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सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही शायद प्रकृति ने सौगात में यह सवाल दिया है
हरिवंश
सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही शायद प्रकृति ने सौगात में यह सवाल दिया है इंसान को कि बराबरी एक सपना है या साकार होने वाला। विश्व-श्रेष्ठ फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी की नई चर्चित किताब 'ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ इक्विलिटी' (समता का संक्षिप्त इतिहास) में इसी यक्षप्रश्न का उत्तर है। तथ्यों, विश्लेषण व संदर्भों के साथ।
अर्थशास्त्रियों में 'राॅक स्टार' विशेषण पाने वाले पिकेटी वर्ष 2013 में ही विश्वविख्यात हो गए थे, संसार में सर्वाधिक बिकने वाली अपनी पुस्तक 'कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी' (21वीं सदी में पूंजी) से। आर्थिक विकास दर पर पचास वर्षीय पिकेटी के एक सूत्र ने दुनिया में नई बहस को प्रेरित किया था। उन्होंने बताया था कि पूंजी पर आय आर्थिक विकास की रफ्तार से अधिक होती है।
इस कारण पैसे वाले तेजी से समृद्ध होते हैं, शेष पीछे रह जाते हैं। इसी से सामाजिक विषमता बढ़ती है। वर्ष 2001 में वे 'टाप इनकम्स ओवर द ट्वेंटीएथ सेंचुरी' लिख चुके थे। 2019 में पुनः उनकी किताब 'कैपिटल एंड आइडियोलाजी' विश्वव्यापी चर्चा का केंद्र बनी। ये तीनों किताबें औसतन हजार पन्नों से अधिक की थीं।
पूंजी, विचारधारा, समता जैसे गम्भीर विषयों पर उनके शोध, लेखन और पुस्तकों ने सरकारों नीतियों पर भी गहरा असर डाला। अपनी नई पुस्तक 'ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ इक्विलिटी' का आरंभ वे अपने पाठक के एक सवाल से करते हैं। 'आप (यानी पिकेटी) जो कुछ लिखते हैं, बहुत रोचक है, पर क्या आप इसे संक्षिप्त नहीं कर सकते, ताकि आपके शोध को अपने मित्रों और परिवार से साझा कर सकूं?'
पिकेटी बताते हैं यह किताब आंशिक रूप से वर्षों से पूछे जा रहे इस सवाल का जवाब भी है। विगत 250 वर्षों में संसार में संपदा के केंद्रीकरण, पूंजी और विचारधारा और कर लगाने की पद्धति के विशद् अध्ययन के बाद पुस्तक के निचोड़ में वे कहते हैं कि 'मैं अपेक्षाकृत आशावान हूं।' उनकी बातों का सार है कि उतार-चढ़ाव की गति या आंदोलनों के साथ संसार की यह दीर्घकालीन यात्रा अधिक समता की ओर है।
संभव है किसी खास दशक में कहीं विपरीत चीजें हों, पर समाज उसे दीर्घकाल में सही कर देता है। पिछले कुछ दशकों में बढ़ी विषमता को लेकर संसार में चिंता व निराशा रही है। उस दौर में पिकेटी का यह निष्कर्ष आश्वस्तकारी है। पिकेटी की दृष्टि में ऐतिहासिक साक्ष्यों की प्रबल धारा हमें आशावान होने का आधार देती है। अपने विशद् अध्ययन से वे बताते हैं कि शताब्दियों से इंसान व संसार पुरजोर समता की ओर बढ़ रहा है।
पिकेटी ने इतिहास व मानव समाज के बड़े आंदोलनों-पड़ावों को चुना है, अपने अध्ययन के लिए कि यह यात्रा कैसे समता की मंजिल की ओर अग्रसर है। सामाजिक संघर्ष का इतिहास इसे गति देता रहा है। पूंजीवाद, क्रांतियां, साम्राज्यवाद, दासता के खिलाफ युद्ध और अंततः कल्याणकारी राज्य का उद्भव। हिंसा, आपदा, प्रतिक्रांति के बावजूद मानव समाज सही तरीके से अधिक समतापूर्ण समाज की ओर बढ़ रहा है।
वे यह भी स्वीकार करते हैं कि हम और बेहतर कर सकते हैं। सामाजिक, वैधानिक व राजकोषीय नीतियों में आवश्यक कदम उठाकर और शिक्षा व संस्थानों की व्यवस्था को और मजबूत कर। कुछेक सौ वर्षों पहले तक धारणा थी कि विषमता प्राकृतिक विधान है। सर्वोदयी दादा धर्माधिकारी ने कहा था कि कार्ल मार्क्स के पहले किसी देवदूत या धर्मदूत ने यह नहीं कहा कि गरीबी का अंत संभव है, या कि यह ईश्वर की देन नहीं, बल्कि मानव व्यवस्था की उपज है।
17वीं सदी में हाॅब्स व लॉक के प्राकृतिक समता के सिद्धांत या रूसो के सामाजिक करार की बात ने एक नई चेतना-ऊर्जा दी थी, मानव समाज को। 18वीं सदी तक मानव समाज गैर बराबरी के खिलाफ मुकम्मल सपना देखने की स्थिति में आ गया था। फ्रांस में हुई क्रांति के तीन सौ सालों बाद, साक्ष्यों के अध्ययन के आधार पर विश्व-मशहूर अर्थशास्त्री पिकेटी बता रहे हैं कि मानव समाज की ऐतिहासिक यात्रा बराबरी की ही ओर अग्रसर है।
इस अर्थ में यह निष्कर्ष, इतिहास के उन सभी चर्चित-अचर्चित नायकों, घटनाओं, मोड़ों के प्रति कृतज्ञता बोध है, जिनसे गुजरते हुए इंसान एक समतापूर्ण समाज की मंजिल की ओर पांव बढ़ाता रहा है।
थॉमस पिकेटी कहते हैं कि उतार-चढ़ावों की गति या आंदोलनों के साथ संसार की दीर्घकालीन यात्रा बराबरी की ओर है। संभव है कभी किसी दशक में विपरीत चीजें हों, पर समाज उसे अंतत: सही कर देता है।
Rani Sahu
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