सम्पादकीय

शांति और विकास के लिए

Triveni
25 Jun 2021 2:11 AM GMT
शांति और विकास के लिए
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संवाद एक सतत प्रक्रिया है, इसका होना और जारी रहना ही अपने आप में सफलता है।

संवाद एक सतत प्रक्रिया है, इसका होना और जारी रहना ही अपने आप में सफलता है। जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास की पहल को आगे बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में हुई बातचीत स्वागतयोग्य है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद खास तौर पर घाटी में जो तल्खी दिखी, उसका समाधान संवाद से ही संभव है। घाटी के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य दिग्गज मंत्रियों, नेताओं की बातचीत पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाह है। बहुत दिनों से यह मांग उठ रही थी कि केंद्र सरकार को कश्मीरी नेताओं से बातचीत करनी चाहिए। इस मांग के प्रति केंद्र ने उदारता दिखाई है और प्रधानमंत्री की इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के आठ राजनीतिक दलों के करीब 14 नेता शामिल हुए हैं। इनमें से ज्यादातर नेता वे हैं, जिन्हें अनुच्छेद 370 हटाए जाने के दौरान नजरबंद कर दिया गया था। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाए जाने के बाद निस्संदेह यह एक बड़ी सकारात्मक राष्ट्रीय घटना है।

कश्मीरी नेताओं के साथ पीएम मोदी की यह बैठक इसलिए भी अहम है, क्योंकि इससे घाटी का राजनीतिक भविष्य तय होगा। जरूरी नहीं है कि एक ही बैठक में अमन-चैन वाले जम्मू-कश्मीर का नया रोडमैप तय हो जाए, बैठकों का दौर जारी रहना चाहिए। इसमें कोई शक की बात ही नहीं कि कश्मीरी नेताओं को नई दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार पर भरोसा है और तभी यह महत्वपूर्ण बैठक संपन्न हो रही है। अब यह केंद्र सरकार के जिम्मे है कि वह घाटी के दिग्गज नेताओं को कैसे विकास और लोकतंत्र की प्रक्रिया में व्यस्त रखती है। यह बातचीत प्रमाण है, नजरबंदी और आतंकवाद के भयानक दौर से हम निकल आए हैं। जम्मू-कश्मीर की स्थिति को बदले करीब दो साल हो चुके हैं और इस बीच कोई ऐसी बड़ी नकारात्मक घटना नहीं हुई है, जिससे लगे कि देश का यह अटूट क्षेत्र गलत दिशा में जा रहा है। कश्मीर के नेता भी अपने देश को लेकर चिंतित हैं। अलगाववाद की राह पर चलने और लोकतंत्र की धारा से अलग रहने पर उन्हें भी नुकसान है, ऐसे में, सब चाहेंगे कि घाटी में राजनीतिक प्रक्रिया फिर शुरू हो। यह बहुत अच्छी बात है कि बैठक में पहले केंद्र सरकार ने एक प्रस्तुति के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर में कैसे विकास कार्य चल रहे हैं। केंद्र सरकार अगर विकास की पहल से भी घाटी के नेताओं को जोड़ सके, तो अच्छा होगा। राजनीतिक स्तर पर फिर से राज्य का दर्जा पाने के लिए तो कश्मीर के नेताओं को केंद्र सरकार के प्रति गंभीरता का प्रदर्शन करना होगा। केंद्र सरकार ने पहले भी संकेत दिए हैं कि उचित समय पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटा दिया जाएगा। अगर राज्य का दर्जा लौटाने के आग्रह के साथ घाटी के नेता नई दिल्ली आए हैं, तो उनका स्वागत है, लेकिन अगर उनकी मंशा पड़ोसी मुल्क को भी वार्ता में शामिल करने पर ज्यादा होगी, तो इससे कोई फायदा नहीं होगा। ध्यान रखना होगा कि संवाद की राह काफी समय बाद प्रशस्त हुई है, अत: इसे अगंभीर, हल्की या किसी उग्र टिप्पणी से आहत नहीं होने देना चाहिए। आने वाले समय में ऐसी बैठकों का विस्तार हो, ज्यादा से ज्यादा संबंधित दलों-पक्षों को साथ लिया जाए और शांति-विकास की पहल हो, इसी में देशहित है।


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