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- हिमाचल निर्माण के लिए
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हिमाचल में कमोबेश हर सरकार चुनावी साल में घोषणाओं के पिटारे खोलते हुए सियासत की पपडि़यां हटाती रही है और इसी परिदृश्य में कई ढकोसले भी खड़े किए जाते रहे हैं। बिजलियां गिराने के आलोक में हर मुख्यमंत्री ने बड़े से बड़ा करने के बजाय बड़ा दिखने की कोशिश की है। हिमाचल निर्माण के बजाय सत्ता की राजनीति का निर्माण इतना आगे निकल गया है कि विकास की निरंतरता क्षेत्रवाद की संकीर्णता में उलझ रही है और हर बार सत्ता का प्रस्थान व आगमन, फर्जी ढोल ढमाकों के बीच प्रदेश का भविष्य नहीं देख पा रहा है। बहरहाल सत्ता की महत्त्वाकांक्षा में पुनः नए जिलों के गठन के द्वार पर हल्की सी दस्तक क्या हुई, सियासत को शक है कि कारवां लूटा जा रहा है। चिंगारी कांगड़ा के विभाजन को लेकर फिर पैदा की जा रही है और इसी के परिप्रेक्ष्य में पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा का बयान सियासत के इस तीर की तरफ इशारा करता है। इससे पहले भी कांगड़ा को तोड़ने की शक्तियां सक्रिय रही हैं, लेकिन विरोध के चलते ऐसा नहीं हुआ। स्वयं शांता कुमार इस तरह के आइडिया के खिलाफ रहे हैं, जबकि प्रेम कुमार धूमल को काफी आगे बढ़कर भी कदम पीछे खींचने पड़े थे। हिमाचल की तात्कालिक राजनीति में नेताओं का वजन इतना हल्का हो चुका है कि वे हर पक्ष को टुकड़ों में विभक्त करके लाभार्थी बनना चाहते हैं।
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