सम्पादकीय

गरीबों का खाना पिज़्ज़ा महारानी मार्गरीटा की वजह से बना अमीरों का शौक

Gulabi Jagat
17 March 2022 7:05 AM GMT
गरीबों का खाना पिज़्ज़ा महारानी मार्गरीटा की वजह से बना अमीरों का शौक
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कुछ दिन पहले जीएसटी को लेकर एक नई घोषणा हुई कि ‘पिज़्ज़ा की टॉपिंग पिज़्ज़ा नहीं है
अनिमेष मुखर्जी।
कुछ दिन पहले जीएसटी को लेकर एक नई घोषणा हुई कि 'पिज़्ज़ा (Pizza) की टॉपिंग पिज़्ज़ा (Pizza Toppings) नहीं है, इसलिए इसपर ज़्यादा जीएसटी (GST) लगेगा.' मतलब अगर आप पिज़्ज़ा लेते हैं और उसपर अलग से टॉपिंग नहीं डलवाते, तो आपको 5 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ेगा. अगर एक्स्ट्रा चीज़, ऑलिव या मशरूम डलवाएंगे तो हो सकता है कि 18 प्रतिशत टैक्स लगे. अब कौन सी टॉपिंग एक्स्ट्रा थी और कौनसी नहीं ये तय करना बड़ा मुश्किल है. वैसे हरियाणा अपीलेट अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएएआर) के इस फैसले में कई समस्याएं हैं.
मसलन समोसा काउंटर से लेकर ऐसे ही खा लें, तो कम टैक्स है, लेकिन आराम से बैठकर खाने पर ज़्यादा जीएसटी. फ्लेवर वाले दूध पर ज़्यादा जीएसटी है और फ़्लेवर वाली लस्सी पर कम. इस तरह के मुश्किलात भर नियमों के बीच ट्विटर पर पिज़्ज़ा ट्रेंड करने लगा. दरअसल पिज़्ज़ा है ही ऐसी चीज़. जीएसटी के गणित को पीछे छोड़ बात करते हैं, पिज़्ज़ा के गर्मागरम इतिहास की.
प्राचीन और गरीब
भारत में पिज़्जा 80 के दशक में चलन में आया और जनता में इसकी लोकप्रियता और बाद में फैली. इसीलिए अक्सर लोग मान लेते हैं कि पिज़्ज़ा एक नया पकवान है और बहुत पुराना नहीं है. वास्तव में पिज़्ज़ा बहुत प्राचीन रेसिपी है. भारत सहित दुनिया के तमाम हिस्सों में लोग रोटी पर घी, तेल लगाकर ऊपर से कुछ और डालकर खाते रहे हैं, पिज़्ज़ा का मूल यहीं से आया है. कई लोग मानते हैं कि ईरान और मिस्र में लोग रोटी पर तेल, चीज़ और खजूर लगाकर खाते थे, जो पिज़्ज़ा का पूर्वज था, जबकि कुछ लोग इसे ग्रीक और इटली का ही मानते हैं. ये दोनों बातें अपनी जगह, लेकिन एक तथ्य पूरी तरह दुरुस्त है कि यूरोप में टमाटरों की आमद 16वीं शताब्दी के बाद हुई और पिज़्ज़ा का वर्तमान स्वरूप इसके बाद ही बना है. इटली के नेपल्स में आधुनिक पिज़्ज़ा की शुरुआत हुई और वहां ये लंबे समय तक गरीबों का भोजन रहा.
दरअसल, पिज़्ज़ा की पूरी बनावट ही गरीबों और कामगारों के भोजन के रूप में थी. लकड़ी के तंदूर में खमीरी रोटी नुमा बेस बनाकर उपर से चीज़ लगाया, आसानी से पक जाने वाली सब्ज़ियां लगाकर दे दिया. इंसान ने चलते-फिरते खा लिया. अगर पैसे कम हैं, तो आधा भी खा सकते हैं. एक से ज़्यादा लोग हैं, तो स्लाइस शेयर कर सकते हैं. इस तरह पिज़्ज़ा नेपल्स के गरीबों के रोज़मर्रा के भोजन में अपनी जगह पर लंबे समय से चल रहा था. काफ़ी सालों तक इटली के लोग टमाटर के इस्तेमाल से बचते रहे, क्योंकि उन्हें लगता था कि अमेरिका के रास्ते आई यह सब्ज़ी ज़हरीली है. इसी बीच नेपल्स के सान मारज़ानो टमाटरों की खेप लोकप्रिय हो चली.
इटली में विज़ूवियस ज्वालामुखी की ज़मीन पर उगने वाले ये टमाटर लंबे और बहुत पतले छिलके वाले होते हैं. कहते हैं इनके जैसा स्वाद और फ़्लेवर किसी और टमाटर में नहीं होता. रोटी पर सिर्फ़ चीज़ और ऑलिव ऑयल लगाकर खाना अच्छा नहीं लगता था, तो 19वीं शताब्दी में राफ़ाएल एस्पसीतो नामक शख्स ने इसपर टमाटर का सॉस लगाकर खिलाना शुरू किया और ये फ़ॉर्मुला हिट हो गया. हम कह सकते हैं कि आधुनिक पिज़्ज़ा की शुरुआत यहीं से हुई.
गरीबों की महारानी मार्गरीटा
पिज़्ज़ा में भले ही टमाटर का स्वाद आ गया हो, लेकिन यह गरीबों का भोजन ही बना रहा और लोगों ने इसकी भरपूर निंदा की. सन् 1831 में टेलीग्राफ़ के आविष्कारक सैमुअल मोर्स ने लिखा कि 'यह केक का एक उल्टी पैदा करने वाला रूप है… रोटी पर लोग टमाटर, मछली के टुकड़े, काली मिर्च और न जाने क्या-क्या लगा देते हैं. इन सबको देखकर लगता है कि किसी ने ब्रेड को गटर में डुबोकर निकाला हो.' पिज़्ज़ा की यह स्थिति एक घटना के बाद बदल गई.
सन 1889 में इटली की महारानी मार्गरीटा अपने पति महाराज उंबर्तो के साथ नेपल्स पहुंचीं. महारानी साहिबा तमाम फ़्रेंच शाही पकवानों को तीन टाइम खाकर पक चुकी थीं. उन्होंने आम लोगों का खाना खाने की इच्छा ज़ाहिर की. एसपसीतो साहब ने बेग़म मार्गरीटा के लिए तीन पिज़्ज़ा बनाए. इनमें से तीसरा वाला सबसे खास था. इसमें लाल टमाटर का सॉस, सफ़ेद चीज़, और हरी बेसिल की पत्तियां थीं.
ये तीनों मिलाकर इटली के झंडे के रंग बनते हैं और महारानी के नाम पर इस पिज़्ज़ा को मार्गरीटा कहा जाने लगा और लोगों की इसके प्रति झिझक खत्म हो गई. शाही परिवार ने जो खाया, उसे सिर्फ़ गरीबों का भोजन कैसे बताते. वैसे बता दें कि यूनेस्को ने नेपल्स के पिज़्ज़ा बनाने के तरीके को विश्व धरोहर घोषित किया है (सच में, सिर्फ़ व्हॉट्सऐप पर नहीं). आप एक खास अनुपात में बने पिज़्ज़ा को मार्गरीटा कह सकते हैं.
पिज़्ज़ा की डिलीवरी
महारानी ने सिर्फ़ पिज़्ज़ा को लोकप्रिय बनाया, बल्कि होम डिलीवरी की शुरुआत भी करवाई. अब ज़ाहिर सी बात है कि मार्गरीटा जी पिज़्ज़ा खाने दुकान पर जाती नहीं, तो पिज़्ज़ा बनाकर उनके दौलतखाने में पहुंचाया गया था और इस प्रकार पिज़्ज़ा की पहली होम डिलीवरी हुई थी. हालांकि, इस पहली डिलीवरी से पिज़्ज़ा के लोकप्रिय होने और उसके होम डिलीवरी पर जाने में लंबा समय लगा.
द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने तक इटली के तमाम लोग अमेरिका पहुंच चुके थे. इनके रोज़मर्रा के जीवन में पिज़्ज़ा शामिल था. दूसरी तरफ़ इटली से वापस लौटे अमेरीकी सैनिक भी पिज़्ज़ा का ज़ायका याद करते थे. इसलिए उन्होंने इन इलाकों में जाना शुरू किया. अक्सर सैनिकों के लिए इन जगहों पर जाना संभव नहीं था, तो होम डिलीवरी शुरू हुई.
1960 का दशक आते-आते जल्दी पिज़्ज़ा घर पर डिलीवर करना, कारोबार की एक खासियत बन गई. डॉमिनिक नाम की कंपनी ने इसमें मोर्चा फ़तेह किया और आगे चलकर यही कंपनी डॉमिनोज़ कहलाई. धीरे-धीरे पिज़्ज़ा पूरी दुनिया में फैला. आज हम जो पिज़्ज़ा खाते हैं. वो हम तक वाया अमेरिका पहुंचा है. इसीलिए कई बार लोग इटली जाकर पिज़्ज़ा खाते हैं, तो उन्हें मज़ा नहीं आता यहां तक कि उनसे, जोश-जोश में ऑर्डर किया गया ऑथैंटिक इतालवी पिज़्ज़ा खाया ही नहीं जाता.
पिज़्ज़ा है ग्लोबलाइज़ेशन का असली प्रतीक
दुनिया भर के खाने मे पिज़्ज़ा ने धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई, लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत को लोग अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं. दुनिया में पिज़्ज़ा उन गिनी चुनी डिश में से है जिसके दुनिया भर में अपने-अपने रूप हैं और उन जगहों के नाम पर हैं. अमेरिकन पाई से प्रेरित गहरा शिकागो पिज़्ज़ा, न्यूयॉर्क का थिनक्रस्ट पिज़्ज़ा, अनानास की टॉपिंग वाला हवाइअन पिज़्ज़ा, नेपोली का मार्गरीटा, भारत का पनीर वाला पिज़्ज़ा, जापान का सीफ़ूड टॉपिंग पिज़्ज़ा इन सबके नाम लेते ही हम आप समझ जाते हैं कि दुनिया के हिस्से की बात हो रही है. इसके बाद भी पिज़्ज़ा रहता इटैलियन ही है. इसीलिए दुनिया जिस ग्लोबल मगर लोकल की बात करती है, ये गोल व्यंजन उसका शानदार नमूना है.
पिज़्ज़ा पर इतनी बातें हो चुकी हैं. इसके टैक्स की जटिलताओं का ज़िक्र हमने कर लिया, तो एक बार अच्छे पिज़्ज़ा के इतालवी मानकों को समझ लें. इनके मुताबिक, इसमें किनारी या क्रस्ट एक इंच तक या उससे कम मोटी हो. बीच का हिस्सा क्रेडिट कार्ड जितना पतला हो, और ऊपर से दबाने पर नरम हो. पिज़्ज़ा में जो लाल टमाटर का सॉस पड़ता है वो कैचअप नहीं होता और अक्सर लोग पिज़्ज़ा में कैचअप लगाने को अशालीन भी मानते हैं. अगर आपके दिमाम में अचानक से सवाल आया हो कि टोमैटो सॉस और टोमैटो कैचअप अलग-अलग होते हैं क्या, तो इसकी बात फिर कभी करेंगे, तब तक पता करिए कि समोसा खड़े होकर खाने पर जीएसटी ज़्यादा लगेगा या बैठकर.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
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