सम्पादकीय

नरेंद्र मोदी के ही नक्शे कदम पर चलकर उनको घेरने में कितनी कामयाब होंगी ममता बनर्जी?

Tara Tandi
29 July 2021 9:39 AM GMT
नरेंद्र मोदी के ही नक्शे कदम पर चलकर उनको घेरने में कितनी कामयाब होंगी ममता बनर्जी?
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28 जुलाई को दिल्ली में ममता बनर्जी का दौरा कई मायनों में खास था

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| संयम श्रीवास्तव| 28 जुलाई को दिल्ली में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का दौरा कई मायनों में खास था. ममता बनर्जी 5 दिन के दिल्ली दौरे पर हैं और ऐसा माना जा रहा है कि इन 5 दिनों में वह अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति की एक ऐसी बिसात बिछा कर जाएंगी जिस पर उन्हें मात देना किसी के लिए भी मुश्किल साबित होगा. 28 जुलाई को ममता बनर्जी ने दिल्ली में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जैसे नेताओं के साथ तो मुलाकात की ही, इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली के कई बड़े पत्रकारों और संपादकों से भी मुलाकात की जिनसे उन्होंने ऑन कैमरा और ऑफ कैमरा कई बड़ी बातें की.

ममता बनर्जी बिल्कुल वही चाल चल रही हैं जो 2014 में कांग्रेस (Congress) के खिलाफ नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने चली थी. उसी तरह से मीडिया को अपने साथ लेना, बीजेपी ने गैर कांग्रेसी पार्टियों को एकजुट किया और एनडीए (NDA) को एक बड़ा गठबंधन बनाया था. उसी तरह ममता बनर्जी अब कांग्रेस के साथ-साथ तमाम विपक्षी पार्टियों को एक साथ लेकर बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन बनाने का प्रयास कर रही है. अपने दिल्ली दौरे के दौरान ममता बनर्जी ने एक बड़ा नारा दिया 'अच्छे दिन नहीं सच्चे दिन चाहिए' यह नरेंद्र मोदी की सरकार पर बड़ा प्रहार है.

भारतीय राजनीति में पहले आओ पहले पाओ की स्थिति हमेशा होती है. यानि जिसने किसी मुद्दे की पहल की क्रेडिट ज्यादातर उसी को मिलता है. ममता बनर्जी इस चाल को बेहद अच्छे से समझ चुकी हैं, यही वजह है कि उन्होंने विपक्ष को एक साथ लेने से लेकर सरकार को घेरने तक में सबसे बढ़-चढ़कर और सबसे पहले आवाज बुलंद की. पेगासस के मुद्दे को ही देख लीजिए, कई राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार है या कई राज्यों में अन्य विपक्षी पार्टियों की सरकार है कोई भी चाहता तो इस पर एक जांच आयोग बना सकता था. लेकिन जब तक सब सोच रहे थे ममता बनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर और पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस भट्टाचार्य के नेतृत्व में पेगासस जांच के लिए एक कमेटी का गठन तक कर दिया.

ममता बनर्जी के इस कदम से देश के तमाम क्षेत्रीय दलों में एक संदेश गया है कि ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी ब्रांड से टक्कर लेने में बिल्कुल नहीं डरती हैं और दृढ़ता से उनके सामने खड़ी रहती हैं. इस वक्त जब देश के तमाम क्षेत्रीय दल मोदी ब्रांड से भयभीत हैं उसमें ममता बनर्जी का यह कदम उन दलों में आत्मविश्वास फूंकने का काम कर रहा है.

बंगाल लाइन पर मोदी को हराने की कोशिश

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने ना केवल बंगाल जीता, बल्कि देश की राष्ट्रीय राजनीति में अपने कदम भी मजबूत कर लिए हैं. बंगाल जीतकर ममता बनर्जी ने पूरे देश को यह संदेश दिया कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी अजेय नहीं है, उसे भी हराया जा सकता है. बंगाल चुनाव से ही देश में एक नया संदेश गया 'नो वोट फॉर बीजेपी'. दिलचस्प बात यह है कि इस संदेश में सिर्फ इतना कहा गया है कि बीजेपी को वोट नहीं देना है, उसके अगेंस्ट आप किसी को भी वोट दे सकते हैं.

दरअसल बंगाल के बुद्धिजीवियों ने यह कोई नया नारा नहीं दिया था, देश की राजनीति का इतिहास उठा कर देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि ज्यादातर पॉपुलर सरकारों को ऐसे ही नारों से गिराया गया है. चाहे वह इंदिरा हटाओ का नारा हो या फिर राजीव हटाओ या फिर 2014 में यूपीए हटाओ. इन सभी नारों ने मौजूदा सरकारों की क्रेडिबिलिटी जनता के बीच इतनी गिरा दी कि चुनाव के समय उन्हें वाकई में हार का मुंह देखना पड़ा. अब ममता बनर्जी भी मौजूदा सरकार के खिलाफ ऐसा ही माहौल बनाने का प्रयास कर रही हैं.

ममता बनर्जी के फेस पर क्या पूरा विपक्ष तैयार होगा

ममता बनर्जी जिस तरह से प्रयास कर रही हैं उसे देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने लिए 2024 की जमीन तैयार कर रही हैं. लेकिन सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी और तमाम विपक्षी पार्टियां ममता बनर्जी के चेहरे के पीछे खड़े होकर नरेंद्र मोदी से लड़ना पसंद करेंगी. कुछ हद तक शायद कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां ममता बनर्जी के चेहरे पर तैयार भी हो जाएं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि क्या कांग्रेस तैयार होगी.

ममता बनर्जी और सोनिया गांधी के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं. लेकिन राजनीति में संबंध मधुर होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रधानमंत्री की कुर्सी दे दी जाए. ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस पार्टी खड़ी होती है या नहीं इसका पूरा दारोमदार 2024 में कांग्रेस के जीते हुए सीटों के आंकड़े पर निर्भर करेगा. अगर कांग्रेस पार्टी सवा सौ सीटों से ज्यादा जीतती है तो वह किसी भी कीमत पर ममता बनर्जी को या ऐसे किसी भी नेता को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं देखना चाहेगी जो भविष्य में अपनी लोकप्रियता इतनी बढ़ा ले कि वह कांग्रेस पार्टी के लिए खतरा साबित हो जाए.

दरअसल गठबंधन की सरकारों का यही मूल मंत्र होता है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर एक ऐसे व्यक्तित्व को बिठाया जाए जो सबकी सुन कर करता हो और जनता के बीच वह इतना लोकप्रिय ना हो कि आने वाले समय में एक चेहरा बन जाए. ममता बनर्जी का व्यक्तित्व बिल्कुल इसके उलट है, अगर उन्हें एक बार प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल गया तो वह अपनी छवि और अपनी जमीन दोनों तैयार करने में एक भी मौका नहीं छोड़ेंगी और अगर ऐसा हो गया कि ममता बनर्जी मोदी की तरह देश में एक ब्रांड बन गईं तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी को ही होगा जो वह कभी नहीं चाहेंगी.

'मोदी बनाम देश' का शिगूफा कितना हिट होगा

28 जुलाई बुधवार को ममता बनर्जी ने दिल्ली के 7 महादेव रोड पर जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उसमें उन्होंने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि 2024 की लड़ाई देश बनाम मोदी होगी. ममता बनर्जी कि यह बात राजनीतिक समझ रखने वालों के लिए अपने आप में एक बड़ी बात है. दरअसल ममता बनर्जी 2024 का लोकसभा चुनाव अपने चेहरे के साथ तो बिल्कुल लड़ना चाहती हैं, लेकिन वह चाहती हैं कि यह चेहरा सिर्फ राजनीतिक पार्टियों को पता रहे, जनता को नहीं.

यानि हर क्षेत्रीय दल अपने-अपने गढ़ में बीजेपी से क्षेत्रीय मुद्दों पर मुकाबला करें, प्रधानमंत्री के चेहरे पर नहीं. बीजेपी हमेशा सवाल करती है कि नरेंद्र मोदी के चेहरे के सामने कौन खड़ा होगा. लेकिन ममता बनर्जी को शायद इस सवाल का जवाब मिल गया है कि नरेंद्र मोदी के चेहरे के सामने देश खड़ा होगा. देश यानि हर क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी अपने क्षेत्र में क्षेत्रीय मुद्दों के साथ बीजेपी का मुकाबला करे. जैसे बंगाल में ममता बनर्जी ने किया, उड़ीसा में नवीन पटनायक ने, आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने, तेलंगाना में टीआरएस ने. इसी तरह से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और तमाम राज्यों में वहां के क्षेत्रीय दल या फिर कांग्रेस पार्टी क्षेत्रीय मुद्दों पर भारतीय जनता पार्टी से सीधे टक्कर लेगी. ममता बनर्जी को पता है कि बीजेपी की पूरी शक्ति नरेंद्र मोदी के चेहरे में है और अगर विपक्ष उस चेहरे से मुकाबला ही नहीं करेगा तो जीत हार के नतीजे कुछ और होंगे.


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