सम्पादकीय

Food Crisis : 12 साल में तीसरी बार दुनिया खाद्य संकट का सामना कर रही है, जिसका कोई स्थायी समाधान नजर नहीं आ रहा है

Gulabi Jagat
11 May 2022 7:49 AM GMT
Food Crisis : 12 साल में तीसरी बार दुनिया खाद्य संकट का सामना कर रही है, जिसका कोई स्थायी समाधान नजर नहीं आ रहा है
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विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, हर रात 690 मिलियन लोग भूखे सोते है
के वी रमेश |
विश्व खाद्य कार्यक्रम (World Food Programme) के अनुसार, हर रात 690 मिलियन लोग भूखे सोते हैं. मध्यम और निम्न-आय वाले देशों (जिन्हें कम विकसित देश या एलडीसी देशों के रूप में भी जाना जाता है) में महामारी से भुखमरी (Starvation) के हालात और बदतर हो गए हैं. इस महामारी ने कई देशों में गरीबों की आजीविका को प्रभावित किया है. और अब यूक्रेन संघर्ष (Ukraine Crisis) ने इसे और बुरी स्थिति में पहुंचा दिया है.
खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने विकासशील देशों को सबसे अधिक प्रभावित किया है, बढ़ती मुद्रास्फीति ने दुनिया भर में गरीबों और मध्यम वर्गों को बुरी तरह प्रभावित किया है. इसका प्रभाव भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका और पाकिस्तान में सबसे अधिक दिखाई देता है, जबकि दुनिया में कहीं और इसका प्रभाव सबसे ज्यादा अफ्रिका में दिखाई देता है.
वैश्विक खाद्य मुद्रास्फीति
दुनिया में लगभग डेढ़ दशक में यह तीसरा खाद्य मुद्रास्फीति संकट है. 2008 में, अल नीनो के प्रभाव और वैकल्पिक ईंधन के रूप में इथेनॉल के उत्पादन के लिए कृषि भूमि को गन्ने की ओर मोड़ने से दुनिया भर में कीमतें खतरनाक स्तर तक बढ़ गई थीं. हालांकि, अनुकूल मौसम की स्थिति और वैश्विक मंदी के कारण मांग कम होने से स्थिति में नरमी आई. 2011 का खाद्य संकट मुख्य रूप से यूक्रेन और रूस में लंबे समय तक सूखे का प्रभाव था. जहां एक तरफ इन सब का कारण प्राकृतिक था, वर्तमान खाद्य संकट पूरी तरह से मानव निर्मित है.
श्रीलंका में, महामारी के प्रभाव ने लगभग दो वर्षों के लिए वहां टूरिस्टों के आगमन को बुरी तरह से प्रभावित किया, जिसकी वजह से वहां का सरकारी खजाना खाली हो गया जिसने देश को तमाम तरह के स्टेपल खरीदने में असमर्थ बना दिया, जिनमें से अधिकांश को आयात किया गया. राजपक्षे परिवार के नेतृत्व वाली लगभग टूटने की कगार पर आ चुकी सरकार ने देश में रासायनिक उर्वरकों के आयात को रोककर, जैविक कृषि को अनिवार्य कर दिया, जिसने खाद्य उत्पादन को आधा कर दिया. इसकी वजह से एशिया के 2 बड़े देश चीन और भारत को इस देश के प्रति उदारता का भाव दिखाना पड़ा. पाकिस्तान के हालात भी कम बुरे नहीं हैं, लेकिन वहां के हाल की राजनीतिक घटनाओं ने संकट से ध्यान हटा दिया है. यही हाल अफगानिस्तान का है, जहां दस लाख बच्चे भुखमरी के कगार पर हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अर्ध-भुखमरी (semi starvation) जिससे कई देश परेशान हैं, उसके परिणामस्वरूप बच्चों की एक पीढ़ी का विकास रुक जाएगा.
अफ्रीका की स्थिति पर तब तक कोई ध्यान नहीं देता, जब तक कि वहां एचआईवी या इबोला न हो. वहां की स्थिति तो एशियाई देशों की तुलना में अधिक भयानक है. यूनिसेफ के अनुसार, 90 प्रतिशत अफ्रीकी बच्चे न्यूनतम समुचित आहार के मानदंडों को भी पूरा नहीं करते हैं, जबकि 60 प्रतिशत बच्चे न्यूनतम भोजन आवृत्ति को भी पूरा नहीं करते हैं, और अकेले 2017 में 14 मिलियन बच्चे खाने के बर्बाद होने से प्रभावित हुए थे. वैश्विक स्तर पर हर तीन सेकेंड में एक बच्चे की भूख के कारण मौत हो जाती है, जो प्रतिदिन 10,000 बच्चों के बराबर है. निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में कुपोषण का योगदान लगभग 45 प्रतिशत है. अफ्रीका में एक तिहाई बच्चों की मृत्यु सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के कारण होती है. अब रूस-यूक्रेन संघर्ष ने ऐसे बच्चों की स्थिति में सुधार की संभावनाओं को पूरी तरह से खत्म कर दिया है.
गेहूं और रूस-यूक्रेन संघर्ष
यूक्रेन और रूस गेहूं के दो प्रमुख निर्यातकों में से हैं, विश्व गेहूं व्यापार में रूस की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है, जबकि यूक्रेन खाद्यान्न के लिए दुनिया को लगभग 10 प्रतिशत की आपूर्ति करता है. मिस्र जैसे लगभग 25 देशों को रूस-यूक्रेन से आधे से अधिक गेहूं मिलता है. आपूर्ति बाधित होने के कारण गेहूं की कीमतों में पहले ही 42 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और इसके 50 प्रतिशत तक जाने की संभावना है. चूंकि अधिकांश आयात करने वाले देश विकासशील देशों की श्रेणी में हैं, इस वजह से मूल्य वृद्धि से गरीबों को भारी नुकसान होने की संभावना है.
जबकि यूक्रेन संघर्ष के प्रभावों को खाद्य कीमतों के संदर्भ में तुरंत महसूस किया जा रहा है, इसकी वजह से हाल फिलहाल और दीर्घकालिक प्रभाव समान रूप से हानिकारक हो सकते हैं. गैर-यूरोपीय देशों के लिए यह संघर्ष भले ही दूर लग सकता है, लेकिन एक परस्पर दुनिया में, हर विघटनकारी या विनाशकारी घटना के प्रभाव लगभग तुरंत कहीं और महसूस किए जाते हैं.
रूस-यूक्रेन संघर्ष ने विश्व में तेल, गैस और कोयला व्यापार को भी प्रभावित किया है, रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की बाढ़ है, जबकि जीवाश्म ईंधन के मुख्य निर्यातकों में से रूस एक है. जीवाश्म ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी भारत और अधिकांश एलडीसी जैसे शुद्ध आयातक देशों में खाद्य मुद्रास्फीति को ऊपर की ओर धकेलती है.
उर्वरक की कमी निकट है
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया का कृषि उत्पादन फिलहाल गंभीर जोखिम में है. इसकी वजह फिर से यूक्रेन संघर्ष है. रूस उर्वरकों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, और अगर उर्वरकों को लेकर रूस को प्रतिबंधों से छूट दी गई तो संघर्ष के परिणामस्वरूप आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान वैश्विक उर्वरक बाजार में समस्याओं के जोखिम को बढ़ा देगा.
वर्जीनिया स्थित द फर्टिलाइजर इंस्टीट्यूट के अर्लिंग्टन के आंकड़ों के अनुसार, रूस अमोनिया निर्यात का 23 प्रतिशत, यूरिया निर्यात का 14 प्रतिशत, प्रोसेस्ड फॉस्फेट निर्यात का 10 प्रतिशत और पोटाश निर्यात का 21 प्रतिशत हिस्सा अकेले वहन करता है. रूस से उर्वरकों के मुख्य खरीदार ब्राजील (21 फीसदी), चीन (10 फीसदी), अमेरिका (9 फीसदी) और भारत (4 फीसदी) हैं. इसके अलावा, यूक्रेन संघर्ष में रूस का सहयोगी, बेलारूस, पोटाश का एक और प्रमुख निर्यातक है. 2020 में, भारत ने यूरेशियन देश से 290 मिलियन डॉलर मूल्य के पोटाश उर्वरक खरीदे.
रूस से आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों का उर्वरक की कीमतों पर मामूली प्रभाव पड़ने की संभावना है, लेकिन नीचे के व्यापारियों को यह बढ़ी हुई कीमतों के साथ ही मिलेगा. कृषि संचालन कैलेंडर में रुकावटों की अधिक संभावना है क्योंकि बंदरगाहों पर आने में देरी से बुवाई के तहत रकबा और इस मानसून और अगले रबी के मौसम में उत्पादन पर संभावित प्रभाव पड़ेगा. और इसी वजह से यह भारत में उच्च खाद्य मुद्रास्फीति का कारण बन सकता है.
भारत के लिए आगे क्या है?
भारत हाल के वर्षों में दो या तीन अच्छे मानसून में भाग्यशाली रहा है, और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि 2021-22 के दूसरे अग्रिम अनुमानों के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन 316 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है, जो एक सर्वकालिक रिकॉर्ड होगा. दलहन, तिलहन और बागवानी फसलों का उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर को छूता दिखेगा. और पिछले हफ्तों में ही भारत से गेहूं जरूरतमंद देशों को दिया गया और यहां तक कि निर्यात किया गया. हालांकि इस बार गेहूं का उत्पादन 1050 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है, जो पहले के 1113 लाख मीट्रिक टन के अनुमान से कम है. पंजाब में राज्य सरकारें पहले ही खरीद लक्ष्य से चूक चुकी हैं और यूपी या हरियाणा में भी स्थिति अलग नहीं है. इस सीजन में आपूर्ति में दिक्कतें और लक्ष्य से कम गेहूं की खरीद को देखते हुए अगले साल कुछ अलग होने की संभावना है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)


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