिना राज्य सरकारें सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमे वापस नहीं ले सकतीं। प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने न्याय-मित्र विजय हंसारिया की रिपोर्ट के आलोक में यह फैसला सुनाया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ राज्यों की सरकारें अपने दल के सांसदों-विधायकों के खिलाफ कायम ऐसे मामले वापस लेने की कोशिश में जुटी हैं। इस मामले में शीर्ष अदालत की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल से कहा है कि वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के ऐसे तमाम मामले फौरन संबंधित हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाएं।