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- मेडिकल टूरिज्म के लिए

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चुनावी संभावनाएं भी कमाल की होती हैं। जैसे ही इन्हें तराशा जाता है, कई बीज अंकुरित हो जाते हैं। चुनाव आते-आते सौहार्द के फूल खिलते हैं और रिश्तों की खुशबू बिखर जाती है। यही सब आजकल हिमाचल की खुशनसीबी है और इसी पर रश्क होता है कि परमात्मा को ढूंढते रहे लोग नेताओं को ही खुदा कबूल कर सकते हैं। चांदनी में नहाए सपने और लाभार्थियों की चांदी में मुस्कराता चुनाव। वाकई हिमाचल सोने की खान है और चुनाव के सीजन में यह चमकती है। जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिलासपुर में एम्स का सोना हमें सौंपते हैं, तो मालूम होता है कि यह प्रदेश तो मेडिकल टूरिज्म के काबिल हो गया वरना अब तक एक बड़े खाके पर काम शुरू हो जाता। पिछली धूमल सरकार में एक मंत्री थे डा. राजीव बिंदल, जिन्होंने आयुर्वेद विभाग को पंचकर्म के पर्यटन का नूर सौंप दिया, लेकिन आज ये सारे शिलालेख कहीं छिप गए हैं। इसी प्रदेश में पपरोला नामक स्थान पर वर्षों से एक आयुर्वेद कालेज चल रहा है और जिसकी राष्ट्रीय रैंकिंग भी प्रमुख दस संस्थानों में आती है, लेकिन हाय! री तकदीर कि इस संस्थान को अपनी सूरत सुधारने के लिए राजनीति के चंद सिक्के भी नहीं मिले। नतीजतन इसकी क्षमता में लिखा गया 'हैल्थ पर्यटन', आज भी सन्नाटे में है। पांच सालों में सरकार के पहिए तो खूब घूमे।
कई नए संस्थान खुले, मेडिकल कालेजों में घोषणा पट्ट लगे और मेडिकल यूनिवर्सिटी भी खुल गई, लेकिन आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज की बिखरती छत को आवश्यक राशि भी न मिली ताकि इसके भीतर रचा-बसा सेवा भाव बचा और बसा रह सके। पूर्व में एक और मंत्री थे जो भाजपा से छिटक कर 'आप' में अपना राजनीतिक पर्यटन संवार रहे हैं, लेकिन यही डा. राजन सुशांत प्रदेश में जड़ी-बूटियों के साथ हर्बल खेती की शुरुआत करने को जाने जाते हैं, तो बाद में जगत प्रकाश नड्डा ने भी मंत्री रहते हर घर की खेती के साथ औषधीय पौधे उगा दिए, लेकिन आज इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। शायद जब प्रधानमंत्री हिमाचल में मेडिकल टूरिज्म की संभावनाएं देख रहे थे, तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डा. सहजल के कान बज रहे होंगे। क्या वह बता सकते हैं कि उनके विभाग ने मेडिकल टूरिज्म का खाका कितना आगे बढ़ाया है। क्या वह बता सकते हैं कि हिमाचल के औषधीय पौधे और आयुर्वेद विभाग की अमानत में पंचकर्म कितना आगे बढ़ चुका है। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल अगर मेडिकल टूरिज्म में आगे बढऩे की ठान ले, तो यहां कई तरह की पारंपरिक पद्धतियां, आयुर्वेदिक व एलोपैथिक चिकित्सा के साथ-साथ प्राकृतिक व आध्यात्मिक अभ्यास से कई रोगों का निदान व मानसिक शांति का मार्ग प्रशस्त होगा। हिमाचल में चिकित्सा का ढांचा काफी सशक्त है, लेकिन उसे पर्यटन के काबिल बनाने का एहसास पैदा करना होगा यानी यहां प्रश्न मात्र गुणवत्ता बढ़ाने का ही नहीं, बल्कि चिकित्सकीय संतुष्टि का कहीं अधिक है।
मेडिकल टूरिज्म की योग्यता में यह संभव नहीं कि हर अस्पताल या हर मेडिकल कालेज सफल हो, बल्कि इसके लिए कुछ परिसर, वचनबद्ध टीम, अनुशासित पद्धति, जवाबदेह माहौल व मरीजों की देखभाल का उच्च स्वीकार्य फलक स्थापित करना होगा। पहले ही कुछ तिब्बती डाक्टर मकलोडगंज में इस तरह के प्रयोग कर रहे हैं और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कैंसर मरीज व उनके सहयोगी यहां आ रहे हैं। ऐसे में आयुर्वेद मेडिकल कालेज के साथ पर्यटक स्थलों के आयुर्वेदिक अस्पतालों को सशक्त करना होगा। मेडिकल टूरिज्म को परिभाषित करते हुए विशेष पैकेज तैयार करने होंगे जिनके तहत रोग विशेष के लिए कुछ अस्पताल व मेडिकल कालेज चिन्हित करने होंगे। फिलहाल मेडिकल कालेजों व प्रमुख अस्पतालों के प्राइवेट वार्ड इस स्थिति में नहीं हैं कि पर्यटक दर्जे का कोई मरीज विश्राम कर सके। इसके अलावा पर्यटकों के लिहाज से एक विशेष कार्य संस्कृति का प्रसार चिकित्सा केंद्रों में करना होगा, जहां यह गारंटी भी होनी चाहिए कि ऐसी डाक्टरों व अन्य कर्मियों की टीमों के स्थानांतरण यूं ही नहीं होंगे। मेडिकल टूरिज्म की दृष्टि से निजी निवेश के तहत, पर्यटक केंद्रों व धार्मिक स्थलों के करीब नए निजी अस्पताल शुरू किए जा सकते हैं।
By: divyahimachal

Rani Sahu
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